पूजा-पाठ में नारियल, आम के पत्ते और लाल धागे की मदद से तैयार होता है कलश

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किसी पूजा-पाठ में कलश की स्थापना मुख्य रूप से की जाती है। कलश के संबंध में मान्यता है कि ये सभी तीर्थों का प्रतीक होता है, कलश में सभी देवी-देवताओं की मातृ शक्तियां होती हैं, इसके बिना पूजा-पाठ पूर्ण नहीं हो पाती हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए कलश से जुड़ी कुछ खास बातें…

कलश से प्राप्त हुई थीं सीता

त्रेता युग में राजा जनक जब खेत में हल चला रहे थे, तब हल भूमि के अंदर गड़े हुए कलश पर टकराया। राजा ने कलश निकाला तो उसमें से कन्या प्राप्त हुई। इसी कन्या का नाम सीता रखा गया। समुद्र मंथन के समय अमृत कलश प्राप्त हुआ था। देवी लक्ष्मी के सभी चित्रों में कलश मुख्य रूप से दर्शाया जाता है। इन्हीं कारणों से पूजा में कलश की स्थापना करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है।

तीनों देवों की शक्तियां होती हैं कलश में

जब पूजा में कलश स्थापित किया जाता है तो यह माना जाता है कि कलश में त्रिदेव और शक्तियां विराजमान हैं। साथ ही कलश में सभी तीर्थों का और सभी पवित्र नदियों का ध्यान भी किया जाता है। सभी शुभ कार्यों में कलश स्थापित करने का विधान है। गृह प्रवेश, गृह निर्माण, विवाह पूजा, अनुष्ठान आदि में कलश की स्थापना की जाती है।

कैसे बनता है कलश

पूजा में सोने, चांदी, मिट्टी और तांबे का कलश रख सकते हैं। ध्यान रखें कि लोहे का कलश पूजा में नहीं रखना चाहिए। कलश को लाल वस्त्र, नारियल, आम के पत्तों और कुशा की मदद से तैयार किया जाता है।

कलश स्थापना से जुड़ी खास बातें

पूजा करते समय कलश जहां स्थापित करना हो, वहां हल्दी से अष्टदल बनाया जाता है। उसके ऊपर चावल रखे जाते हैं। चावल के ऊपर कलश रखा जाता है। कलश में जल, दूर्वा, चंदन, पंचामृत, सुपारी, हल्दी, चावल, सिक्का, लौंग, इलायची, पान, सुपारी आदि शुभ चीजें डाली जाती हैं। इसके बाद कलश के ऊपर स्वस्तिक बनाया जाता है। कलश के ऊपर आम के पत्तों के साथ नारियल रखा जाता है। कुछ लोग कलश पर नारियल को लाल कपड़े से लपेट कर रखते हैं। इसके बाद धूप-दीप जलाकर कलश का पूजन किया जाता है।

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