संयोग मामूली नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रेस कांफ्रेस की जब खबरे आ रही थी तो दूसरी और इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान की जनता को संबोधित कर रहे थे। फ्रांस के शहर बिआरित्ज में मोदी-ट्रंप का संदेश कुछ और कह रहा था तो इमरान खान कुछ और। प्रधानमंत्री मोदी ने वहा कहां कि कश्मीर का मामला दोनों देश सुलझा लेंगे तो डोनाल्ड ट्रंप ने भरोसा जताते हुए कहा कि उन्हें यक़ीन है कि भारत और पाकिस्तान मिलकर सभी आपसी मुद्दे सुलझा लेंगे। यही नहीं डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक मीडिया को बताया कि रविवार को भी प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी और मोदी ने उन्हें बताया कि कश्मीर में हालात नियंत्रण में हैं।
जाहिर है अमेरिका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ, भारत के पक्ष में खड़े है। यदि यह स्थिति है तो सितंबर के आखिरी सप्ताह तक का भारत को वक्त मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की आम बैठक में भाषण करेंगे और तब वापिस यदि डोनाल्ड ट्रंप से उनकी मुलाकात हुई तो भारत आश्वस्त कर सकेगा कि दो महिने हो गए कश्मीर में सब नियंत्रण में है। चिंता न करें।
सवाल है कि अगले एक महीने में पाकिस्तान और भारत में मसला सुलझाने की क्या कोई पहल हो सकती है? कतई नहीं। भारत का यदि दो देशों के बीच रिश्तों का मसला होने का स्टेंड है तो यह भी भारत का रूख है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है। इस मामले में पाकिस्तान का क्या मतलब। हाल में सरकार ने साफ तौर पर कहा हुआ है कि पाकिस्तान से बात होगी भी तो वह पाक अधिकृत कश्मीर को ले कर होगी।
इसलिए मोदी और ट्रंप, भारत और अमेरिका के रिश्तों में यह मोटी सहमति हुई मान ली जाए कि जम्मू-कश्मीर में भारत को जो करना है वह करें, बस हालात नियंत्रण में रखे और पाकिस्तान को हम संभाल लेंगे।
तब सवाल है कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने आज ही उस वक्त क्यों पाकिस्तान की जनता को संबोधित किया जब दुनिया को ट्रंप ने बताया कि अमेरिका को चिंता नहीं है। वह न मध्यस्थता कर रहा है और न कश्मीर घाटी के हालातों को ले कर बैचेन है।
जाहिर है यह संयोग पर्दे के पीछे की कूटनीति लिए हुए हो सकता है। अमेरिका ने या तो दोनों देशों को कहा है कि उन्हे जो करना हो करें। वह रोकेगा या टोकेगा नहीं। या यह संभव है कि पाकिस्तान को अमेरिका ने समझा दिया हो कि विरोध करते हुए चुपचाप बैठे रहों। बावजूद इसके आज जिस अंदाज में इमरान खान ने राष्ट्र को संबोधित किया है उससे पंगा बढ़ने का खटका भी होता है। लगता नहीं कि पाकिस्तान कोई दबिस में है। इमरान खान ने पाकिस्तानी अवाम को जिस अंदाज में संबोधित किया है वैसे पहले किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ने नहीं किया।
इमरान खान ने दो टूक अंदाज में कहा कि हम कश्मीर के लोगों के लिए किसी भी सीमा तक जाएगे। वक्त आ गया है जब पाकिस्तान की कश्मीर नीति ‘निर्णायक’ रूप अख्तियार करें। उन्होने बालाकोट जैसे आपरेशन की आंशका बताते कहा – ये कहेंगे कि पीओके से दहशतगर्द और इस्लामिक दहशतगर्द आ रहे हैं। दहशतगर्द मारने के लिए फौजें बढ़ाने पर मजबूर हैं। इन्होंने आजाद कश्मीर में बालाकोट की तरह का एक हमला प्लान किया था। लेकिन अब हमारी फौजे पीओके में पूरी तरह तैयार हैं। अब भारत के लिए कोई भी कार्रवाई करना मुश्किल होगा।
इसके अलावा कश्मीर मसले को पाकिस्तानी जनता का एजेंड़ा बनाते हुए इमरान ने कहा- हम हर हफ्ते एक कार्यक्रम करेंगे, जिसमें हमारी पूरी अवाम निकलेगी। इस शुक्रवार 12 से साढ़े 12 बजे तक आधा घंटा लोगों को बताएं कि कश्मीर में क्या हो रहा है और ये भी बताएं कि हम उनके साथ खड़े हैं। जब तक उन्हें आजादी नहीं मिलेगी हम उनके साथ खड़े रहेंगे। 27 सितंबर तक हफ्ते में एक बार हमें ये इवेंट करनी है। वे संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में सितंबर में पूरी दुनिया को कश्मीर के बारे में बताएंगे। अहंकार की वजह से मोदी ने ऐतिहासिक भूल की है।
जाहिर है कि पाकिस्तान का हल्ला बोल थमने वाला नहीं है। इमरान खान भड़काने वाले बयान देते रहेंगे। बहुत संभव है कि अब अफगानिस्तान से एक सितंबर अमेरिकी सेना के हटने का मामला भी टले। भारत के हित में है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की फौजे बनी रहे। तालिबानियों के हाथों में सत्ता न जाए। महिने-दो महिने यदि मौजूदा हालातों जैसे रहे तो सर्दियों के आने के बाद स्थितियों में और भी परिवर्तन हो जाना है।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…