पांच को ही राम मंदिर शिलान्यास का मतलब

0
284

ऐसा बताया गया था कि राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने राममंदिर के शिलान्यास के लिए प्रधानमंत्री को तीन और पांच अगस्त की दो तारीखें भेजी थीं। ज्यादातर लोग मान रहे हैं और सही भी मान रहे हैं कि यह सिर्फ दिखावा था, जिसका मकसद यह मैसेज देना था कि फैसले ट्रस्ट की ओर से हो रहे हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार की ओर से पांच अगस्त की तारीख तय की गई है। राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने उस हिसाब से तैयारियां की हैं। वैसे भी तैयारियां ट्रस्ट से ज्यादा सरकार ही कर रही है। तभी मीडिया में यह भी खबर आई थी कि दो सौ मेहमानों की सूची को प्रधानमंत्री कार्यालय ने हरी झंडी दी। अगर आयोजन ट्रस्ट का होता तो उसे पीएमओ की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। दूसरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री हर दूसरे दिन तैयारियों का जायजा लेने अयोध्या जा रहे हैं। बहरहाल, शिलान्यास के लिए पांच अगस्त की तारीख तय करने के लिए क्या तर्क है, यह तय करने वाले ही बता सकते हैं। पर कई लोगों को लग रहा है कि इसका एक संदर्भ है। उनका कहना है कि यह मामला जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाने से जुड़ा है। कहा जा रहा है कि पिछले साल पांच अगस्त को ही जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्ज खत्म किया गया था, राज्य का विभाजन हुआ था और लगभग सारे नेता गिरफ्तार करके जेल में डाले गए थे। इस आधार पर उनका कहना है कि इस तरह से राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को जोड़ा जा रहा है और यहीं कारण है कि भादो के महीने में शुभ तिथि नहीं होने की आपत्तियों के बावजूद पांच अगस्त को शिलान्यास हो रहा है। उस दिन भाजपा जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के एक साल पूरे होने पर बड़े जश्न और समारोह की तैयारी भी कर रही है। दोनों चीजें एक साथ होंगी। नाम नहीं काम बदलो भाजपा ने एक और मंत्रालय का नाम बदल दिया।

अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय कहा जाएगा। पहले वैसे इसे शिक्षा मंत्रालय ही कहते थे पर बाद में जब शिक्षा का क्षेत्र व्यापक होता गया और कई क्षेत्र इसके साथ जुड़ते गए तो इसका नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया। हालांकि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है कि इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहें या शिक्षा मंत्रालय। वैसे ही जैसे फॉरेन मिनिस्ट्री को मिनिस्टरी ऑफ एक्सटर्नल अफेयर कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। कुल मिला कर नाम बदल कर उसे एक उपलब्धि बताने की बरसों से चल रही राजनीति का ही यह भी एक हिस्सा है। नाम बदलने से भी लोगों को लगता है कि सरकार कुछ काम कर रही है। दूसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उन्होंने जल संसाधन मंत्रालय का नाम बदल कर जल शक्ति मंत्रालय कर दिया। इसका नाम बदल देने से पिछले एक साल में भारत में कोई जल क्रांति हुई हो, इसकी कोई मिसाल नहीं है। इसी तरह से अपनी पहली सरकार में केंद्र ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर उसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया था। हालांकि उसके बाद भी ऐसी कोई खबर नहीं है कि देश में कृषि सेक्टर का कोई भला हो गया या किसानों की स्थिति में कोई बड़ा गुणात्मक परिवर्तन आ गया। इसी कड़ी में अब सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। ध्यान रहे इस मंत्रालय में पिछले छह साल से सबसे ज्यादा प्रयोग हुए हैं और तीन अलग-अलग इलाके के और अलग अलग पृष्ठभूमि के लोगों ने यह मंत्रालय संभाला है। बहरहाल, केंद्र में सरकार बनाते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग का नाम नीति आयोग कर दिया था। जब से इस संस्था का नाम बदला है और इसमें रिटायर सरकारी बाबुओं का वर्चस्व हुआ है तब से देश में योजना और नीति दोनों का हाल बिगड़ा हुआ दिख रहा है।

इसी तरह सरकार ने विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल शुरू कराया। यह अलग बात बात है कि इन दिव्यांगों को अब भी बसों या ट्रेनों में चढऩे जैसे छोटे से काम में उतनी ही दिक्कत आती है, जितनी पहले आती थी। सरकार ने शहरों, सड़कों और ट्रेन स्टेशनों के तो इतने नाम बदले हैं, सब यहां लिखे भी नहीं जा सकते है। उनकी संख्या बहुत बड़ी है। भाजपा अपनों को समझाती यों नहीं? किसी भी पार्टी का कोई नेता अनाप-शनाप बयान देता है या बेसिरपैर की बातें करता है तो पार्टी उस पर सफाई देती है और अपने नेता को बुला कर समझाती या डांटती-फटकारती है। वैचारिक मामले अलग होते हैं। उन पर हो सकता है कि किसी नेता की अलग राय हो। उस मामले में पार्टी चुप रहे तो वह अच्छी बात होती है क्योंकि हर नेता की अपनी सोच और समझ का सम्मान होना चाहिए। पर भाजपा अब ऐसी बातों पर भी चुप रह रही है, जो पूरी तरह से बेसिरपैर के हों। जैसे राजस्थान के एक नेता और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भाभीजी ब्रांड पापड़ लांच किया और कहा कि इसमें कोरोना को रोकने की सामग्री मिलाई गई है। दुनिया भर में इसका मजाक बना कर पार्टी चुप रही। भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि पांच अगस्त तक रोज शाम सात बजे पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो कोरोना से मुक्ति मिल जाएगी। उधर पश्चिम बंगाल में तो भाजपा के नेता कोरोना शुरू होने के बाद से ही गोमूत्र से इसे ठीक करने की बात कर रहे हैं और उन्होंने गोमूत्र पार्टी भी रखी थी। त्रिपुरा के मुयमंत्री बिप्लब देब पहले भी कई बार अपने बयानों से विवाद पैदा कर चुके हैं पर इस बार उन्होंने जाटों और सिखों के बारे में जो कहा उससे उनकी अलग ही समझदारी जाहिर हुई। सारे उपचुनाव या सितंबर में?

चुनाव आयोग ने कई उपचुनाव टाल दिए हैं, जिसके बाद इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि बिहार में विधानसभा का चुनाव होगा या नहीं या मध्य प्रदेश में जो सीटें खाली हुई हैं उनका क्या होगा, पर जानकार सूत्रों के मुताबिक सारे उपचुनाव एक साथ सितंबर में होंगे। बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग मध्य प्रदेश को ध्यान में रख कर उपचुनावों की तैयारी कर रहा है। जो उपचुनाव अगस्त में होने थे उनके नहीं होने से कोई संवैधानिक संकट नहीं खड़ा हो रहा है। जैसे बिहार की वाल्मिकीनगर सीट से जीते जदयू के सांसद बैधनाथ प्रसाद महतों का निधन 25 फरवरी को हुआ था। इस लिहाज से इस सीट पर 25 अगस्त से पहले चुनाव हो जाना चाहिए। पर चुनाव आयोग ने इसे टाल दिया है। इसी तरह केरल, उत्तर प्रदेश, असम, बिहार आदि राज्यों में विधानसभा की सात सीटों पर भी चुनाव टल गया है। अब इन सारी सीटों पर एक साथ सितंबर में चुनाव हो सकता है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में अभी 14 मंत्री ऐसे हैं, जो विधायक नहीं हैं। इनको शपथ लेने के बाद छह महीने के अंदर विधायक बनना होगा। इसमें अच्छी बात यह है कि इनमें से सिर्फ दो ने ही मार्च में शपथ ली थी और उनको सितंबर के आखिरी हफ्ते तक विधायक बनना होगा। बाकियों के लिए दिसंबर तक का समय है। ध्यान रहे मध्य प्रदेश में 27 सीटें खाली हो चुकी हैं और वहां के उपचुनाव को मिनी विधानसभा चुनाव कहा जा रहा है। दो मंत्रियों की कुर्सी बचाने के लिए सितंबर में चुनाव कराना होगा। अगर हालात ठीक नहीं हुए तो भाजपा को ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के इन दोनों मंत्रियों को समझा बूझा कर एक-दो महीने इंतजार करने को कहना पड़ सकता है। फिर ये चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होंगे, जब बिहार का चुनाव होना है। अगर तब तक भी कोरोना के हालात नहीं सुधरे तो चुनाव अगले साल तक टलेगा।

राज्यों के अधिकारी दिल्ली नहीं आना चाहते! यह कमाल भी इसी सरकार में हो रहा है कि राज्यों के अधिकारी डेपुटेशन पर दिल्ली नहीं आना चाह रहे हैं। निश्चित रूप से दिगी में केंद्र सरकार के अधिकारियों के कामकाज और मौजूदा सरकार के साथ उनके तालमेल को लेकर कुछ ऐसी खबरें उन तक पहुंच रही हैं, जिससे वे दिगी आने से कतरा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि राज्य सरकारें अधिकारियों की कमी का बहाना बना कर कम नाम भेज रही हैं। तभी इस बारे में उन्हें चेतावनी देनी पड़ रही है। खबर है कि केंद्र सरकार के कार्मिक व प्रशिक्षण मंत्रालय ने राज्यों को और अधिकारियों को इस बारे में चेतावनी दी है। असल में सरकार ने नवंबर में राज्यों से दिल्ली आने की इच्छा रखने वाले अधिकारियों के नाम भेजने को कहा था। लेकिन राज्यों से बहुत कम नाम आए। खासतौर से निदेशक स्तर के अधिकारियों के नाम बहुत कम आए। ध्यान रहे निदेशक स्तर के अधिकारी ऐसे आईएएस होते हैं, जिनको राज्यों में कलेक्टर बनने की संभावना रहती है। यह अलग बात है कि अब राज्यों में जिलों की संया के मुताबिक इतने ज्यादा आईएएस हो गए हैं कि बहुत कम ही अधिकारियों को कलेक्टर का लंबा कार्यकाल नसीब हो रहा है। इसके बावजूद राज्यों से नाम नहीं आ रहे हैं। तभी कहा जा रहा है कि डीओपीटी ने चिंता जताते हुए कहा कि कम नाम की वजह से काडर मैनेजमेंट मुश्किल हो रहा है। विभाग ने यह चेतावनी भी दी है कि काडर रिव्यू प्रपोजल के समय यह देखा जाएगा कि किस राज्य से कितने नाम आए थे। बाकि जगह कोरोना लेकिन भारत में दूसरे मुद्दे! सारी दुनिया में अभी कोरोना वायरस की चर्चा चल रही है। अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हैं इसके बावजूद देश में नंबर एक प्राथमिकता कोरोना का संकट है। राज्य और संघीय सरकार दोनों इससे लडऩे को प्राथमिकता दे रहे हैं।

पर जहां अब हर दिन सबसे ज्यादा केसेज आ रहे हैं, गंभीर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, एक्टिव केसेज की संया बढ़ रही है और वायरस के फैलने का दायरा बढ़ रहा है उस भारत में कोरोना अब प्राथमिकता में नहीं है। किसी भी टेलीविजन चैनल की प्राइम टाइम की बहस में कोरोना नहीं है और ज्यादातर अखबारों ने तो पहले पन्ने से या तो कोरोना की खबरों को हटा दिया है या एक-दो कॉलम में संक्रमितों की संया बता कर इसे निपटाया हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जाने-अनजाने में सरकार और सरकारी एजेंसियों और सत्तारूढ़ पार्टी ने इतने नए मुद्दे दे दिए हैं सब उसी में उलझे हैं। पिछले 20 दिन से राजस्थान में सियासी उठापटक चल रही है। एक तरह से लेम डक स्थिति है। एक सौ से ज्यादा विधायक एक होटल में हैं तो 19 विधायक कहीं और होटल में हैं। चूंकि राजनीति इस देश के लोगों का सबसे खास शगल और टाइमपास है तो देश राजस्थान की राजनीति को पूरी दिलचस्पी से देख रहा है। केंद्र सरकार और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि राजनीतिक मनोरंजन में कोई कमी न रह जाए। इसी बीच राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने राम मंदिर के लिए भूमि पूजन और शिलान्यास का कार्यक्रम रख दिया। लोग कह रहे हैं कि कोरोना है, चतुर्मास है, भादो का महीना है, शुभ मुहूर्त नहीं है पर न ट्रस्ट को इसकी परवाह है और न उत्तर प्रदेश के राम भक्त मुख्यमंत्री को। सो, पिछले दो हफ्ते से शिलान्यास की चर्चा है। इसी बीच फ्रांस से खरीदा गया लड़ाकू विमान राफेल आ गया। पिछले एक हफ्ते से सारे चैनल बता रहे थे कि कैसे राफेल आने की खबरों से चीन की नींद उड़ी है। इसे कहां रखा जाएगा, कहां तैनाती होगी, कौन-कौन देश निशाने पर होंगे, इसकी क्या खूबियां हैं, कौन उड़ाएगी जैसी बातें, जिसे देख कर वायु सेना के बड़े सैन्य अधिकारी भी हैरान होंगे, इन दिनों चैनलों पर दिखाई जा रही है और अखबारों में छप रहा है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here