नेपाल में भारतीय चैनलों पर रोक

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Indian flag with Nepali flag on a tree stump isolated

नेपाल ने भारत के टीवी चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है। सिर्फ दूरदर्शन चलता रहेगा। यह प्रतिबंध इसलिए लगाया है कि नेपाल के प्रधानमंत्री खड्गप्रसाद ओली और चीन की महिला राजदूत हाउ यांकी के बारे में हमारे किसी टीवी चैनल ने कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी और किसी अखबार ने ओली पर एक नेपाल में भारतीय चैनलों पर रोक

मजाकिया कार्टून भी छाप दिया था। ओली सरकार की यह आक्रामक प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, क्योंकि उसके प्राण इस समय संकट में फंसे हुए हैं लेकिन नेपाल की इस कार्रवाई का संदेश हमारे चैनलों के लिए स्पष्ट है। पहली बात तो यह कि नेपाल ने दूरदर्शन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया ? उसे चालू क्यों रखा ? क्योंकि उस पर गैर-जिम्मेदाराना खबरें और बहसें प्रायः नहीं होतीं। अगर वैसा कभी हो जाए, जैसा कि चीनी राष्ट्रपति के नाम के गलत उच्चारण में हो गया था तो उस पर तुरंत कार्रवाई की जाती है लेकिन यह भी तथ्य है कि दूरदर्शन के मुकाबले गैर-सरकारी चैनलों की दर्शक-संख्या ज्यादा होती है। क्यों होती है ? क्योंकि वे अपने करोड़ों दर्शकों को लुभाने के लिए चटपटे, उत्तेजक और फूहड़ दृश्य और कथन भी जमकर दिखाते हैं। उन पर चलनेवाली बहसों में राजनीतिक दलों के प्रवक्ता एक-दूसरे पर हमले करते हैं।

वे अक्सर शिष्टता और शालीनता की मर्यादा भंग करते हैं। चैनलों के एंकर उन वार्ताकारों से भी ज्यादा चीखते-चिल्लाते हैं। जिस विषय पर बहस होती है, उसके विशेषज्ञ और विद्वान तो कभी-कभी ही दिखाई पड़ते हैं। टीवी के बक्से को अमेरिका में पचास साल पहले ‘इडियट बाक्स’ याने ‘मूरख-बक्सा’ कहा जाता था, वह आजकल प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। उन दिनों कोलंबिया युनिवर्सिटी के मेरे प्रोफेसर इसे ‘मूरख-बक्सा’ क्यों कहते थे, यह बात आजकल मुझे अच्छी तरह समझ में आती है। इसमें शक नहीं कि हमारे कुछ चैनलों और कुछ एंकरों का आचरण सभी पत्रकारों के लिए अनुकरणीय है लेकिन ज्यादातर चैनलों का आचरण, हमारे पड़ौसी देशों के चैनलों का भी, मर्यादित होना चाहिए। यह काम सरकारें करें उससे बेहतर होगा कि मालिक लोग करें। नेपाल सरकार इस वक्त अधर में लटकी हुई है। वह कुछ नेपाली चैनलों पर भी रोक लगानेवाली है। इसीलिए उसने भारतीय चैनलों के विरुद्ध इतना सख्त कदम उठा लिया है लेकिन ओली-विरोधी नेपाली नेता भी भारतीय चैनलों पर रोक का समर्थन कर रहे हैं। यह असंभव नहीं कि कुछ चैनलों पर नेपाल मान-हानि का मुकदमा भी चला दे। बेहतर तो यही है कि इस वक्त ओली अपनी सरकार बचाने पर ध्यान दें। चैनलों पर बोले जानेवाले वाक्यों और चलनेवाली नौटंकियों पर दर्शक भी कितना ध्यान देते हैं। इधर बोला और उधर हवा में उड़ा।

डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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