बल या दिमाग कौन बनाएगा प्रधानमंत्री?

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2019 के राजनीतिक महासंग्राम में महारथी ताल ठोककर एक-दूसरे पर शब्दों के बाण फैंकने में लगे हुए हैं। लेकिन जैसा कहा जाता है कि दुश्मन को केवल ताकत से नहीं बल्कि दिमागी ताकत से जल्दी परास्त किया जा सकता है। स्थिति बड़ी विकट है। संकट की घड़ी है और इस संकट की घड़ी में अगर भगवान श्रीकृष्ण की मानें तो धैर्य, दूरदर्शी और सतत् परिश्रम के साथ-साथ दिमागी तौर पर लड़ाई लडऩे में जो पार्टी और नेता कामयाब होगा उसे ही मिलेगा प्रधानमंत्री का पद। महाभारत की लड़ाई में पांडवों ने श्रीकृष्ण का साथ मांगकर यह साबित कर दिया था कि सेना से अधिक ताकत दिमागी संतुलन और दिमागी लड़ाई में है। अगर पांडव सेना मांगते तो हो सकता है कि महाभारत का परिणाम कुछ और होता। इस राजनीतिक महासंग्राम में जो भी नेता इस खेल को दिमागी तौर पर जितने की ताकत रखता होगा वही परिवर्तन ला सकता है।

इन सबमें अगर देखा जाये तो कहीं न कहीं अब कई राउण्ड के बाद बड़े नेताओं की भाषाओं में परिवर्तन आ रहा है। हो भी क्यों न क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग दोनों के वाण सहने का साहस अब थोड़ा कम हो गया है। आज के इस युग में जहां अस्त्र शस्त्र से ज्यादा वाक्य मतलब रखता है वहां लड़ाई सिर्फ दिमाग और दूर तक सोच की होती है और दूर तक सोच में कहे गये वाक्य नापतोल कर कहे जाते हैं नहीं तो 2014 वाला नारा ‘अच्छे दिन वाले हैं’ बाद में जुमला कहकर पीछा न छुड़ाना पड़ता। लेकिन फिर भी बात अभी अब 2019 में भी दिमागी लड़ाई ही प्रमुखता से दिखाई देती है। अब अगर बात करें प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की तो विश्वस्त सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री कार्यालय से अंदर-अंदर यह तैयारी की जा रही है कि सरकार बनने के बाद सौ दिन का रोड़ मैप क्या होगा।

कुछ स्पेशल बाबू इस कवायत में जुटे हुए हैं और यह बात हो सकता है कि जानबूझ कर लीक की जा रही हो जिससे विरोधी खेमा दिमागी तौर पर पस्त होने के साथ-साथ और अस्त-व्यस्त हो जाये और उसे बार-बार यह सोचना पड़े कि क्या होगा उसका। जनता का आर्शीवाद किस करवट बैठेगा। इस तरह से उनका मनोबल टूटता हुआ दिखेगा और इसका सबसे बड़ा उदाहरण वाराणसी में दिखा। जहां एक तरफ नरेंद्र मोदी ने सात किलोमीटर लंबा रोड़ शो निकाला और विरोधियों को यह दिखा दिया कि आने वाले दिनों में बनारस किस ओर जा सकता है। एक और बात हुई कि इस दमखम में या हम कहें कि इस दिमागी कसरत में प्रियंका गांधी जो बनारस से ताल ठोंकने की बात कह रही थी वह पीछे हट गई और कांग्रेस को एक बार फिर 2014 के तीसरे नंबर पर आये कंडीडेट अजय राय मोदी के सामने उतारना पड़ा। यह मोदी की दिमागी कसरत का एक नमूना है कि बगैर लड़े सामने वाले को कैसे परास्त किया जाये।

कांग्रेस के हैड क्वार्टर से या किसी बड़े नेता के पास से यह तो खबर आ रही है कि सरकार बनने के बाद कुछ पैसे गरीबों के खातों में जायेंगे। लेकिन इस नारे के बाद कोई रोडमैप जैसी बात सामने निकलकर नहीं आ रही है। लगता है सोच रहे हैं कि जब सरकार आयेगी तो रोडमैप भी बना लेंगे। अभी से क्या माथापच्ची करनी। रेसकोर्स रोड हमेशा से सुर्खियों में रहा है चाहे वह घोडों की रेस में हो या फिर राजनेताओं की रेस। बात वही है एक साइड घोड़े दौड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ राजनीति की बिसात पर घोड़े दौड़ाये जा रहे हैं। घोड़ों की दौड़ में भी जीत अमूमन दिमाग से खेलने वाले की ही होती है और नरेंद्र मोदी इस खेल में पुराने माहिर हैं। चाहे वह समय कैसा भी रहा हो वह साक्षात्कार में कहते हैं कि मैं पूरा भारत आधी बाहां का कुर्ता पायजामा पहनकर, झोला लटकाकर भ्रमण किया है और इसी तरह यह भी बताते हैं कि मैं पूरे भारत की तकलीफ जानता हूँ।

या फिर अपने साक्षात्कार में वह बोले कि दीदी से उन्हें विशेष प्यार है और भारतीय राजनीति में यह बहुत अच्छा है कि हम सब एकसाथ हैं। दीदी उन्हें कुर्ता और बंगाली मिठाई भेजती हैं। यह भी एक दिमागी लड़ाई की मिसाल है। तो दूसरी तरफ मोदी के भाषण में दीदी रोड़ रोलर हैं। तो वहीं दीदी के लिये मोदी हटाओ यह केवल नारा ही नहीं बल्कि एक मंत्र है जिसे वह बार-बार अपने सभाओं में दोहराती हैं। लेकिन दीदी ने तो अभी तक अपने प्यारे मोदी के बारे में यह सब बातें नहीं बताई। भारत की जनता यह विख्यात है कि प्यार में गला भी कटवा लें। लेकिन रार में सूई की नोक के बराबर भी बर्दाश्त नहीं करती। राहुल गांधी की बात करें तो अभी भी उनमें पूर्ण परिपक्वता नजर नहीं आती। सुप्रीम कोर्ट से फटकार हो या छोड़ते-पकड़ते मुद्दे। आखिर यह नोबत आई ही क्यों।

लगता है कि अभी भी वह दिमागी तौर पर पूर्ण तैयार नहीं हैं तो दिमागी लड़ाई जीतने की बात ही अलग है। दूसरी तरफ अखिलेश चैनलों के मंच पर बैठकर पत्रकारों को चाहे जितना कोस लें लेकिन सोशल इंजीनियरिंग में माहिर बहन मायावती के साथ बुआ-बबुआ की यह जोड़ी कितना समय बितायेगी यह तो सिर्फ समय ही जनता है और कोई नहीं। अब फिर वही बात है कि एक तरफ मोदी बनारस से 7 लाख से अधिक वोटों की बात कर रहे हैं। मां और मां गंगा का आर्शीवाद लेकर कई मुख्यमंत्रियों के साथ अपना पर्चा दाखिल कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सबके मुद्दे कुछ दबते नजर आ रहे हैं। यही है दिमागी कसरत। इस कसरत में जो भी दल जनता को यह भरोसा दिला देगा कि वह इस राजनीति के साम, दाम, दंड, भेद के खेल में माहिर है और साथ ही राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति का रक्षक है वही अगले पांच साल बनेगा देश का सिरमोर।

            आर.पी. सिंह
(लेखक सुभारती मीडिया के सी.ई.ओ हैं)

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