दो-चार एटमी बम फोड़ने का वक्त

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मोदी है तो क्या मुमकिन है कि भारत एक दिन अचानक लाहौर, कराची, पेशावर में दो-चार एटम बम फोड़ इतिहास को यह जवाब दे डाले कि खैबर के दर्रें से कहर बरपाते हुए जो हमलावर आए तो उनकी संतानों से बदला हुआ पूरा! ऐसा सोचना तीन कारणों से है। एक, भारत और पाकिस्तान दोनों तेजी से, सघनता के साथ हिंदू बनाम मुस्लिम के यक्ष प्रश्न की और बढ़ रहे हंै। दूसरे, भारत के हिंदुओं ने वह नेतृत्व प्राप्त कर लिया है जिससे मुसलमान जानेगा कि उन्हे जीवन कैसे जीना है। तीसरे, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथसिंह ने दुनिया को बताया है कि भारत अपनी म्यान से एटमी तलवार निकालने के मामले में किसी शर्त से बंधा हुआ नहीं हैं! पहले भारत का स्टेंड था कि एटमी तलवार तभी निकलेगी जब दुश्मन ने परमाणु आक्रमण किया। अब 1988 से चली आ रही उस नीति, उस परमाणु सिद्धांत की पालना इसलिए जरूरी नहीं है क्योंकि परिस्थितियां काफी बदल गई हैं।

ऱक्षा मंत्री किसी भी देश का हो, ऐसे ही बयान नहीं दिया करते। वह शाब्दिक बल्लेबाजी, गीदड़ भभकी नहीं होती है। वह दुनिया को, दुश्मन को, सेनाओं को मैसेज होता है कि राष्ट्र-राज्य की सामरिक-रक्षा नीति में सोच, निश्चय, मनोबल और रणनीति में क्या कुछ है। फिर आज तो कथनी के साथ करनी के भी प्रमाण है। बालाकोट में एयरस्ट्राइक हो या जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को समाप्त करना अनहोना है तो इनकी हकीकत में क्यों नहीं सोचा जाए कि पाकिस्तान को दुरूस्त करने के लिए, इतिहास की दास्तां को पलटाने के लिए उकसावा होते ही पहले मारे सो मीर के अंदाज में दो-चार एटम बम फोड़ दिए जाए। बहुत कम लोगों ने उस बात को ध्यान में रखा होगा जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने एक-दो चुनाव सभा में कहा कि बालाकोट- अभिनंदन प्रकरण के वक्त मिसाइले किधर मुड़ी थी इसे वैश्विक जानकार जानते हैं।

सो भारत राष्ट्र-राज्य और भारतीय उपमहाद्वीप इन दिनों हिंदू वीर रस की खामोख्याली में नहीं है बल्कि उस अनुभव के बीच में है जिससे पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर से ले कर अयोध्या, बांग्लादेशियों के इतिहासजन्य भूतों का एक-एक कर निपटारा होना है। और स्थिति भारत के अनुकूल है। कैसे? दरअसल दुनिया में, वाशिंगटन, पेरिस, लंदन, मास्कों सब तब इस्लामी उग्रवाद ने पिछले तीस सालों में जीना इतना हराम किया है कि पाकिस्तान के लिए चीन को छोड़ दूसरा कोई देश आंसू बहाता नजर नहीं आ रहा। तभी अनुच्छेद-370 के भूकंप ने मुजफ्फराबाद, इस्लामाबाद, पेशावर, कराची से ले कर इस्लामी देश और उसके संगठन लाचारी, बेबसी में है!

जब ऐसा है तो क्यों न भारत घोषित तौर पर यह बताए कि म्यान से उसकी एटमी तलवार कभी भी बाहर निकल सकती है। सो रणनीति के नाते, पाकिस्तान और उसके पिठ्ठूओं में और खौफ लिवा लाने के लिए भारत की तरफ से ऐलान है कि एटमी हमले में ‘पहल न करने’ की नीति अब ब्रह्य वाक्य नहीं है। मतलब यदि पाकिस्तान की मंशा, उसका उकसावा भड़काने वाला हुआ तो भारत अचानक सर्जीकल एटमी हमला भी कर सकता है।

भारत की सोच का यह खुलासा, यह वाक्ट एटमी परीक्षण से लाख गुना अधिक विस्फोटक है। इस्लामाबाद से प्रतिक्रिया आई है। लेकिन ऐसी बातों से पहले अमेरिका ज्यादा भड़कता था। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान याकि पश्चिमी एलायंस के देश एकदम बिदकते थे। लेकिन इस बार भारत को मौन समर्थन है। इन पंक्तियों के लिखने तक मुझे चीन, रूस की भी कोई प्रतिक्रिया पढ़ने को नहीं मिली। जबकि इन सब देशों को पता है कि भारत के पास एटमी हथियार है तो पाकिस्तान के पास भी है। दुनिया पाकिस्तान और उसकी सेना के मवालीपने को भी जानती है। हैरानी वाली सबसे बड़ी बात है कि अनुच्छेद-370, कश्मीर घाटी के हालातों और उनके बीच पाकिस्तान की चिलपौं के बावजूद सऊदी अरब, खाड़ी देश, इस्लामी देशों का संगठन का मोटे तौर पर मौन है। वजह क्या यह नहीं है कि महाशक्ति देशों में इस्लाम को ले कर अपने खुद के अनुभव के बाद बना भाव है कि भारत इतिहास का, आजादी बाद के 72 सालों का सर्वाधिक इस्लामी आंतक का भुक्तभोगी है तो भारत को जो करना है वह करें। सीधा अर्थ है कि भारतीय उपमहाद्वीप यदि सभ्यताओं के संर्घष का प्रारंभ बिंदु बनता है तो बनने दिया जाए। दुनिया के इसी भूभाग में मुस्लिम और हिंदू ने यदि हजार साल संर्घष में जीए है तो वापिस इन्हे अपने -अपने एटम बम के साथ पानीपत की लड़ाईयां लड़ने दी जाए। ताकि पश्चिमी देशों, मध्य एशिया में झगड़ा घटे और दक्षिण एशिया की और वह शिफ्ट हो।

यह मामूली बात नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इजराइल की पक्षधरता में ईरान से हुआ एटमी करार रद्द किया और येरूसलेम को बतौर राजधानी मान्यता दी तो वे (बाकि पश्चिमी देश भी) सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्राू इक, अनुच्छेद-370 के मामले में भारत के मौन पक्षधर है। भला क्यों? इसलिए कि वैश्विक इस्लामी उग्रवाद, से गैर-इस्लामी दुनिया इतनी बुरी तरह तंग आ कर पक गई है कि यदि पाकिस्तान का एटमी खतरा भारत पंचर करें तो सब समर्थन को दौड़े आएंगे। सो भारत के नए ऐलान के पीछे शेष विश्व के 9/11 बाद के नजरिए का कम हाथ नहीं है।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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