निरंकुश तालिबान: परेशान अफगान

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अफगानिस्तान में जिस तरह से तालिबान ने साा हत्याई उसके बाद आशंका जताई जाने लगी थी कि तालिबान उन्हीं नियमों के साथ हुकूमत करेगा, जो उसने अब से लगभग 24 वर्ष पहले अपनाए थे। इन्हीं आशंकाओं के चलते अफगानिस्तान के लोग घबराए हुए हैं। वह देश से भी पलायन करने के मूंड में है। अवसर मिलता है तो वह पलायन भी कर रहे हैं। तालिबान को अपने प्रति अफगानी जनता में यह विश्वास पैदा करना चाहिए था कि उनकी हुकूमत में किसी भी नागरिक को नहीं सताया जाएगा। इसके विपरीत तालिबान ने अमेरिकी समर्थक अफगानियों का उत्पीडऩ करना शुरू कर दिया। उनके घरों की तलाशी ली रही है। एक ओर तालिबान दावा करता है कि वह अफगानिस्तान में इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर अफगानी जनता का उत्पीडऩ भी किया जा रहा है। यदि तालिबान इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते हैं तो उन्हें कुरान की उन आयतों का अध्ययन करना चाहिए जिसकी व्याया के मुताबिक कमजोर व्यक्ति, महिलाओं, बच्चों पर इस्लाम में जुल्म नहीं किया जाता। इसके अलावा पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब की उस हदीस का आंकलन करना चाहिए जिसमें किसी निर्दोष व्यक्ति को मारना बहुत बड़ा गुनाह करार दिया गया है।

हदीस कहती है कि यदि किसी बेकसूर को मारा गया तो उसका कातिल तब तक जन्नत में नहीं जाएगा जब तक व्यक्त अपने कातिल को सजा या माफ न कर दे। इसके विपरीत अफगानिस्तान में जो जुल्म किया जा रह है वह मानवता को शर्मसार कर रहा है। जालिम व मजलूम एक ही फिरके व धर्म के हैं। तालिबान के इस कृत्य से आजिज होकर अफगानी जनता विशेषकर महिलाएं सड़कों पर उतरकर इस उत्पीडन के खिलाफ प्रदर्शन कर जनसुरक्षा की मांग कर रही है। तालिबान को यह सब करने से पहले पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के उस अमल पर गौर करना चाहिए जब फतेह मक्का के वक्त आपने मक्का के जुल्मी लोगों को भी माफ कर दिया था। तालिबानी हुकूमत अपनी निरंकुशता के चलते अफगानिस्तान की सूरत बदल रही है। महिलाओं को अधिकार और हर क्षेत्र में मौका देने की बात कहने वाले तालिबान ने महिला एंकरों पर पाबंदी लगाना या बाजारों में जहां कहीं भी महिलाओं की तस्वीरों पर कालिख पोतना इस बात को दर्शा रहा है कि जो महिलाएं पिछले 20 सालों में खुली फिजा में सांस लेकर अपने अधिकारों का प्रयोग कर रही थी अब वह उनसे आने वाले समय में छीन लिए जाएंगे।

जो महिलाएं या लड़कियां आला तालीम हासिल कर रही थी उनको इस अधिकार से वंचित रहना पड़ सकता। तालिबान का अफगानी जनता के प्रति जो अमल चल रहा है, वह उनकी छवि को अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया के अमन पसंद देशों में भी धुमिल कर रहा है। इस्लाम महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की वकालत करता है, उनके पैतृक संपत्ति में भी हिस्सा देने पर बल देता है तो फिर भी तालिबान महिलाओं का उत्पीडऩ कर रहे हैं। स्वतंत्रता या शिक्षा जो मनुष्य का व्यवहारिक या मौलिक अधिकार है उससे इस आधी आबादी को क्यों वंचित करना चाहते हैं? तालिबानी नेताओं को चाहिए कि बदले की भावना से कार्रवाई करने की बजाए अफगानी जनता चाहे अमेरिकी समर्थक हो या उसकी विरोधी हो, उन सब को यह विश्वास लेकर सबको साथ लेकर विकास के पथ पर चलना चाहिए। उन्हे जनता के साथ सद्भाव का व्यवहार करते हुए बताना चाहिए कि वह किसी को अधिकारों से वंचित नहीं करेंगे। वह शांति कायम करते हुए अफगानिस्तान में शासन करेंगे। जनता में उठ रहे विरोधी स्वरों को समझते हुए वह कार्य करने चाहिए जिससे जनता में शांति की स्थापना हो।

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