पाकिस्तान ने कहा कि वह कारिडोर उद्घाटन के मौके पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को व्यौता भेजेगा। वहां के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की बात में कितना दम है वही जानें लेकिन स्वाभाविक है पूर्व पीएम इस तरह के विवादास्पद निमंत्रण को कतई स्वीकार नहीं करेंगे। यूएनजीए में कश्मीर मुद्दा उठाये जाने पर चीन, मलेशिया और तुर्की जैसे चंद देशों को छोड़ दें तो किसी अन्य मुल्क ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे पाकिस्तानी निजाम की खिसियाहट लाजिमी है। अपनी इसी झेंप को मिटाने के लिए पाकिस्तान की तरफ से भारत के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को दावत देने का प्लान है। यह शिगूफा जानबूझकर छेड़ा गया है। ताकि भारत में इस पर सियासी गहमागहमी बढ़े और देश का शीर्ष नेतृत्व को भी लगे कि उसे दरकिनार किया जा रहा है। दरअसल हर तरफ से नाकाम पाकिस्तानी निजाम को कांग्रेस के जरिए अपनी खीझ मिटाने का मौका मिलता है। पहला मौका नहीं है पहले भी पाकिस्तान को कांग्रेस अपनी सियासी वजहों से रास आती रही है।
सर्जिकल स्ट्राइक से लेक र जम्मू-कश्मीर में कथित सैन्य अत्याचार तक। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने अनुच्छेद 370 हटने के कुछ दिन बाद कहा था कि उन्हें ऐसी खबरें मिल रही हैं, जिसमें जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है। कश्मीर की एक राजनीतिक फ्रंट से जुड़ी शहला राशिद ने तो बकायदा इसी तर्ज पर पोस्ट करते हुए भारतीय सेना पर गंभीर आरोप लगाया था। पाकिस्तान ने इसी तरह की धारणाओं का यूएनजीए में भी उल्लेख किया था जहां पाक पीएम ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी भारत के पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान का हवाला दिया था। यह बात और कि अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी ने पाक के आरोपों को अनसुना कर दिया। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की बदली स्थिति और उस पर सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था से पाक प्रायोजित आतंक वादियों की दाल नहीं गल रही, जो घुसपैठ की कोशिश भी करते हैं, उन्हें तमाम करने में भारतीय फौज देर नहीं कर रही। इससे घाटी के भीतर मौजूद अलगाववादी ताकतें और उनको सियासी और नैतिक समर्थन देने वाली कुछ जमातें भी मसले को पांच अगस्त से पहले की स्थिति में देखना चाहती हैं।
इसी वजह से बेचैनी दोतरफा है। हालांकि देश के भीतर ऐसे लोगों को चिन्हित किए जाने का काम सावधानी पूर्वक चल रहा है ताकि कोई बखेड़ा खड़ा ना हो। इस बीच अच्छी पहल और कोशिश यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ से हो रही है। राज्य के विभिन्न संस्थानों में पढ़ रहे छात्र- छात्राओं से उन्होंने पिछले दिनों अपने सरकारी आवास पर मुलाकात की थी और पूरे सहयोग का भरोसा दिखाया था। एक तरह से कश्मीरियों का विश्वास जीतने की कोशिश हो रही है, जो एक अच्छा कदम है। जम्मू-कश्मीर में भी धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य करने की कोशिश हो रही है। इससे पाकिस्तान की मंशा कामयाब नहीं हो पा रही है और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर किसी का साथ ना मिलने से स्वाभाविक है। करतारपुर के उद्घाटन अवसर को सियासी रंग देने के लिए पूर्व पीएम का नाम उछाला गया है। पर पाकि स्तान का मिजाज ही ऐसा है, उसके पीएम अपने भाषण के लिए पत्नी को शुक्रिया अदा करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस्लामोफोबिया का जिक्र किस के इशारे पर हुआ।