पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का अजीब सा भाषण

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्तराष्ट्र संघ महासभा में ऐसा भारत-विरोधी भाषण दिया, जिसका तगड़ा जवाब अब नरेंद्र मोदी को देना ही पड़ेगा। दुनिया के करोड़ों श्रोताओं को ऐसा लगेगा कि ये दोनों प्रधानमंत्री संयुक्तराष्ट्र को नहीं, एक-दूसरे को भाषण दे रहे हैं। इमरान खान ने अफगानिस्तान और अरब-इस्राइल संबंधों पर तो काफी सम्हलकर बोला लेकिन कश्मीर और भारतीय मुसलमानों के बारे में वे इस तरह बोल रहे थे मानो वे असदुद्दीन औवेसी या राहुल गांधी हों। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वे कोई विदेशी प्रधानमंत्री हैं। यदि उन्हें कश्मीर की आजादी और भारतीय मुसलमानों की इतनी चिंता है तो उनसे कोई पूछ सकता है कि पाकिस्तान में जो रहते हैं, वे लोग क्या मुसलमान नहीं हैं ?

उनके साथ पाकिस्तान की सरकारें और फौज कैसा सलूक कर रही हैं? पाकिस्तानी कश्मीर और गिलगिट-बल्टीस्तान का क्या हाल है ? हमारे कश्मीर के मुसलमान जितने परेशान हैं, क्या बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान के मुसलमान उनसे कम तंग हैं ? इन दोनों पाक-प्रांतों में पाकिस्तानी पुलिस और फौज ने जैसा खून-खराबा किया है, क्या वैसा हिंदुस्तान में होता है ? हां, भारत में हिंदू-मुस्लिम दंगों की वारदातें हुई हैं लेकिन अदालतों ने हमेशा इंसाफ किया है। जिसका भी दोष सिद्ध होता है, वह सजा भुगतता है, चाहे हिंदू या मुसलमान ! इमरान ने गुजरात के दंगों से लेकर शरणार्थी कानून को लेकर हुए दंगों और गिरफ्तारियों को सिलसिलेवार गिनाया है और मुसलमानों पर होनेवाले जुल्मों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्व की विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया है। उसकी तुलना उन्होंने हिटलर के नाजीवाद से की है। यदि इमरान को भारतीय राजनीति और संघ के आधुनिक दर्शन की पूरी जानकारी होती तो मुस्लिम लीग की इस 80-90 साल पुरानी लकीर को वे संयुक्तराष्ट्र में नहीं पीटते।

क्या उन्हें संघ के मुखिया मोहन भागवत का यह कथन उनके भाषण-लेखक अफसरों ने नहीं बताया कि भारत का प्रत्येक नागरिक, जो भारत में पैदा हुआ है, वह हिंदू है। उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (शरणार्थी कानून- सीएए) के बारे में भी कहा कि मजहब के आधार पर पड़ौसी देशों के शरणार्थियों में भेद-भाव करना उचित नहीं है। जहां तक कश्मीर का सवाल है, धारा 370 तो कभी की ढेर हो चुकी थी। बड़ी बात यह है कि उसके औपचारिक खात्मे के बाद सरकार ने ऐसा इंतजाम किया कि कश्मीर में खून-खराबा न हो। इमरान यह कहना भी भूल गए कि कश्मीर, गुजरात, सीएए और सांप्रदायिक दंगों पर इमरान से ज्यादा सख्ती और सच्ची सहानुभूति भारत के अनेक हिंदू नेताओं ने दिखाई है। आतंक और हिंसा के गढ़ में बैठकर इमरान के मुंह से शांति की बात अजीब-सी लगती है।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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