दोनों को भरमाया ट्रंप ने

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का जवाब नहीं है! होशियार बिल्ली की तरह भारत और पाकिस्तान दोनों के कंधे पर हाथ रख अपने को फिर मध्यस्थ, आर्बिटरेटर बनवाने का दांव चला तो अपने चुनाव का उल्लू, (भारतीयों के वोट) व अमेरिका के आर्थिक-सैनिक-सामरिक हित भी साध रहे हैं। ह्यूस्टन शो के बाद भारत में लोग बम-बम थे कि देखो प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ कैसी कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक कर दिखाई। अब इमरान खान क्या खा कर डोनाल्डर ट्रंप के आगे रोना रोएंगे! लेकिन 24 घंटे में ही ट्रंप ने न्यूयार्क में इमरान खान से मुलाकात के बाद बताया कि वे पाकिस्तान के ‘दोस्त’ हैं और प्रधानमंत्री इमरान खान ‘महान नेता’ हैं! फिर भारत की इच्छा व दो टूक स्टैंड के बावजूद वे वापिस बोले कि कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान में सुलह कराने के लिए मध्यस्थता को ‘तैयार, इच्छुक और समर्थ’ हैं। ‘यदि मैं मदद करूं, मैं जरूर ही मदद करूंगा… यदि दोनों (भारत और पाकिस्तान) ने चाहा तो मैं तैयार हूं … मेरे प्रधानमंत्री मोदी से अच्छे संबंध हैं। मेरे प्रधानमंत्री इमरान खान से अच्छे संबंध हैं… मैं बहुत ही अच्छा आर्बिटरेटर (पंच-मध्यस्थ) होऊंगा.. मैं कभी भी बतौर आर्बिटरेटर फेल नहीं हुआ।’

ट्रंप ने ये तमाम बातें इमरान खान से बातचीत के बाद उनके साथ प्रेस ब्रीफिंग में कहीं। जाहिर है मीडिया को, दुनिया को राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल के दो महीने में तीसरी बार बताया है कि कश्मीर का मसला पेचीदा है और वे इस मामले में पंचायत करते हुए मध्यस्थता चाहते हैं।

इतना ही नहीं डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों में पाकिस्तान को नया सर्टिफिकेट देते हुए कहा कि बेचारे पाकिस्तान के साथ उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने बहुत अन्याय किया। ‘मेरी स्थिति में रहे लोगों ने पाकिस्तान के साथ बहुत बुरा किया….। मैं पाकिस्तान पर भरोसा करता हूं लेकिन मेरे पूर्ववर्तियों ने नहीं किया और वे नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं!’

सोचें, ट्रंप का यह कहा क्या मतलब लिए हुए है? तभी मीडिया ने उनका ध्यान जब ह्यूस्टन की जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोले इस वाक्य पर दिलाया कि भारत तो मानता है कि पाकिस्तान आतंक का समर्थन करने वाला, आतंकियों का अड्डा है तो डोनाल्ड ट्रंप ने इसे खारिज करते हुए कहा कि ‘उन्होंने तो ऐसे ईरान को ले कर ऊंगली उठाई है।’

उफ! बात को, फोकस को वे कहां से कहां ले गए! इसका अर्थ है कि ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री मोदी के मंच पर ट्रंप का कहा यह वाक्य ईरान के लिए है न कि पाकिस्तान के लिए कि ‘अमेरिका दुनिया को रेडिकल इस्लामी आंतकवाद से मुक्त कराना चाहता है।’ (US stand to “free the world of radical Islamic terrorism”.) ध्यान रहे इसी वाक्य पर प्रधानमंत्री मोदी और स्टेडियम में मौजूद भारतीयों ने खड़े हो कर तालियां बजाईं तो वह बिना यह समझे हुए थी कि ट्रंप पाकिस्तान पर नहीं, बल्कि ईरान पर निशाना साध रहे हैं!

और ध्यान रहे वह ईरान जो इस्लामी देशों की बिरादरी में भारत का ज्यादा मददगार रहा है। जिससे ट्रंप प्रशासन के दबाव में पहली बार भारत ने पूरी तरह तेल खरीदना हाल में बंद किया है। भारत ने अमेरिका को खुश करने के लिए ईरान से दोस्ती घटाई लेकिन बदले में नई हकीकत देखिए कि उस ईरान से बात करने के लिए सोमवार को ट्रंप ने इमरान खान से अनुरोध किया।

हां, ट्रंप की तरफ से इमरान खान ईरान से बात करने को अधिकृत हुए हैं। जो विश्व राजनीति के उतार-चढ़ावों पर पैनी समझ रखते हैं उन जानकारों को पता है कि आज के वक्त में विश्व का नंबर एक संकट सऊदी अरब बनाम ईरान में तनातनी है। ट्रंप और सऊदी प्रशासन ईरान पर हमला कर मजा चखाने के मूड में है। इस विकट संकट के बीच ट्रंप ने सोमवार को इमरान खान से कहा कि तुम अमेरिका-ईरान रिश्तों के बीच मध्यस्थ बनो। बकौल पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका-ईरान के रिश्तों में गतिरोध खत्म कराने के लिए इमरान खान को अधिकृत किया। इमरान खान ने खुद ट्रंप से कहा कि मध्य-पश्चिम एशिया का क्षेत्र एक और जंग सह नहीं पाएगा। ईरान के खिलाफ जल्दबाजी में हुई कार्रवाई के बहुत दुष्परिणाम होंगे। ध्यान रहे कि इमरान खान ने अमेरिका जाने से पहले सऊदी अरब जा कर लड़ाई टालने, अमेरिका-ईरान में सुलह की जरूरत की कूटनीति की थी।

सो, सोमवार की ट्रंप-इमरान बातचीत में तीन मुद्दों पर फोकस था। कश्मीर, अफगानिस्तान और ईरान पर। बकौल पाकिस्तानी विदेश मंत्री ट्रंप से इमरान खान ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में मानवीय संकट है। अस्सी लाख लोग पाबंदियों में जी रहे हैं। उनके मानवाधिकार छीने हुए हैं। इस संकट से अमेरिका ही निजात दिलवा सकता है। भारत केवल अमेरिका की सुनेगा इसलिए अमेरिका को रोल अदा करना चाहिए। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् यदि खूनखराबा रूकवाना चाहते हैं तो ये अपनी भूमिका निभाएं। पाकिस्तानी विदेश मंत्री का आगे कहना था कि ट्रंप-इमरान की बातचीत में ट्रंप ने भी कश्मीर में हालातों, मानवाधिकार स्थिति पर चिंता जाहिर की। फिर इमरान खान ने अफगानिस्तान पर अपना पक्ष रखा। ट्रंप से उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान लगातार मददगार और सहयोगी रहा है और इसे विदेश मंत्री माइक पोम्पिया भी स्वीकारते हैं।

जाहिर है इमरान खान ने होशियारी से ईरान-अफगानिस्तान की दुखती नस को पकड़ कर डोनाल्ड ट्रंप को मानवीय आधार पर कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा। ईरान और अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान की उपयोगिता जतलाई तो कश्मीर घाटी के अस्सी लाख लोगों पर लगी पाबंदियों के हवाले डोनाल्डि ट्रंप को पटाया कि अमेरिका ही भारत को ठीक कर सकता है। अमेरिका को दखल देनी होगी। तभी डोनाल्ड ट्रंप के मुंह से तीसरी बार मध्यस्थता की इच्छा जाहिर हुई।

तो डोनाल्ड ट्रंप किसके हुए? भारत के या पाकिस्तान के? अपना मानना था और है कि डोनाल्ड ट्रंप धूर्त और कारोबारी हैं तो सोच व बेबाकी में सच्चे भी हैं। वे रेडिकल इस्लाम के खतरे की सोच से अमेरिकियों में लोकप्रिय हुए तो सत्ता संभालने के बाद से उन्होंने मुस्लिम आवाजाही, रेडिकल इस्लाम के खिलाफ डंके की चोट, सच बोलते हुए फैसले भी लिए। यह उनके दिमाग का फितूर है कि सऊदी अरब के वहाबीपने से ज्यादा खतरनाक ईरान की कट्टरता है। दरअसल सऊदी अरब और खाड़ी से अमेरिका को धंधा और हथियारों के खरबों डॉलर के ऑर्डर हैं इसलिए कारोबारीपने में वे सऊदी-खाड़ी के शेखों को गले लगाए हुए हैं। उनके साथ पाकिस्तान भी जुड़ा हुआ है। उधर अफगानिस्तान की मजबूरी में ट्रंप को पाकिस्तान के सहयोग-समर्थन की जरूरत है तभी पाकिस्तान को कोई कितना ही आतंकी अड्डा बताए उसे अमेरिका और यूरोपीय देश छोड़ नहीं सकते हैं।

पर डोनाल्ड ट्रंप का, अमेरिका का भारत से भी धंधा बड़ा है। भू-राजनीतिक-सामरिक-सुरक्षा व हथियारों की खरीद के खरबों डॉलर के भारत से सौदे है तो ट्रंप की मुस्लिम विरोधी राजनीति के प्रवासी अमेरिकी भारतीय वोटों का भी हिसाब है। तभी अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप की रीति-नीति में आज भारत और पाकिस्तान दोनों को उल्लू बना कर, दोनों के बीच बिल्ली वाली मध्यस्थता के मंसूबे में हर वह दिखावा हो रहा है, जिससे दोनों पक्ष अपने कंधों पर महाबली का हाथ रखा हुआ महसूस करें।

यह सब प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री इमरान खान दोनों के लिए इसलिए राहतदायी है क्योंकि दोनों देशों की जनता बिना सोचे-समझे, वैश्विक राजनीति की हकीकत जाने बिना बम-बम कुप्पा होने का मनोविज्ञान लिए हुए है। ह्यूस्टन के स्टेडियम में हुंकारों, आक्रामक तेवरों की लफ्फाजी के बीच ट्रंप को मंच पर साथ देख सवा सौ करोड़ भारतीय गदगद हुए तो न्यूयार्क में ट्रंप-इमरान की जुगलबंदी में कश्मीर में मध्यस्थता, मानवाधिकारों की चिंता, ईरान-अफगानिस्तान पर अमन की बातों ने पाकिस्तान में यह वाह बनवा दी है कि देखो हमारा इमरान खान कैसे #इमरानफॉरपीस है।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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