फिर राम मंदिर राग

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राजस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अब राम का काम होकर रहेगा। संयोग से सोमवार को ही काशी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा कि 2017 से पहले अयोध्या में दिवाली मनाने से किसने रोका था? 2019 में भाजपा को मिली प्रचण्ड जीत के बाद संघ प्रमुख और प्रधानमंत्री के मुख से अप्रत्यक्ष तौर पर श्रीराम और अयोध्या में दिवाली का जिक्र होने के बाद रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद फिर ताजा हो गया है। ऐसा इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से विवाद का संवाद के जरिये समाधान निकाले जाने की उम्मीद में मध्यस्थता के प्रयास चल रहे हैं। इसके लिए कोर्ट की तरफ से समिति गठित की गई है। यह समिति अगस्त महीने में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी। माना जा रहा है कि समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद ही देश की सबसे बड़ी अदालत अपना फैसला सुनाएगी।

सबको इस विवाद के निपटारे का इंतजार है। 1949 से यह मसला विवाद का विषय बना हुआ है। तमाम सियासी लड़ाइयां इसी के इर्द-गिर्द हुईं और वोट बैंक की राजनीति के चलते स्थिति यह हो गई कि साम्प्रदायिक सौहार्द के वजूद को बनाए रखने की चुनौती बड़ी हो गई। इस लिहाज से अयोध्या विवाद का समाधान होने में अब और देर नहीं होनी चाहिए ताकि इसकी आड़ में जो पार्टियां अब तक सियासत करती आई हैं, उनमें अपने वजूद के लिए जन सरोकारों पर ऊर्जा खपाने की फिक्र बढ़े। देश और समाज के लिए यही अच्छा होगा। वैसे अयोध्या में स्थानीय स्तर पर लोगों पर विवाद का असर नहीं दिखता लेकिन चुनाव के आस- पास जब नेता सियासत करने लगते हैं और अयोध्या विवाद को अपने नजरिये से हवा देते हैं तब स्थानीय लोगों के लिए अनिश्चितता का वातावरण बन जाता है।

1992 में जब बाबरी मस्जिद शहीद हुई थी तब उसका विपरीत असर अयोध्या के लोगों पर पड़ा था। अब, जब मामला कोर्ट में है और मध्यस्थता समिति के सदस्य हर पक्ष के लोगों से बातचीत करके एक सर्वानुमति तलाश रहे हैं तब मंदिर राग के सियासी अर्थ तलाशे जा रहे हैं तो इसमें आश्चर्यचकित होने जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन यह सच है कि संघ और भाजपा का सबसे संवेदनशील एजेंडा श्रीराम मंदिर है। दूसरी बार पहले से भी ज्यादा बहुमत के साथ लोक सभा में पहुंची भाजपा से बहुसंख्यक समाज के लोग यह उम्मीद जरूर पाल रहे हैं कि इस बार उनकी मुराद जरूर पूरी होगी। इशारों-इशारों में प्रधानमंत्री ने भी मंदिर के मसले को अपनी बातचीत में रेखांकित किया है। मंदिर-मस्जिद पक्षकारों की तरफ से भी संघ प्रमुख और प्रधानमंत्री के बयानों को अपने चश्मे से देखा जा रहा है। इस बीच योग गुरू रामदेव ने कहा कि समिति की रिपोर्ट से रास्ता नहीं निकलने वाला है। अन्त में सुप्रीम कोर्ट को ही फैसला देना होगा। पर सवाल वही फिर कि फैसले से किसी के जख्म हरे होंगे तो कोई जश्न मनाएगा। ऐसी स्थिति में संसद की भूमिका क्या हो, यह सवाल भी लोगों के जेहन में है।

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