नेकी कर-इल्जाम सिर पर ले

0
509

पिछले दिनों चंडीगढ़ जाना हुआ। इस शहर की यात्रा से पहले या नजदीक पहुंचकर ड्राइवर गाड़ी के कागजों पर एक नजर डाल ही लेता है क्योंकि चंडीगढ़ की ट्रैफिक पुलिस काफी एक्टिव रहती है। पता नहीं चलता कब किस जगह रोककर कागजात चेक करना चाहे। गाड़ी का नंबर बाहर का हो, तो चालान का खतरा और भी रहता है। पहुंचने से पहले कागज चेक किए तो पता चला कि प्रदूषण सर्टिफिकेट अगले दिन रीन्यू होना था। इत्तेफाक से पेट्रोल पंप नजदीक ही मिल गया, जिसमें प्रदूषण जांच की सुविधा थी। मैंने सोचा, चलो चालान से बचने का जुगाड़ तो हो गया। प्रदूषण जांच बूथ पर पहुंचा तो एक सज्जन अपनी छोटी सी कार कभी बूथ के सामने, तो थोड़ा पीछे, थोड़ा दाएं या बाएं किए जा रहे थे। एक महिला भी गाड़ी में बैठी थीं। तीन-चार कोशिशों के बाद भी जब कार फिर से आगे-पीछे करनी पड़ी, तो मुझे लगा कि गाड़ी या तो किसी नौसिखिए के हाथ है, या फिर कोई बुजुर्ग चला रहे हैं। बूथ पर सर्टिफिकेट देने वाले कर्मचारी के हिसाब से कार ऐसी जगह पार्क नहीं हो पा रही थी, जिससे कार की पिछली नंबर प्लेट कैमरे की जद में आ सके।

एक-दो बार फिर चालक को परेशान हुए तो कार से उतरकर मैंने देखा कि एक बुजुर्ग कार की ड्राइवर सीट से बाहर निकल रहे हैं। बूथ वाला कर्मचारी उनसे बोला, ‘गाड़ी तो आपने अभी भी ठीक से नहीं लगाई है।’ हिचकिचाते हुए बुजुर्गवार बोले, ‘एक तो उधर वो गाड़ी खड़ी है, वो फंसा रही है। ऐसे में मैं तो इसे ऐसे ही लगा सकता हूं।’ बात उनकी सही थी। कार पार्किंग में सबसे मुश्किल काम गाड़ी पीछे की तरफ चलाना ही माना जाता है। फिर गाड़ी सीखने के बाद किया गया अभ्यास और बढ़ती उम्र भी दुविधा बन सकती है। खैर, उनकी कार का सर्टिफिकेट बन गया और वह चले गए। अब मैंने अपनी गाड़ी जांच के लिए खड़ी की। बूथ पर खड़े युवक मैं बोला, ‘आप ही इन बुजुर्गवार की मदद कर देते? उन्हें काफी वक्त लग गया।’ उसने कहा, ‘सर, हमें ऐसा करने की इजाजत नहीं है।’ मैंने फिर कहा, ‘एकाध बुजुर्ग की मदद करने में कोई हर्ज तो है नहीं।’ युवक बोला, ‘आपकी बात ठीक है सर।

पर कुछ दिन पहले की बात है, मैंने यहीं पर एक कार वाले की मदद की थी। काफी कोशिश के बावजूद उनसे गाड़ी पार्क नहीं हो रही थी, बल्कि एक बार तो दूसरी गाड़ी के साथ टकराने से भी बची थी। मदद करने के बावजूद उन्होंने मुझ पर इल्जाम लगा दिया कि गाड़ी में रखे पांच सौ रुपये कहां गए? मुझे अपने मालिक से भी खूब डांट पड़ी।’ बूथ वाले ने बताया कि फिर अगले दिन आकर उस व्यक्ति ने माफी मांगते हुए बताया कि वह पैसे उनकी पत्नी ने उठा लिए थे। मैंने उनसे कहा कि मुझ पर इल्जाम लगाने से पहले अपनी पत्नी से पूछना चाहिए था, तो वह चुपचाप चले गए। मेरी नौकरी जाते जाते बची। बूथ वाले की बात सुनकर मुझे एहसास हुआ कि इंसान का व्यवहार अभी भी बहुत प्रदूषित है। किसी की, किसी भी तरह की मदद करने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। सबसे पहले अपनी जिमेदारी ठीक से निभाते हुए, खुद को किसी भी अनहोनी से सतर्क और सुरक्षित रखना जरूरी है। कई बार छोटी सी गलती या अच्छे मन से की गई भलाई भी गले पड़ सकती है।

संतोष उत्सुक
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here