क्या भारतीय जनता पार्टी अपनी सहयोगी जदयू के नेता नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम ले सकती है? इसकी संभावना अभी कम दिख रही है। भाजपा अभी नहीं चाहेगी कि नीतीश कुमार को नाराज किया जाए योंकि सीटों की संख्या के लिहाज से बिहार की स्थिति ऐसी है कि नीतीश कुमार के बिना भाजपा की सरकार नहीं बन रही है। बिहार में भाजपा का एजेंडा चल तो गया पर वह पूरी तरह से कारगर नहीं हुआ। भाजपा अपने लिए 90 सीटों की संभावना देख रही थी। अगर उसे 85-90 सीटें आ जातीं और नीतीश कुमार 25-30 सीटों पर रूकते तो नैतिक रूप से भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं करते। लेकिन भाजपा 80 से नीचे रह गई और नीतीश कुमार 40 से ऊपर चले गए। ऐसे में अगर भाजपा उनको नाराज नहीं कर सकती है योंकि फिर बिहार में गठबंधन बदल हो सकता है। दूसरी बात यह है कि राजनीतिक रूप से भी भाजपा का ट्रांजिशन अभी पूरा नहीं हुआ है। उसको पता है कि अभी नीतीश कुमार के बनाए सामाजिक समीकरण का वोट भाजपा के साथ नहीं जुड़ा है। वह वोट भाजपा को मिला है तो उसका कारण नीतीश कुमार हैं। नीतीश एक गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे और उनके मुख्यमंत्री बनने की घोषणा थी इसलिए अतिपिछड़ी, महादलित जातियां एनडीए के साथ आईं।
भाजपा को यह वोट पूरी तरह से अपने साथ करना है तो इसके लिए उसे अभी थोड़े समय तक और जदयू के साथ रहना होगा। जदयू का साथ छोड़ते ही भाजपा अगड़ों और वैश्यों की पार्टी रह जाती है। इसे 2015 के चुनाव में भाजपा ने आजमाया था। उस समय भाजपा ने कई जातियों के नेताओं को साथ रख कर गठबंधन बनाया था, लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ था। इसलिए अभी तुरंत भाजपा नीतीश को नाराज नहीं करना चाहेगी। हां इस बात की कई तरह की व्याया होगी कि आखिर बिहार में कौन सा मुद्दा चला, क्या हिट रहा और या ब्लॉप हुआ? सोशल मीडिया में मजाक चल रहा है कि बिहार के लोगों ने नौकरी से ऊपर कोरोना की वैसीन को चुना। बहरहाल, ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार का सामाजिक सुधार का एजेंडा इस बार भी काम आया है। जिसके बारे में माना जा रहा था कि शराबबंदी उनके ले डूबेगी उसने ही उनको बचा लिया। यह सही है कि शराब पीने वाली की एक अलग कांस्टीट्यूंसी बन गई है और वे इस बात के उत्साहित थे कि राजद की सरकार बनी तो पाबंदी खत्म होगी।
लेकिन व्यापक समाज में और महिलाओं के बीच यह मुद्दा हिट रहा। यह सही है कि शराबबंदी के बावजूद लोगों को शराब मिल रही है और लोग महंगी शराब खरीद कर पी रहे हैं। लेकिन यह भी सही है कि गरीबों में इसका सेवन काफी कम हो गया है और शराब पीकर घरों में होने वाली मारपीट तो लगभग बंद हो गई है। सो, चुपचाप महिलाओं ने जो वोट डाला वह शराबबंदी के नीतीश के फैसले पर मुहर है। इसके अलावा नीतीश कुमार ने सामाजिक सुधार के कई और कदम उठाए थे। उन्होंने दहेजबंदी के कानून को ज्यादा सती से लागू किया। पैतृक संपत्ति की बिक्री या हस्तांतरण में घर की महिलाओं की सहमति को अनिवार्य बनवाया। यह पिता की संपत्ति में बेटियों को बराबर अधिकार देने के लिए किया गया। उन्होंने पहले स्थानीय चुनावों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित की थीं। अपने सबसे पहले कार्यकाल में लड़कियों के लिए साइकल और पोशाक की योजना शुरू की थी, जिससे स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में अचानक बड़ा इजाफा हुआ था। उन्होंने जीविका से लेकर आंगनवाड़ी तक कई ऐसी योजनाएं शुरू कीं, जिनसे महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक दोनों सशक्तिकरण हुआ। समाज सुधार के इन कदमों ने उनकी पार्टी और साथ-साथ भाजपा को भी डूबने से बचा लिया।