धैर्य का फल

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धैर्य का फल
धैर्य का फल

एक बार महात्मा बुद्ध एक सभा में बिना कुछ बोले ही वहा से चले गए। उस सभा में सैकड़ों लोग आए थे। दूसरे दिन उससे कम आए। इस तरह यह संख्या एक दिन बहुत कम हो गई।

प्रवचन के अंतिम दिन केवल 50 लोग ही पहुंचे। महात्मा बुद्ध आए, उन्होंने इधर- उधर देखा और बिना कुछ कहे वापिस चले गए। इस तरह समय बीतता रहा। तथागत आते और चले जाते।

धैर्य का फल
धैर्य का फल

जब हमेशा की तरह वह प्रवचन देने पहुंचे तो वहां एक ही व्यक्ति मौजूद था। तथागत् ने पूछा, वह यहां क्यों रुका रहा? उसने कहा धैर्य के कारण। इस तरह तथागत ने उस अकेले व्यक्ति को ज्ञान दिया।

धैर्य एक ऐसा भाव है जिससे बड़े-बड़े काम बन जाते हैं। और विषम परिस्थितियां भी मृदुल हो जाती हैं। इसलिए धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

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