बाप रे – जीडीपी के आंकड़े भी फर्जी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़े अहंकार से करहते आ रहे कि उन्होंने लाखों फर्जी कंपनियों पर ताले लगवा दिए। मीडिया में इसका खूब ढिंढोरा पीटा गया। लोगों ने भी यकीन कर लिया। हजार बार बोला गया झूठ वैसे भी सच मान लिया जाता है। अब जाकर भेद खुला कि जिन कंपनियों को फर्जी बताकर बंद करने की ढींग मारी गई थी उन्हीं फर्जी कंपनियों के सहारे मोदी सरकार ने जीडीपी के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए। किसी तरह का कोई सवाल खड़ा ना हो, उसके लिए 2015 में जीडीपी नापने का पैमाना ही बदल दिया गया। तमाम जानकारों ने उस समय फैसले पर सवाल उठाए थे लेकिन मोदी के राज की एक खूबी जरूर रही कि लोकतंत्र में मोदी के अलावा सुनी किसी की कभी गई नहीं लिहाजा इस मामले में भी तमाम सवाल हलाल हो गए। नेशनल सैंपल सर्वे ने बरस भर मेहनत की। सर्वे किया। 2017 में रिपोर्ट दबा दी गई।

सर्विस सेक्टर की कंपनियों का जब सर्वे हुआ तो 15 फीसद कंपनियां लापता मिली। 21 फीसद का पता तो था लेकिन बंद थी। इन्हीं 36 फीसद कं पनियों के सहारे मोदी सरकार ने जीडीपी की चमक बिखेरी। कोरपोरेट मंत्रालय ने इन कंपनियोंको एक्टिव दिखाया जबकि इनका अता-पता ही नहीं था। 2017 में जब राज बाहर आने लगा तो रिपोर्ट भी दब गई और मीडिया का मुंह भी बंद रहा। जीडीपी की हालत खस्ता हो और उसे फर्जी तरीके से बढ़ाकर चमकदार बनाया जाए तो सोचिए इससे बड़ा अपराध देश के साथ औऱ क्या हो सकता है? क्या ये मान लिया जाए कि मोदी के राज में देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो चुकी है और इसी फर्जी कंपनियों के सहारे जीडीपी को बेहतर दिखाया गया ताकि राजपाट की शान बनी रहे? अब तो मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य मिस्टर राय भी कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था के हाल बेहद खराब हैं?

तो आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या अब भी मोदी के हाथों में देश को सुरक्षित माना जा सकता है? वैसे भी पांच साल का अगर इतिहास उठाक र देखा जाए तो भारत में आंकड़ों का आंकनल करने वाली संस्थाएं बची ही कितनी हैं? राष्ट्रीय सांगियकीय परिषद के दो सदस्य इस वजह से इस्तीफा दे र चले गए थे क्योंकि मोदी सरकार ने उनकी ओर से तैयार बेरोजगारी की रिपोर्ट दबा दी थी। रिपोर्ट इस वजह से दबाई गई क्योंकि रिपोर्ट बता रही थी कि देश में 45 साल बाद बेरोजगारी के आंकड़े बेहद भयावक थे। अब तक इन सदस्यों की जगह किसी को नहीं रखा गया। क्योंकि मोदी सरकार को सरकारी आंकड़ों की नहीं बल्कि अपनी टीम की ओर से तैयार आकंड़ों पर सरकारी मुहर लगाकर जनता के सामने वाहवाही लूटने की आदत पड़ चुकी है। तो फिर कैसे कहा जाए कि देश मोदी के हाथों में मजबूत है? मोदी के राज में बेरोजगारी की जानकारी देने वाले श्रम मंत्रालय के सर्वे पर रोक लगा दी गई।

जिस नई व्यवस्था की बात की जा रही थी उसके दर्शन आज तक नहीं हो पाए। आठ से दस फीसद तक जीडीपी ले जाने के दावे किए गए लेकिन किसे पता था कि सब हवा-हवाई है। जनता सोच रही है कि देश तरक्की कर रहा है और फर्जी कंपनियों के सहारे फर्जी जीडीपी को हथियार बनाकर सत्ता पाने के खेले ने ये सोचने को मजबूर जरूर कर दिया है कि आखिर सियासत कि तने गुल खिलाएगी? राजपाट के लिए कितने हथकंडे अपनाएगी? ऐसे में लाख टके का सवाल यही पैदा होता है कि क्या भारत वास्तव में सुपर पावर बन सकता है या केवल मीडिया के सहारे जनता को बरगलाया जा रहा है? ये बोल के वल पोल के वास्ते ही बोले गए थे? हकीकत सामने आ चुकी है लेकिन हैरानी की बात यही है कि सरकार अब भी ये मानने को तैयार नहीं कि कहीं ना क हीं जानबूझकर कुछ गड़बड़ की गई है। अगर गड़बड़ की बात मानी तो फिर इससे अच्छा कौन के घमंड का क्या होगा?
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं एतबार ना करता तो भला क्या करता?

डीपीएस पंवार

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