बिजनेस के जुनून को पहचानना जरूरी

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जुनूनी कुक्स के लिए सबसे बड़ी तारीफ यही है कि कोई उनसे दोबारा खाना मांगे और बहुत प्रशंसा करे। मैंने अपने घर पर यह काफी देखा है। अगर मेरे घर पर खाना खाते समय मेहमान कोई व्यंजन दोबारा या तिबारा मांगता था, तो मुझे 100 फीसदी पता होता था कि मां उसे वह व्यंजन पैक कर उपहार में जरूर देंगी। उन्हें दोस्तों और परिचितों से कुछ हतों बाद तक तारीफें मिलती रहतीं, जब वे मंदिर या किसी समारोह में उसी व्यक्ति से दोबारा मिलतीं थीं। यह अलग बात है कि हमारे पास तुरंत सराहना पाने के लिए टेलीफोन कनेक्शन नहीं था, हालांकि उन दिनों खाने की तारीफ करने के लिए टेलीफोन इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। अब आते हैं 2014 में। अगर मेरी रसोई में कुछ पक रहा होता और खुशबू मुझे उसे देखने के लिए आकर्षित करती, तो मेरी बावर्ची मुझपर चिल्लाती, ‘साहेब हाथ मत लगाओ, मैडम ने अभी फोटो नहीं निकाले!’ तब से रसोई में घुसते ही बावर्ची से मेरा पहला सवाल होने लगा, ‘मैडम का फोटोशूट हो गया?’ और यह जवाब पर निर्भर करता कि मैं उस व्यंजन को छूने का साहस करूंगा या नहीं। अब महामारी के दौर में आते हैं। जब परिवार घरों में बंद रहने को मजबूर हैं, तो शौकिया कुस की दूसरी और तीसरी पीढ़ी वॉट्सएप ग्रुप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपनी रचनाओं से भर रही हैं। खाने के लिए उनके जुनून ने तुरंत सराहना के अलावा ‘होम शेस’ नाम के नए पेशे को जन्म दिया है। जहां बाहर खाना तेजी से कम हो रहा है, टेक अवे (पैक कराना) का विकल्प न केवल नया नियम बन रहा है, बल्कि इससे इन होम शेस को आंत्रप्रेन्योरशिप की नई रेसिपी मिल गई है।

और अगर आप इन तीन परिस्थिति की तुलना करेंगे तो इनमें पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि खाना पकाने के लिए जुनून नजर आएगा। पैसा उस जुनून के पीछे-पीछे आ गया। पुणे की अस्मिता खोट का उदाहरण ले लीजिए। वे ‘उकडिचे मोदक’ के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने गणेश चतुर्थी के दिन 200 मोदक डिलीवर किए और त्योहार शुरू होने के बाद से रोजाना करीब 100 मोदक बना रही हैं। अस्मिता की ही तरह सैकड़ों लोग केवल हाथ से बने मोदक और पूरणपोई बेच रहे हैं। पुणे की ही माधवी घोड़के ने भी अपने शौक को बिजनेस में बदला और इसे नाम दिया, ‘माधवीज़ किचनेट’, जहां लगातार नए ऑर्डर आ रहे हैं। यह ट्रेंड सिर्फ पुणे में ही नहीं दिख रहा बल्कि पूरे कोंकण इलाके से गोवा तक दिख रहा है, जहां गणेश चतुर्थी 10 दिन तक जोर-शोर से मनाई जाती है। गोवा में जैकलीन फर्नांडिस, मारिया वीगस और शेरिल सूजैन गोम्स ने अपनी पारंपरिक रेसिपीज से महामारी को अवसर में बदला है। वे यहीं नहीं रुकीं। पारंपरिक गोवा व्यंजनों के अलावा, कुछ ने अपने मसालों की ब्रांडिंग शुरू की है, जो उन्हें मां से विरासत में मिले। गोम्स जैसे लोग दूसरों की खुद का व्यापार शुरू करने में मदद कर अपने जुनून को अगले स्तर पर ले गए हैं। और दुर्भाग्य से, देश के लंबे तटीय इलाके में पर्यटन का बिजनेस खो चुके गुमटी मालिक फूड बिजनेस के इस जुनून को पहचान नहीं पाए। फंडा यह है कि अगर दूसरों को खिलाना, आपको खुशी देता है तो आप पाक कला के व्यापार के लिए सही हैं। यकीन मानिए, आप देश के तटों पर बनी गुमटियों से ज्यादा पैसा कमाएंगे।

टेक्नोलॉजी इस दुनिया को नए स्तर पर ले जाएगी: अगर आप काम पर जाने के लिए रेलयात्रा करते हैं तो वाब देखते होंगे कि कितना सुविधाजनक होता, अगर आपको ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर आने से काफी पहले ही यह पता चल जाता कि ट्रेन में कितनी सीट खाली हैं या कम से कम यह तो पता चल ही जाता कि क्या ट्रेन में सोशल डिस्टेंस बनाए रखने के लिए पर्याप्त जगह है। अब आपका सपना सच हो रहा है। यूके में ‘साऊथईस्टर्न’ नाम की प्राइवेट रेल कंपनी पहली ट्रेन कंपनी बन गई है जो यात्रियों को यात्रा से पहले खाली सीट्स और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जगह के बारे में कलर कोडेड (रंग आधारित) जानकारी देगी। अगले हते शनिवार से शुरू हो रही सेवा में हरे से लेकर लाल तक कलर कोडेड स्केल हैं, जिसमें गहरा हरा रंग वे डिब्बे दिखाता है, जिनमें खाली सीट हैं और दो मीटर की दूरी संभव है। यह नया हल पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करने में लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाएगा। याद कीजिए, नई सिम पाने में मदद न करने पर आप कितनी बार सिम कार्ड देने वाले किओस्क ऑपरेटर या दुकानदार पर भड़के होंगे? चिंता न करें, फिजिकल सिम अब जल्द गुजरे जमाने की बात होने वाली हैं। अब अपने नए अवतार में वे ई-सिम हो जाएंगी। जी हां, डिजिटल सिम की मदद से यात्रा कर रहे लोग स्थानीय नेटवर्क ऑपरेटर की सेवाएं डाउनलोड कर पाएंगे, वह भी नए देश में पहुंचने से पहले। इससे रोमिंग चार्जेस और फिजिकल सिम कार्ड बेचने वाला किओस्क ढूंढने की परेशानी से बच सकेंगे। एक फोन में 15 ई-सिम रखी जा सकेंगी। यूके में वोडाफोन, ईई और ओटू डिजिटल सिम देते हैं।

और इसलिए भविष्य में आपके स्मार्टफोन पूरी तरह वॉटरप्रूफ हो सकते हैं क्योंकि फिजिकल सिम कार्ड्स गायब हो जाएंगे। फोन को वॉटरप्रूफ बनाने में सबसे बड़ी बाधा उन छेदों को बचाना ही है, जिन्हें टेक्नोलॉजी वाले ‘सिम कार्ड ट्रे’ कहते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि बड़े फोन निर्माता पहले ही ऐसे फोन बनाने पर काम कर रहे हैं जो सिर्फ डिजिटल सिम कार्ड पर चलेंगे, जिन्हें डाउनलोड कर सकते हैं। सिम कार्ड ट्रे की तुलना में स्पीकर्स के होल वाटरप्रूफ बनाना आसान है। अगर आप सोचते हैं कि टेक्नोलॉजी केवल विकसित देशों में ही तेजी से बदलती और अपनाई जाती है और हमारे जैसे विकासशील देशों में नहीं, तो मैं आपको ‘गंगाव्वा’ की कहानी बताता हूं, जो हाल ही सीएनएन की नई सीरीज ‘टेक फॉर गुड’ में नजर आईं। यह सीरीज जीवन बदलने वाली ऐसी तकनीकें बता रही है, जो लोगों की निजी बाधाओं को पारकर, अपने शौक को नई ऊंचाई देने में मदद कर रही है।

भारतीय यूट्यूब ‘मेगा-स्टार’, 58 वर्षीय मिलकुरी गंगाव्वा उन पांच कलाकारों में शामिल थीं, जिन्होंने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए टेक्नोलॉजी की शक्ति का इस्तेमाल किया। गंगाव्वा का जीवन यूट्यूब चैनल ‘माय विलेज शो’ में नजर आने के बाद बदल गया, जिसके 1.6 करोड़ सस्सक्राइबर और 36 करोड़ से ज्यादा व्यूज हैं। तीन साल पहले तक, गंगाव्वा हैदराबाद से 200 किमी दूर लांबाडिपल्ली गांव में किसान थीं। वे फसल के लिए जमीन तैयार करना, बुआई और बतौर मजदूर अपने दोस्तों और पड़ोसियों के खेतों में भी काम करती थीं। फिर वे यूट्यूब पर नजर आईं और अब गंगाव्वा सेलिब्रिटी हैं। फंडा यह है कि आप मानें या न मानें, टेक्नोलॉजी इस दुनिया को नए स्तर पर ले जाएगी, खासतौर पर कोरोना के बाद। गंगाव्वा की तरह हम सभी को भी इसे जल्द से जल्द अपनाना होगा, क्योंकि आखिरकार यह सभी की जीवनशैली बदल देगी।

एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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