फिर मानवता शर्मसार

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हाथरस, उन्नाव, बरेली कांड के बाद एक बार फिर दरिंदों की खातिर उार प्रदेश के बदायूं में मानवता को एक बार फिर शर्मसार होना पड़ा। यहां धर्म की चादर में छिपे तीन वहशी हैवानों ने एक आंगनबाड़ी सहायिका की न सिर्फ इज्जत तार-तार की और उसके निजी अंगों को भी लोहे राड से बुरी तरह क्षतिग्रस्त करते हुए उसको बेदर्दी से मार दिया। यह महिला धर्म व उसके अनुयाइयों के प्रति श्रद्धाभाव के साथ मंदिर में पूजा करने गई थी। यह घटना इसलिए भी शर्मसार है कि जहां नारी की देवी समझकर पूजा की जाती हो, नारी के साथ इस तरह की घटना होना एक सय समाज के मुंह पर कालिख है। इससे भी अधिक संवेदनहीन दिखी हमारी पुलिस, जिसने अपनी जान बचाने के लिए रिपोर्ट लिखना तो दूर 17 घंटे बाद महिला के शव की सुध ली, वर्ना उससे पहले तो वह पीडि़तों को कुएं में गिरकर मौत होना बताकर थाने से टरकाती रही। यदि परिजन उग्रता पर नहीं उतरते तो पुलिस शव का पोस्टमार्टम भी न करवाती।

लगभग तीन माह पहले हुई हाथरस की घटना में आरोपी भले ही दबंग हों लेकिन उन्होंने धर्म का चौगा नहीं पहन रखा था, लेकिन बदायूं की घटना संगीन इसलिए है इसमें दो आरोपी उस चौगे में थे, जिस को देखकर आम व्यक्ति के मन में स्वत: श्रद्धाभाव उमड़ पड़ते हैं। इन दरिंदों ने हैवानियत का नंगा नाच करते हुए घर के सामने शव सड़क पर ये कहते हुए फेंक गए कि महिला की कुंए में गिरने से मौत हुई है। भला हो उन डाक्टरों का जिन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उक्त घटना का खुलासा किया। इस घटना के बाद क्या नारी जाति में इतनी हिम्मत रह जाएगी कि वह अकेले धर्मस्थलों में पूजा कर सके। शास्त्रों में लिखा है कि राजा, शिक्षक और पुजारी को अपने निजी जीवन का त्याग करके परहित में जीवन जीना होता है। क्योंकि उनके हर कृत्य का दूसरों के सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है। यदि वह सद्कर्म करता है तो समाज में भी सद्कर्म होते हैं, यदि वह नीच कर्मों पर उतर आता है तो समाज में भी वही माहौल बन जाता है। लेकिन तीन दिन पहले बदायूं में हुई इस शर्मसार घटना से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये तो सभी जानते हैं। सरकार द्वारा नारी सशक्तिकरण अभियान को प्रभावित करने वाले बहुत से आशाराम, सांई, रामरहीम हमारे समाज में छिपे हुए हैं जो नारियों में सशक्तिकरण का भाव उत्पन्न करने से पहले ही इस तरह की घटना को अंजाम देकर भय का वातावरण पैदा कर कर रहे हैं।

लव जिहाद पर सख्त कानून बनाने वाली राज्य सरकार इस तरह के अपराधों पर क्या कदम उठाएगी ये देखने के काबिल होगा। इस कांड में तो खाकी ने भी गैंगरेप के बाद हत्या की घटना को झूठा साबित करने का प्रयास किया और कुएं में गिरने से मौत होने की बात बताकर असंवेदनहीनता का ही प्रदर्शन किया। घटना स्थल से संबंधित उघैती पुलिस भी अपनी जान बचाने के लिए पीडि़त परिवार को थाने के चक्कर लगवाती रही। तत्काल पीडि़तों की रिपोर्ट तक भी दर्ज नहीं कर सकी। पीडि़तों के उग्र रूप धारण करने पर ही पुलिस नींद से जागी तब तक आरोपी फरार हो चुके थे। यदि पुलिस सकारात्मक रवैया अपनाती तो घटना के दोनों फरार आरोपी भी धरे जा सकते थे। इस तरह के मामलों में पुलिस की संवेदनहीन भूमिका अपराधों व अपराधियों के हौसलों में वृद्धि कर रही है। पुलिस का 17 घंटे तक परिजनों को टरकाना प्रदेश की कानून व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। हालांकि प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पीडि़तों को आर्थिक मदद देने व मामले की जांच एसटीएफ को को सौंपकर सकारात्मक कार्रवाई का संदेश दिया है।

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