नाम भगवान राम का-मर्यादाओं से नाता नहीं

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लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और फिर एक बार मोदी सरकार का नारा बुलंद रखने के वास्ते बायनबाजी के ऐसे-ऐसे रास्ते मोदी सरकार व भाजपा ने चुन लिए हैं जिन पर शायद ही आजाद भारत में कभी कोई राजनीतिक दल चला हो? पर ये सत्ता में हैं, तीन राज्यों की हार के बावजूद अहंकार फिर सिर चढ़कर बोर रहा है।।

अगर भारत का प्रधानमंत्री विपक्ष के हर नेता को चोर बताने पर उतर आए तो कोई क्या कर सकता है? आम आदमी की बोलती तो वैसे ही सिस्टम की वजह से हमेशा से बंद रही है लेकिन खास और वो भी पीएम हो, बोलने में माहिर हो तो फिर किसी की क्या मजाल की उन्हें बोलने से रोक सके? जो कोई मुंह खोलता भी है तो ना जाने कहां-कहां से शब्दों के ऐसे तीर चलने लगते है कि लगता है पीएमओ में पूरी फौज केवल बोल लिखने के काम में जुटी है, बाकी कोई काम ही नहीं रह गया है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और फिर एक बार मोदी सरकार का नारा बुलंद रखने के वास्ते बयानबाजी के ऐसे-ऐसे रास्ते मोदी सरकार व भाजपा चुन लिए हैं जिन पर शायद ही आजाद भारत में कभी कोई राजनीतिक दल चला हो? पर ये सत्ता में हैं, तीन राज्यों की हार के बावजूद अहंकार फिर सिर चढ़कर बोल रहा है या फिर हार का डर सता रहा है लिहाजा ऐसे-ऐसे बोल बेले जा रहे हैं जिन्हें सुनने व पढ़ने के बाद ना तो गुनने की जरूरत पड़ती और ना ही उन्हें जहन तक ले जाने की। खुद की चादर बेदाग रखने से ज्यादा क्या आज के दौर की राजनीति में दूसरे की चादर पर कीचड़ उछालना ही जनता की नजर में काबिलियत का असली पैमाना रह गया है? क्या जमीन पर बिछी गंदगी को साफ करने का मान ही स्वच्छता अभियान है? क्या जेहन के भीतर भरी गंदगी और घटिया वाणी की सफाई स्वच्छता अभियान के टॉप एजेंडे पर नहीं होनी चाहिए?

ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव नहीं बल्कि घटिया बोल का भारत कप होने जा रहा है और देश पर किसकी होगी सरकार इस भारत कप के फैसले से ही तय होगा? लिहाजा जिसकी कुव्वत जिनती ज्यादा वो उतनी ही फैंक नहीं रहा बल्कि प्रदूषण के रूप में समाज में फैला रहा है। हैरानी की बात तो ये है कि चाल, चरित्र और चेहरे वालों ने इस मामले में सबको ही पिछे छोड़ दिया है। भगवान राम के मंदिर के लिए जान देने व लेने पर उतारू रहेंगे, उनके मंदिर व नाम पर राजनीति की रोटियां सकेंगे लेकिन साफ झलकता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की मर्यादाओं से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं। राजनीति, समाज और देश अगर मर्यादा विहीन नजर आ रहा है तो क्या ये सत्ताधारी दल व सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वो अपनी टीम के हर सदस्य की कड़वी जुबान पर पहरा बैठाए? ये दौर परीक्षाओं का है, बच्चे परीक्षाएं दे रहे हैं तो आखिर इस तरह के बोल भारत के भविष्य को किस मोड़ पर खड़ा करेंगे? बच्चे तो परीक्षा में पास जाएंगे लेकिन क्या जनअपेक्षाओं की परीक्षा में ऐसे राजनीतिक दल व नेता पास है? केवल राजपाट पाने से ही पास व फेल का नतीजा नहीं आंका जाता। सवाल संस्कारों का है। सकारात्मक विचारों का है, जहर उगलती बोली का नहीं।

प्रियंका गांधी अगर कांग्रेस का कल्याण नहीं कर सकती तो फिर भाजपा के बड़े-बड़े ऐसे बोल क्यों बोल रहे है? मुख्तार अब्बास नकवी को प्रियंका जोकर नजर आती है तो क्या किसी सभ्य समाज में किसी महिला के लिए ऐसे शब्द इस्तेमाल में होने चाहिए? तो ऐसे में कहां गई नैतिकता? यूपी विधानसभा के अध्यक्ष साबह चहेते अखबारों में लेख छपवाते हैं। सरकार के पैरोकार नजर आते हैं, आखिर क्यों? सुख पीएस साहब आगरा में जाकर गरीब बच्चों को भोजन कराने पहुंचे। साथ में बाहुबली की पूरी टीम। सारा सरकारी अमला वहां मौजूद।।

इस पर जिनता सरकारी खजाने से लुटेगा उससे ना जाने कितने बच्चों का भला हो जाता। मिस्टर पीएम एक वक्त की सरकारी रोटी से ज्यादा जरूरी है गरीबी कम करना। बच्चों को निवाले मिल ही जाएंगी। काश भाजपाई नितिन गडकरी से ही कुछ सीखते। गडकरी को जाति की बात करने वाले बर्दाश्त नहीं और ये भाई-बुंधु हैं जो जाति के नीचे बात ही नहीं करते।।

लेखक
डीपीएस पंवार

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