उन्नीस जनवरी को नागरिकता कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश के शहरों, देश के विभिन्न महानगरों में जो विरोध, प्रदर्शन, आंदोलन हुआ वह विपक्ष के लिए आत्मघाती है। बतौर प्रमाण उस शाम योगी आदित्यनाथ का हुंकारा था कि उपद्रवियों को देख लेंगे। उनके चेहरे वीडियो में रिकार्डेड हैं। जो नुकसान हुआ है वह उनसे वसूलेंगे। मतलब मुख्यमंत्री के चेहरे पर घबराहट, परेशानी, कानून-व्यवस्था बिगड़ने का गम नहीं था, पुलिस पर गुस्सा नहीं था, बल्कि उपद्रवियों को मजा चखाने का निश्चय था। अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि लखनऊ या संभल जैसे शहरों में उस दिन जो उपद्रव हुआ तो भीड़ का इलाका और चेहरे कौन थे?
और ध्यान रहे योगी की तरह टीवी पर ऐसे असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल ने कड़ा रूख नहीं दर्शाया जबकि असम में हिंसा भी हुई, लोग भी मरे, भाजपा विधायकों-मंत्रियों के घर पत्थर फेंके गए और कई इलाकों में सब कुछ ठप्प है!
सो, नागरिकता कानून पर अखाड़ा सज गया है। एक तरफ सेकुलर, उसका झंडाबरदबार विपक्ष और मुसलमान है तो दूसरी और वे मोदी-शाह-योगी हैं, जिनसे हिंदू घरों में मैसेज गया है कि देखो-देखो विरोध-प्रदर्शन करने वालों के चेहरों को, उनके पहनावे को। ये मुसलमान हैं, जिहादी, अलगाववादी-माओवादी हैं।
जाहिर है जो है वह विपक्ष का प्रधानमंत्री मोदी-गृह मंत्री अमित शाह के बनाए ट्रैप में फंसना है। लेफ्ट, सेकुलर जमात, सोनिया-प्रियंका-लेफ्ट-ममता-मायावती-अखिलेश नहीं बूझ रहे हैं कि टीवी चैनल विरोध-आंदोलन इसलिए दिखला रहे हैं क्योंकि मोदी-शाह चाहते हैं!
हां, हिंदू मानस आंदोलनकारियों को देखते हुए उनमें मुसलमान चेहरे ढूंढें, मोदी-शाह के परंपरागत विरोधी नामों, चेहरों को देखें-सुनें यह रणनीति का अहम हिस्सा है। याद करें प्रधानमंत्री मोदी का जनसभा में लोगों से कहना कि आंदोलनकारियों का पहनावा देखो और समझो कि कौन नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं। इसके बाद फिर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने और खुलासा करते हुए कहा कि छात्र आंदोलन के पीछे जिहादी, अलगाववादी, माओवादी हैं। मतलब महानगरों में लड़के सड़कों पर उतरे या जंतर-मंतर की भीड़ के पीछे नागरिकता के एंगल में मुसलमान को दिखलाना, चर्चा कराना, फोकस बनने देना एक राजनीतिक बिसात है। तभी टीवी चैनलों को छूट मिली हुई है कि दिखाओ भीड़! खूब दिखाओ जामिया में पिटाई या सीलमपुर जैसी जगहों का उपद्रव और मुस्लिम चेहरों से बातचीत।
इस बारीक बात को भी समझा जाए कि नागरिकता बिल का सर्वाधिक विरोध पूर्वोत्तर में है। वहां विरोध-प्रदर्शन में पूरा इलाका ठप्प है। वहां लोग मरे हैं लेकिन टीवी चैनलों का फोकस दिल्ली के जामिया छात्रों पर, लखनऊ में मुस्लिम इलाके की भीड़, दिल्ली, बेंगलुरू, कोलकत्ता, महानगरों के प्रर्दशनों पर है। भारत राष्ट्र-राज्य की चिंता में पूर्वोत्तर की स्थिति पर फोकस रहना चाहिए था लेकिन टीवी चैनलों ने उत्तर भारत की स्थिति पर फोकस बनाया। देश की राजधानी में जामिया में पुलिस की ठुकाई से नैरेटिव को हवा दिलाई गई।
संदेह नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में मुस्लिम आबादी का हिस्सा है। यह स्वभाविक है। साढ़े पांच साल से जो मन ही मन घुटे हुए थे वे इस मुद्दे से सड़क पर विरोध का मौका पाए हुए हैं। मुसलमान विरोध में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। लेकिन इसी से मोदी-शाह-भाजपा की पौ बारह है। हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति का रंग इससे और गहरा बनेगा।
क्या आंदोलन बढ़ेगा? दिल्ली के चुनाव तक टीवी चैनलों से शोर चलता रह सकता है। इस कॉलम में बिल के बवाल से पहले लिख चुका हूं कि सांप्रदायिक धुव्रीकरण के लिए दंगे भी हों तो आश्चर्य नहीं होगा। मोदी-शाह को दिल्ली जीतना है। उस नाते नागरिकता बिल पर जामिया, एएमयू, सीलमपुर आदि के हल्ले से सांप्रदायिकता के तार अपने आप झनझना रहे हैं।
लाख टके का सवाल है कि विरोध-प्रदर्शन में मोदी-शाह के चाहने वाले यूथ-छात्रों, नौजवानों का मोहभंग भी क्या कहीं दर्शाता है। ऐसा पूर्वोत्तर को छोड़ कर कहीं होता हुआ नहीं लगता है। आंदोलन के चेहरे वहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया के पुराने विरोधी हैं। इसलिए जो हो रहा है वह हिंदू वोटों का मजबूतीकरण है और आम मतदाताओं को रोजी-रोटी जैसे मसलों से भटकाए रखना है।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं