पीएम का अफवाहों पर निशाना

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गरीकता संशोधन कानून और एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन) पर बीते रविवार को दिल्ली में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करते हुए सरकार की मंशा बताई। यह जरूरी भी था। बीते कुछ हतों से सीएए के विरोध में देशव्यापी विरोध हुए हैं। अकादमिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और भाजपा विरोधी दलों के धरना-ृप्रदर्शन और उसके दौरान हुई हिंसा से कई स्थानों पर जान-माल का नुकसान होने के साथ ही कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई थी। यह जरूरी हो गया था कि इस मामले में पीएम की तरफ से कोई संदेश जनता के बीच जाए। इस लिहाज से पीएम का संबोधन मायने रखता है। सीएए के बारे में उन्होंने देश को विस्तार से बताया कि कानून नागरिकता देने के लिए है ना कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए।

वैसे भी यह पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंयकों के लिए है, जिन्हें अपनी आस्था के चलते प्रताडि़त होना पड़ा है। इसमें हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी सरकार के पास एनआरसी विषय अभी विचार के लिए नहीं है। इसलिए उसके कल्पित आधार को लेकर विपक्षी पार्टियां अल्पसंयकों के मन में डर पैदा कर रही हैं। यह ठीक है कि अभी यह सरकार की विषय सूची में नहीं है।होता तो कैबिनेट में आता और उस पर विचार-विमर्श होता। पर एनआरसी को लेकर अफवाहों का बाजार इसलिए गरम हो गया कि खुद सीएए पर बहस के दौरान संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि उनकी सरकार देशभर में एनआरसी लाएगी और लागू करेगी। उनके टि्वीटर हैंडिल से इस तरह की बात पब्लिक हुई थी, लेकिन पिछले दिनों प्रबल विरोध के बीच वो ट्वीट डिलीट कर दिया गया। इससे इस आशंका को बल मिल गया कि मोदी सरकार एनआरसी लाएगी। इससे पहले सीएए के जरिये गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना चाहती है ताकि राष्ट्रव्यापी अभियान में उन वर्गों को परेशानी न उठानी पड़े।

इस आशंका की पृष्ठभूमि में देखें तो असम में एनआरसी के फाइनल ड्राट के बाद नागरिकता की लिस्ट से छूट गये लाखों हिन्दू-मुसलमानों को लेकर सभी ने एक स्वर से असंतोष जताया। पर हैरत असम भाजपा के विरोध पर इसलिए कि इसी पार्टी ने दम भरकर एनआरसी का समर्थन करते हुए घुसपैठियों को खदेडऩे की बात की थी। यही वजह है कि सीएए पर विरोधी दल सीधे तौर पर हमलावर होने के बजाय एनआरसी के असम मॉडल को सामने रखकर यहां के अल्पसंयकों को डरावनी तस्वीर दिखा रहे हैं। ऐसी स्थिति में पीएम की तरफ से अभी एनआरसी बिल पर विचार नहीं हो रहा। यह आश्वासन भड़की आग पर वाटर कैनन का काम कर सकता है। जिस तरह हाल के नेतृत्वहीन आंदोलनों में जगह-ृजगह हिंसा हुई, दर्जनों के करीब बेकसूर मारे गए, इससे देश की तस्वीर वैश्विक मंच पर भी दागदार हुई है। देश वैसे ही आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा हैए विकास पर लगातार पराभव की तरफ दिखती है। महंगाई और बेरोजगारी के कारण पहले से असंतोष और गहरा हुआ है। ऐस में अफ वाहें अपना काम आसानी सेकर जाती हैं। यही पिछले दिनों हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए पीएम की सफाई के बाद आंदोलन थमेंगे।

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