नेताओं के रवैये में कुछ तो बदलाव दिखाई दिया

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कुछ टीवी चैनलों पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की भेंट-वार्ताएं देखने को मिलीं। चुनाव के इस आखिरी दौर में दोनों नेताओं के रवैए में काफी बदलाव आ गया, ऐसा लगा। दोनों ने एक-दूसरे के लिए गाली-गुफ्ता करने की बजाय एक-दूसरे के प्रति अपनी उदारता और सहनशीलता का बखान किया।

दोनों ने दावा किया कि उनका विरोध करनेवाले उन्हें कितनी ही गालियां दें, वे उन्हें सम्मान देते रहेंगे, उन्हें बर्दाश्त करते रहेंगे। यह पल्टा दोनों ने अचानक कैसे खाया ? हो सकता है कि दोनों ने महसूस किया हो कि उन्होंने एक-दूसरे पर अपशब्दों की बौछार करके अपना स्तर इतना ज्यादा गिरा लिया है कि वे किस मुंह से कहेंगे कि हम राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं?

भारतीय लोकतंत्र के सम्मान की रक्षा का भाव भी उन्हें वैसा कहने के लिए प्रेरित कर सकता है लेकिन इससे भी ज्यादा इस तत्व ने उन्हें प्रेरित किया हो सकता है कि दोनों की पार्टियों को स्पष्ट बहुमत तो मिलना नहीं है। ऐसे में वे अपनी छवि सुधारें ताकि तरह-तरह की प्रांतीय पार्टियों को बहुमत के लिए पटा सकें।

कोई भी प्रांतीय पार्टी ऐसी नहीं है, जिसे भाजपा और कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं लेकिन उनके सहयोग के बिना ये दोनों अखिल भारतीय पार्टियां सरकार नहीं बना सकतीं। इसलिए भी उन्हें अपनी छवि सुधारनी होगी। यह भी वह कारण है, जिसकी वजह से मोदी-जैसा नेता, जो देश का ऐसा पहला नेता है, जो अपना नाम लेकर अपनी बात कहता है (थर्ड परसन सिंग्यूलर में), वह नरम पड़ा है।

यह मोदी के लिए जितना अच्छा है, देश के लिए भी उतना ही अच्छा है। इसमें शक नहीं कि भारत के ज्यादातर चुनाव-क्षेत्रों में करोड़ों मतदाताओं ने जो वोट डाले हैं, वे मोदी के समर्थन या विरोध में डाले हैं। स्थानीय उम्मीदवारों का व्यक्तिगत महत्व बहुत कम रहा है।

ऐसे में यदि मोदी बहुमत के निकट पहुंच गए तो उनका सरकार बनाना सरल हो सकता है और वे दुबारा प्रधानमंत्री बन गए तो वे निश्चित रुप से अबकी बार बेहतर प्रधानमंत्री सिद्ध होंगे।

इस चुनाव के अंतिम दौर ने राहुल की छवि भी काफी बेहतर बना दी है। अपनी भेंटवार्ताओं में राहुल पहले से परिपक्व दिखे हैं। सभाओं के भाषणों की बजाय पत्रकारों से उनकी बातें अधिक दिलकश और स्वाभाविक होती हैं।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं

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