नशे से बचना है तो सभ्य बनें

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नशे से बचना है तो सभ्य बनें
नशे से बचना है तो सभ्य बनें

अच्छे संस्कारों की बदौलत ही हम अपने गुणों से पहचाने जाते है और यही संस्कार हमारी संस्कृति को बचाए रखते है। हम सभी को बड़े-बुजुर्गो का मान सम्मान करना चाहिए अर्थात उनके प्रति हमारे मन मे आदर भाव होना चाहिए, लेकिन बदलते परिवेश और पश्चिमी संस्कृति ने हमारे युवाओं को अपने गिरफ्त में ले लिया है। जिसके कारण हमारे देश के युवा नशा के दलदल में फसते जा रहे है और अपने पथ से भ्रष्ट होते जा रहे है।

मनुष्य जीवन में जो लोग आज युवा है उन्हें कल वृ्द्ध होना ही है। युवा अवस्था में मनुष्य के पास जोश तो होता है लेकिन अनुभाव के मामले में वह वृद्धावस्था वाले व्यक्तियो से पीछे ही है। प्रत्येक मानव को चाहिये कि वह वृद्ध व्यक्तियों को पूर्ण आदर व सम्मान दे तभी वह सफलता पा सकते है क्योंकि सफलता का राज संस्कार ही है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को ज्ञानवान के साथ-साथ संस्कारवान बनना चाहिए। क्योंकि हमारी संस्कृति यहां के अच्छे संस्कारों के कराण ही विश्व भर में प्रसिद्ध है।

नशे से बचना है तो सभ्य बनें
नशे से बचना है तो सभ्य बनें

वृद्धजन हमारी अनमोल धरोहर हैं। इन्हें सहेजना हम सबकी जवाबदेही है। वृद्ध व्यक्ति भले ही शारीरिक दृष्टी से युवाओं की अपेक्षा कमजोर होते है लेकिन उनका अनुभाव युवाओं को सदैव दिशा बताने का कार्य करता रहता है। अगर व्यक्ति में संस्कार ही नहीं होंगे तो हमारा समाज भी उसे महत्व नहीं देगा और लोग उससे दूरी ही बनाए रखेंगे। वैसे तो हर बच्चे में संस्कार बचपन से ही होते है, लेकिन कुछ बातें और व्यवहार समाज के लोगों व बड़ों से मिलते है, लेकिन आज के बदलते परिवेश और पश्चिमी संस्कृति ने हमारे युवाओं को अपने गिरफ्त में ले लिया है। जिसके कारण आज के युवा संस्कार भूल गए और नशे के दलदल में फंस गए है।

जिस संस्कार के लिए हम पूरे विश्व में जाने जाते है आज उसी संस्कार को बचाना हामारे लिए महत्वपू्र्ण हो गया है। युवा नशे जैसे दलदल में फंस कर अपनों से बड़ों का आदर करना भूल गए है। वह अब संस्कार का मतलब भी नहीं जानते। जबकि अच्छा बोलना, दूसरों की मदद करना और माता-पिता तथा बड़ों का आदर सम्मान करना ही संस्कार है। हमें हर उस व्यक्ति से संस्कार मिलते है जो हमसे बड़ा हो, चाहे वह दादा-दादी, माता-पिता, भाई बहन या अन्य सभी हमें सही रास्ता दिखाते है और हमें भी उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए और दी गई सीख को ही अपना चाहिए। तभी हम सही मायने में नशो जैसे समाजिक दैत्य से मुफ्ति पा सकते है जब हम अपनों से बड़ों का कहना माने और उनका सम्मान करें।

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