बहस का बस ईश्वर ही मालिक है…

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17 वीं लोकसभा की तासीर, सत्व-सत्व पर जितना सोचा जाए कम होगा। यह लोकसभा पंद्रह अगस्त 1947 से 23 मई 2019 के 72 वर्ष बाद का वह मोड़ है जिसमें भारत का आईडिया, भारत का नैरेटिव, नीति-निर्धारकों की बौद्धिकता और बहस का ईश्वर मालिक है। पांच साल बाद 2024 में जब 17वीं लोकसभा का मूल्यांकन करने को बैठेंगे तो ढूढ़ना पड़ेगा, सोचना पड़ेगा कि यह संसद देश की आर्थिकी, वित्तिय, विदेश, सामरिक, शैक्षिक आदि नीतियों में किनबहसों केसाथ खत्म हो रही है? तुलना पिछली लोकसभाओं से करें या जयललिता की तमिलनाडु और गुजरात विधानसभाओं से?

छोड़े नेहरू-पटेल-श्यामाप्रसाद- लोहिया से वाजपेयी, आड़वाणी-डा जोशी, वाली पिछली लोकसभाओं का सदंर्भ। आगे संदर्भ जेतली-सुषमा-हुकुमदेव यादव आदि उन भाषणवीरों का भी नहीं है जिनसे 16 वीं लोकसभा में काम चला था। अब संसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अवतार का मंदिर है और मोदी, मोदी की आरती के साथ जयश्री राम, मंदिर वही बनाएंगे और अल्लाह ओ अकबरका उद्घोष है!

इस लोकसभा के जन-प्रतिनिधि, सांसद अपने इलाके की जनता के काम करवाने के लिए, उनके प्रति जवाबदेही, उत्तरदायी होने का बोझ लिए हुए नहीं है। न हीउन पर बुद्धी बल, तर्क, दलील से बहस की जरूरत का बोझ है। सबकुछ मोदीजी करेंगे और सासंदों को सरकार के विधेयकों पर बहुमत का ठप्पा भर लगाना है।

तभी अपना मानना है कि 17 वीं लोकसभा से भारत को बदला माने। नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया और उनके बाद अलग-अलग खिचड़ी आईडिया के प्रयोगों के बाद अब आईडिया जयश्री राम बनाम अल्लाह ओ अकबर का है। लोकसभा में साध्वी प्रज्ञा, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति, औवेसी के चेहरे और इनकी नारेबाजी नए वक्त की वे प्रतिध्वनियां होगी जिनसे अपने आप पांच वर्षों में बहुत कुछ बदलेगा और समझ में भी नहीं आएगा कि हम आगे बढ़े है या पीछे लौटे है!

17वीं लोकसभा में बहस नहीं होगी, कथा वाचन होगा और नारे लगेंगे। शपथ लेते वक्त नारे लगे तो आज राष्ट्रपति के पहले अभिभाषण में भी तीन तलाक और हलाला उन्मूलन को प्राथमिकता प्राप्त थी। हां, हर्ज नहीं है कि संसद भी धर्म संसद में परिवर्तित हो। भक्तों का तर्क है कि लोकसभा में जयश्री राम का नारा नहीं लगेगा तो भला कहा लेगा? यों भी अंततः देश की संसद में ही जयश्री राम बनाम अल्लाह ओ अकबर के शक्ति परीक्षण सेआगे का फैसला होना है।

तब भला सबका साथ, सबका विकास में यह ‘सबका विश्वास’ वाला जुमला क्यों जुड़ा है? मौजूदा वक्त की प्रगति तो यही है कि तीन साल पहले देश के शहर-कस्बों की मुस्लिम बस्तियों में जा कर भारत माता की जय, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों का जोश पैदा हुआ था और उससे आगे का विकास आज यह है जो 17 वीं लोकसभा का प्रारंभजयश्री राम और अल्लाह ओ अकबर के गूंज से हुआ।

इस गूंज और साध्वी प्रज्ञा, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति, औवेसी आदि के चेहरों के साथ जुड़ी आस्थाओं, निश्चय में ‘सबका विश्वास’ का नया मंत्र 17वीं लोकसभा में देश की क्या दिशा बनवाएगा, इसका जवाब वक्त देगा लेकिन इतना तय माने कि पिछली 16 लोकसभाओं की तुलना में यह लोकसभा निश्चित ही निराकार, श्रीहीन और जयललिता की विधानसभा की तरह होगी!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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