पुत्रदा एकादशी

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पुत्रदा एकादशी
पुत्रदा एकादशी

पौष शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा गया। नि:संतान दंपती के लिए यह व्रत काफी लाभदायक बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से योग्य संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। जिन्हें संतान होने में बाधाएं आती हैं उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। इस उपवास को रखने से संतान संबंधी हर चिंता और समस्या का निवारण हो जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। प्रात: स्नान करके पूजन और उपवास करना चाहिए। भगवान विष्णु (शालिग्राम) को गंगाजल से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। पुत्रदा एकादशी को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी,बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

पुत्रदा एकादशी को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

पुत्रदा एकादशी
पुत्रदा एकादशी

धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं ।समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता है।

पूर्व काल की बात है भद्रावती पुरी में सुकेतुमान नाम के राजा राज्य करते थे उन की रानी का नाम चंपा था। राजा को बहुत समय तक कोई पुत्र नहीं प्राप्त हुआ इसलिए दोनों पति-पत्नी चिंतित रहते थे। राजा के पितर उनके दिए हुए जल को शोकोचछवास से गर्म करके पीते थे ।राजा और उनकी पत्नी दोनों बहुत दुखी रहते थे एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर गहन वन में गया। उसने किसी को कुछ बताया नहीं जंगल में जाकर देखा कि एक उत्तम सरोवर के निकट बहुत से मुनि बैठे हुए हैं और जो आश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं ।राजा का उसी समय दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा सरोवर के तट पर मुनि वेद पाठ कर रहे थे।

राजा ने उन सब को अस्तवन किया बार-बार दंडवत करके मुनियों से बोला हे मुनिवर श्रेष्ठ हम पर कृपा कीजिए। आप कौन हैं ?उन्होंने कहा कि हम लोग विश्वदेव है यहां स्नान के लिए आए हैं । माघ मास निकट आया है ।आज से पांचवे दिन माघ मास का स्नान प्रारंभ हो जाएगा।

आज ही पुत्रदा नाम की एकादशी है जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करेगा उसको पुत्र प्राप्त होगा राजा ने कहा हे विश्व देवगण यदि आप प्रसन्न है तो मुझे पुत्र दीजिए। राजा ने उस दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी के दिन पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर प्रणाम किया। तदंतर घर आने पर रानी ने गर्भ धारण किया और उसे एक उत्तम पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्रदा एकादशी का जो व्रत करता है वह इस लोक में मृत्यु पाने के पश्चात स्वर्गगामी होता है। इस महात्मय को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।

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