भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना से मिलेगी अलौकिक शान्ति
निर्जला एकादशी व्रत से होगी मनोकामना की पूर्ति
निर्जला एकादशी पर रखा जाता है निर्जल व्रत
भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों एंव व्रत त्यौहार का अपना खास महत्व है। प्रत्येक तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है। भारतीय सनातन धर्म में एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गयी है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि निर्जला एकादशी या भीमशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 12 जून, बुधवार को सायं 6 बजकर 27 मिनट पर लगेगी जो कि 13 जून, गुरुवार को दिन में 4 बजकर 50 मिनट तक रहेगी। निर्जला एकादशी के समस्त धार्मिक अनुष्ठान 13 जून गुरुवार को सम्पन्न होंगे फलस्वरूप इसी दिन निर्जल रहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी के व्रत से वर्ष भर के समस्त एकादशी के व्रत का फल मिल जाता है। निर्जल एवं निराहार रहकर भक्तिभाव के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु जी की भक्तिभाव एवं हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है।
कैसे रखें व्रत – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्ति होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात निर्जला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता तथा भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करने के पश्चात किया जाता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दानादि भी किया जाता है। जल से भरा कलश, अन्न, मिष्ठान्न, चीनी, शक्कर, गुड़, फल, स्वर्ण रजत, पंखा एवं अन्य नित्य प्रयोजन में आनेवाली वस्तुएं दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दान करनी चाहिए। निर्जला एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। भक्तिभाव से निर्जला एकादशी के व्रत करने से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का मार्ग प्रशस्त तो होता ही है, साथ ही समस्त पापों का शमन भी होता है।