धर्म संसद में बदल रही है संसद

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17वीं लोकसभा का प्रारंभ, पालने में लक्षण गजब दिखे। जो दिखा-सुना वह भारत के संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के भाजपा के प्रचार का क्या मतलब है वह दो दिन की शपथ ग्रहण के दौरान लोकसभा में दिखा। नरेंद्र मोदी सदन में पहुंचे तो उनकी पार्टी के सांसदों ने मोदी-मोदी के नारे लगाए। जब उन्हें इसके लिए रोका-टोका नहीं गया तो उनको लाइसेंस मिल गया संसद में नारेबाजी का। फिर तो जय श्री राम के नारे लगे, जय दुर्गा के नारे भी लगे, भारत माता की जय और वंदे मातरम का जयघोष भी हुआ और नारा ए तदबीर अल्ला हू अकबर का नारा भी लगा। एकाध मिनट के अपवाद को छोड़ दें तो लोकसभा का माहौल कुंभ के समय प्रयागराज में लगने वाली धर्म संसद टाइप का बन गया था।

धर्म संसद कोई बुरी चीज नहीं है। उसमें धर्माचार्य धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। पर संसद इससे अलग चीज है, वहां जनहित से जुड़े विधायी मसलों पर विचार विमर्श होता है, वहां जन गण मन के अधिनायक बैठते हैं और 130 करोड़ से ज्यादा लोगों की किस्मत के बारे में फैसला करते हैं। वहां पर धार्मिक नारे लगाना और धर्म के आधार पर सांसदों का विभाजन एक चिंताजनक परंपरा की शुरुआत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच साल पहले जब पहली बार संसद पहुंचे थे तब उन्हें संसद की देहरी पर माथा टेका था। इस बार जब वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो एनडीए की पहली बैठक में संविधान की किताब को माथे लगाया। तभी उनसे उम्मीद थी कि संसद की परंपरा और संवैधानिक प्रावधानों की वे रक्षा करेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। यह भी ख्याल नहीं किया गया कि प्रधानमंत्री कार्यपालिका के प्रमुख हैं पर विधायिका में पीठासीन अधिकारी सबसे ऊपर है। वहां पर प्रधानमंत्री के नाम की नारेबाजी संसदीय परंपरा और गरिमा के अनुकूल नहीं है।

सांसदों को चूंकि मोदी-मोदी के नारे लगाने से नहीं रोका गया इसलिए उन्हें धार्मिक नारे लगाने से भी नहीं रोका जा सकता है। अगर कोई यह सोच रहा है कि संसद के अंदर धार्मिक नारेबाजी एक बार की घटना है और शपथ खत्म होने के बाद यह रूक जाएगी तो वह भ्रम में है। यह भाजपा और संघ की दीर्घावधि की राजनीतिक योजना का हिस्सा है। प्रधानमंत्री और मंत्रियों के शपथ समारोह में भी इस किस्म की नारेबाजी हुई थी और कई बार नारेबाजी इतनी बढ़ गई कि राष्ट्रपति को रूक कर नारे बंद होने का इंतजार करना पड़ा। उसी ट्रेंड को सांसदों की शपथ में दोहराया गया।

जिस तरह से मंत्रियों की शपथ के समय नरेंद्र मोदी, अमित शाह, स्मृति ईरानी, चंद्र प्रताप षाडंगी जैसे मंत्रियों का नाम बोले जाने पर सबसे ज्यादा नारेबाजी हुई, बिल्कुल वहीं ट्रेंड लोकसभा में भी दिखा। मोदी के समय मोदी-मोदी के नारे लगे, स्मृति ईरानी के समय भारत माता की जय के नारे लगे, पश्चिम बंगाल के सांसद शपथ लेने गए तो जय श्री राम के नारे लगे और असदुद्दीन ओवैसी शपथ लेने गए तो भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगे। जवाब में ओवैसी ने अल्ला हू अकबर का नारा लगाया। बारीकी से देखें तो ये सारे चेहरे एक खास किस्म की राजनीति का प्रतीक हैं।

भाजपा ने बरसों पहले छोड़े जा चुके जय श्री राम को पश्चिम बंगाल में तृणमूल से लड़ने का हथियार बनाया है। ममता इस नारे पर नाराज हो रही हैं तो भाजपा ने उसे और धार देने का फैसला किया। तभी बंगाल के सांसदों के शपथ के समय यह नारा सबसे ज्यादा लगा। ओवैसी को भाजपा ने हिंदू विरोध का प्रतीक बनाया है। इसलिए भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा लगा। उनका पलट कर अल्ला हू अकबर का नारा लगाना भाजपा के लिए सोने पर सुहागा है। जाहिर है यह काम वे बिना फायदे के तो नहीं कर रहे होंगे। ऐसे ही स्मृति ईरानी राहुल गांधी को हरा कर कांग्रेस विरोध का प्रतीक बनी हैं तो षाड़ंगी ओड़िशा में धर्मांतरण विरोध के प्रतीक हैं। सो, ये सभी आगे की भाजपा की राजनीति में अहम किरदार होंगे। तभी यह तय मानना चाहिए कि ऐसी नारेबाजी लोकसभा में होती रहेगी और वहीं से आम लोगों के बीच भाजपा के चुनाव प्रचार का नैरेटिव बनता रहेगा।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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