पीएम मोदी का अमेरिका दौरा ट्रेड, अफगानिस्तान और-कूटनीतिक लिहाज से अहम है। संयुक्त राष्ट्र में 25 सितंबर को संबोधन से पूर्व पीएम मोदी की अमेरिका के साथ द्विपक्षीय वार्ता, व वाड की बैठक से अफगानिस्तान में तालिबान के साा में आने के बाद से विश्व में उत्पन्न स्थिति में भारत को अपनी दिशा तय करने में मदद मिलेगी। तालिबान हुकूमत के बाद जिस प्रकार चीन व पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के साथ पर्गिबदाई है, उससे भारत का सीमा सुरक्षा व आतंकवाद को लेकर सतर्क होना जरूरी है। तालिबान सरकार को लेकर भारत ने अभी तक अपना स्टैंड साफ नहीं किया है, इतना अवश्य कहा है कि वह लोकतांत्रिक ब्लॉक के साथ रहेगा। पूर्व में भारत सरकार हमेशा तालिबान के कट्टर इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ रहा है। इस बार भी तालिबान ने सत्ता में आने के बाद से शरीयत के अनुसार शासन, महिलाओं पर पाबंदियां, अपराध पर हाथ काटने की सज, अफगानों के साथ हिंसा आदि से दिख रहा है कि तालिबान किस प्रकार का शासन चलाएगा। भारत कोई उम्मीद नहीं रख सकता है। ऐसे में पीएम मोदी तालिबान पर अपने मित्र देशों की नब्ज टटोलना चाहेंगे।
इस यात्रा का आगाज पीएम ने पांच शीर्ष कंपनियों के सीईओ के साथ बैठक से की है, आनेवाले वत में भारत में डिजिटल, 5 जी, डाय, हेल्थ, एजुकेशन, नवीनीकरण ऊर्जा आदि क्षेत्र में वालकॉम, एडोब, जनरल एटोनिस, फर्स्ट सोलर, क्लैकस्टोन जैसी दिग्गज कंपनियों का नया निवेशा देखने को मिल सकता है। माइक्रोसॉफ्ट, डेल, गुगल, फेसबुक, आईबीएम पहले से ही भारत में काम कर रही है। भारत के डिजिटल सेटर, एआई, लाउड कंप्यूटिंग, रॉबोटिस, ई-वे व सोलर-ग्रीन एनर्जी आदि क्षेत्र में नए निवेश व हाईटेनोलॉजी की जरूरत है। इस लिहाज से पीएम की सीईओ संग बैठक नए निवेश की राह खोल सकता है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारतीय मूल की कमला हैरिस से पीएम मोदी की पहली मुलाकात में अफगानिस्तान, आंतकवाद, लोकतंत्र को खतरा व हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा हित पर चर्चा अमेरिका व भारत की वैश्विक चिंता को दर्शाती है। साा में आने से पहले कश्मीर में मानवाधिकार को लेकर भारत के प्रति वक्रदृष्टि रखने वाली कमला हैरिस का मोदी के साथ वार्ता में एक बार भी कश्मीर का जिक्र नहीं करना और आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका का स्वत: संज्ञान लेते हुए उल्लेख करना दिखाता है कि वह कश्मीर पर पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रोपेगेंडे को समझ चुकी हैं।
अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने के तुरंत बाद पाकिस्तान का तालिबान सरकार के साथ खुल कर आना उसका आतंकवाद को समर्थन करना ही है। पहले की तरह इस बार भी अमेरिका ने आतंकवाद पर पाकिस्तान का दोहरा रवैया देखा। एक तरफ वह आतंकवाद पर कार्रवाई की बात करता है, दूसरी तरफ वह आतंकी गुटों को संरक्षण देता है व वैधिक आतंकी गुट तालिबान से दोस्ती करता है। यूएस को पाक पर अंकुश लगाकर रखना होगा।ग्लोबलस्तर पर आतंकवाद के चलते अलग-अलग हो चुके पाक संयुत राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर समर्थन जुटाने की भी भरपूर कोशिश करता है। हालांकि इस बार भी मित्र देशों से सहयोग नहीं मिला। सऊदी अरब, ईरान ने यूएन में कश्मीर का नाम तक नहीं लिया तो तुर्की के तेवर नरम रहे। पीएम मोदी ने ऑस्ट्रेलिया व जापान के पीएम से भी बात की है। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से नई दिल्ली की चिंता रही है कि युद्धग्रस्त देश की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाए। पीएम की इस यात्रा का मकसद यही सुनिश्चित करना है। वह वैश्विक हित में है कि तालिबान सरकार को वैश्विक मान्यता नहीं मिले। वाड देशों (अमेरिका, जापान, भारत व ऑस्ट्रेलिया) को चीन पर नकेल कसे रहना होगा। पीएम मोदी के इस अमेरिका दौरे से भारत के कई कूटनीतिक हित सधेगे।