दैवीय घटना: करम जो फूटे हमारे!

0
264

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को ब्रह्य-ज्ञान हुआ। उन्होंने भारत का और खास कर हिंदुओं का सत्य बोला। बताया वायरस दैवीय घटना है व इस कारक से हम लाचार हैं। लेकिन भारत की लाचारगी क्या स्थायी नहीं है? हम हिंदू दैवीय श्राप के ही तो मारे हैं! क्या वायरस से पहले के पांच सालों में भारत लाचार नहीं था? क्या आर्थिकी में हम उड़ते हुए थे? क्या बेरोजगारी नहीं थी? क्या राजकाज बिगड़ा हुआ नहीं था? लोकतंत्र, समाज, व्यवस्था सबमें क्या भट्ठा बैठा हुआ नहीं था? निःसंदेह असंख्य हिंदू और मैं खुद भी मानता हूं कि अनुच्छेद 370 हटना, तीन तलाक खत्म होना याकि समान नागरिक संहिता की और बढ़ना, राम मंदिर, एक देश-एक टैक्स जैसे फैसले अभूतपूर्व थे। लेकिन ये फैसले भी ‘करम फूटे हमारे’ के उस सत्य के गवाह हैं, जिसमें 73 वर्षों का कुल लब्बोबुआब भारत का बुद्धिहीनता में जीना है। पंडित नेहरू का आइडिया ऑफ इंडिया हो या नरेंद्र मोदी का आइडिया ऑफ इंडिया, इस सबमें हिंदू के मुंगेरीलाल जीवन का सत्य ही तो छुपा है। मुंगेरीलाल के ख्याली पुलावों में ही तो अनुच्छेद 370 लगाना या हटाना जम्मू कश्मीर समस्या व हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि का उपचार है तो तीन तलाक, समान नागरिक संहिता से मुसलमानों के हिंदू जैसे हो जाने की सोच है या नोटबंदी से आर्थिकी के सफेद हो जाने या अफसरशाही-माईबाप व्यवस्था से भारत के भ्रष्टाचार मुक्त-साफ-स्वच्छ याकि जर्मनी-जापान की तरह उजला-अमीर होने का मुगालता है। इस तरह के मुगालतों की वजह? हमारी बुद्धि का झूठ, गुलामी में बंधुआ होने का दैवीय श्राप हैं!

तभी हिंदुओं पर दैव, दैवीय कृपा का सत्य है जो हस्ती मिटती नहीं तो बनती भी नहीं। चाहे दैवीय घटना कहें, दैवीय आपदा मानें या दैवीय श्राप जो हमने आजादी हासिल की, अपना राज पाया लेकिन बंधुआ बुद्धि के श्राप से मुक्ति का न ईश्वर से आशीर्वाद पाया और न यह सोचने का सामर्थ्य हुआ कि अंधकार क्या होता है और उजाला क्या! सोचें, भारत के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री और सभी आज मान बैठे हैं कि वायरस दैवीय घटना है, वैश्विक आपदा है सो, सरकार क्या कर सकती है और जितना कर रही है क्या वह कम है? अमेरिका और यूरोपीय देश भी वायरस के शिकार हैं।

निःसंदेह वायरस वैश्विक महामारी है। मगर अमेरिका और यूरोपीय देश बुद्धि बल के साथ वायरस से लड़ रहे हैं। वे भगवान भरोसे नहीं हैं, बल्कि विज्ञान-चिकित्सा और साफ-सुथरी-चुस्त-पुख्ता-संवेदनशील व्यवस्था से महामारी पर काबू पाने की कोशिश में हैं। इन देशों के किसी वित्त मंत्री ने यह नहीं कहा कि वायरस दैवीय घटना है तो संघीय सरकार प्रदेशों को उनका पैसा देने की स्थिति में नहीं है। वे जानें उनका काम जाने! ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने नहीं कहा कि वायरस वैश्विक घटना है तो उसके साथ जीना होगा और अनलॉक शुरू होगा तो सब कुछ सामान्य बना डालो फिर भले कितने ही लोग मरें। वायरस के व्यवहार अनुसार, उसके फैलाव की समीक्षा करते हुए देशों ने पाबंदी और ढील में तथ्य, सत्य और संवेदनाओं के बौद्धिक बल से फैसले लिए हैं। उन्होंने नित नए नियमों का, लापरवाही का वह जंगल नहीं बनाया, जिससे देश, लोग और भटकें।

तभी अपना गारंटीशुदा मानना है कि जब यह महामारी खत्म होगी तो दुनिया जानेगी कि बाकी दुनिया में क्या हुआ और भारत कैसे सर्वाधिक आबादी में सर्वाधिक बरबादी लिए हुए है। चीन जैसे सघन आबादी वाले देश भी 21वीं सदी के बुद्धि बल से दिवालिया, बरबाद वैसे नहीं हुए, जैसे भारत हुआ।

क्यों? इस सवाल के पीछे का सत्य क्या होगा? जवाब है वायरस के बाद जीवन, समाज, राजनीति, लोकतंत्र, आर्थिकी में भारत सर्वाधिक बरबाद हुआ इसलिए होगा क्योंकि बुद्धि के कुंद, बंधुआ होने का दैवीय श्राप, जो हमें गुलामी से मिला हुआ है।

हां, छह महीने बाद या 2021-22 या भविष्य में भारत का पोस्ट वायरस सत्य वैश्विक चिंता, चर्चा का रूप लिए हो सकता है। हम सन् 2022 में जब आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे होंगे तो निश्चित ही दुनिया सोचेगी कि इस पृथ्वी पर ऐसी कोई कौम कैसे है जो 75 साल पहले जहां थी वहां अभी भी है! तब 30 करोड़ लोग भूखे-नंगे थे, अब सौ करोड़ लोग पांच किलो अनाज-एक किलो दाल खा कर जीवन जी रहे हैं। किसान दो-चार हजार रुपए का गुजारा भत्ता पा रहे हैं। देश की श्रमशक्ति बेरोजगार है और आर्थिकी चीन की गुलाम। तब बिड़ला-टाटा थे अब अंबानी-अदानी व अमेरिकी कंपनियां हैं। तब अंग्रेज गवर्नर-जनरल का मुजरा करते हुए अदालत, मीडिया, नौकरशाही थी अब नरेंद्र मोदी का मुजरा करते हुए ये सब हैं। तब लोग निरक्षक थे अब व्हाट्सअप के झूठ में अपने को ज्ञानी-साक्षर मानने के मुगालते में लोग जीते हैं। तब भी हिंदू-मुसलमान था और अब भी हिंदू-मुसलमान है। तब लोग आजादी-आजादी का शोर लिए हुए थे जबकि अब सत्ता की गुलामी, उसकी भक्ति में गौरवान्वित है!

इस सबके पीछे कौन जिम्मेवार? हम और हमारी बुद्धि या ‘एक्ट ऑफ गॉड’ याकि ईश्वर का कृत्य? मोदी सरकार अब पूरी तरह भगवान पर ठीकरा फोड़ने को आमादा है। उस अनुसार हम लोग जिम्मेवार नहीं हैं, हमारे नेता जिम्मेवार नहीं हैं, हमारी व्यवस्था जिम्मेवार नहीं है, हमारे नेहरू और नरेंद्र मोदी जिम्मेवार नहीं हैं तो फिर जिम्मेवार कौन है? जाहिर है ईश्वर? ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानी ‘ईश्वर का कृत्य’ है, जिसके चलते हम बरबाद हैं। अब ऐसा है तो हम हिंदुओं के सृष्टि रचयिता भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी को अपूर्ण मानें या हम उनसे आशीर्वाद लायक नहीं?

सोचें, क्या सोचेंगे आप! मैं हाल में इन खबरों से बहुत शर्मिंदा हूं कि वायरस के काल में बांग्लादेश भारत से आगे बढ़ रहा है। संभव है बांग्लादेश में प्रतिव्यक्ति आय इसी साल भारत की प्रतिव्यक्ति आय से अधिक हो जाए और अफ्रीका का इथियोपिया और घाना जैसे कभी महा अंधकार के देश थे वे भी बहुत तेजी से विकास करते हुए हों।

ऐसी खबरें जान कर दिमाग भन्ना जाता है। भारत के हम लोगों के लिए, हम हिंदुओं के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है जो बांग्लादेश में कोरोना वायरस के बावजूद आर्थिकी की विकास दर सन् 2020 में छह प्रतिशत होगी। सोचें, सोमवार को भारत के 138 करोड़ लोगों ने, दुनिया ने जाना कि सन् 2020 के वित्तीय वर्ष के अप्रैल से जून की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी की गिरावट हुई। मतलब पिछले 40 सालों में पहली बार देश की जीडीपी में इतनी भारी, रिकार्ड़ तोड़ गिरावट। ठीक विपरीत बांग्लादेश के योजना मंत्री मुहम्मद अब्दुल मन्नान का बयान है कि बांग्लादेश की विकास दर इस वर्ष छह से सात प्रतिशत रहेगी। लक्ष्य 8.2 का था उससे दो-ढ़ाई प्रतिशत कमी होगी। सरकारी सत्य न मानें और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान पर गौर करें तो उसके अनुसार भी वैश्विक मंदी के बावजूद बांग्लादेश की जीडीपी 3.8 प्रतिशत रहेगी। कहां भारत नकारात्मक जीडीपी में -23 प्रतिशत की स्थिति में और कहां बांग्लादेश दो महीने लॉकडाउन में रहने व मार्च में अमेरिका से कोई सवा दो अरब डॉलर के कपड़ों के आयात का ऑर्डर रद्द होने के बावजूद विकास में छलांग मारता हुआ व दुनिया को चमत्कृत करता हुआ!

हां, झूठ, बुद्धिहीनता, आंखों पर पट्टी बांधे हुए हम लोगों को जानना चाहिए कि जिस बांग्लादेश को हम भूखा-नंगा, बरबाद मानने का ख्याल बनाए हुए हैं वह पिछले तीन वर्षों में डॉलर रेट पर जीडीपी में 12.9 प्रतिशत विकास दर में छलांग मारता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छह सालों में भारत की आर्थिकी बरबाद हुई है वहीं ठीक विपरित छह सालों में इस तेज रफ्तार से बांग्लादेश आगे बढा है कि सन् 2020 में भारत की प्रतिव्यक्ति आमदनी से ज्यादा बांग्लादेशियों की प्रतिव्यक्ति आय होगी। तमाम वैश्विक रपटों का निचोड़ है कि विकास दर के साथ सामाजिक खर्च, लोगों पर खर्च आदि में भी बांग्लादेश पिछले छह सालों में भारत से बहुत आगे हुआ है। डॉलर रेट में प्रतिव्यक्ति आमदनी वहां भारत से तीन गुना तेज रफ्तार में बढ़ी है। सन् 2016 में प्रतिव्यक्ति आमदनी 1,355 डॉलर थी जो तीन वर्षों में चालीस प्रतिशत बढ़ी। उसके बाद पाकिस्तान में 21 प्रतिशत की रेट से प्रतिव्यक्ति आमद बढ़ी वहीं भारत में सिर्फ 14 प्रतिशत की रफ्तार से।

क्या इस सबको, अगल-बगल के देशों की हकीकत को नरेंद्र मोदी, निर्मला सीतारमण, भारत सरकार, उसके बाबू और औसत भारतीय व हिंदू जानते हैं? क्यों हम भारतीयों की बुद्धि के पट बंद हैं, जो इतना भी नहीं बूझ सकते हैं कि भारत के कपड़ा उद्योग, रेडिमेड कपड़ों के धंधे को छह सालों में बांग्लादेश ने कंपीटिशन दे कर खाया है। उसने अपने को दुनिया का नंबर दो कपड़ा निर्यातक बनाया है। उसने चीन को कंपीटिशन दिया है, चीन से आयात की निर्भरता (हां, सचमुच) घटाई और भारत की फैक्टरियों पर ताले लगवाने की नौबत ला कर अपनी कहानी बनाई है तो आखिर कैसे? दुनिया का हर नामी ब्रांड आज अपनी फैक्टरी लगा कर या आउटसोर्स कर बांग्लादेश में बने रेडिमेड कपड़े पूरी दुनिया को बेच रहा है। भारत बांग्लादेश से पिछड़ गया है। मतलब अब बांग्लादेशी भारत में नहीं आएंगे, बल्कि भारत के पश्चिम बंगाल, असम से लोग बांग्लादेश जा कर रोजी-रोटी कमाना चाहेंगे!

क्या आपके दिमाग पर, बुद्धि पर इस उदाहरण से कोई हथौड़ा चला? मैंने बांग्लादेश के योजना मंत्री या प्रधानमंत्री से यह वाक्य नहीं सुना कि दैवीय विपदा है या ‘एक्ट ऑफ गॉड’ याकि ईश्वर का कृत्य है जो हम बरबाद हो रहे हैं। ध्यान रहे बांग्लादेश में लॉकडाउन दो महीने रहा है। दुनिया के निर्यात ऑर्डर घटे हैं लेकिन बुनियाद इतनी मजबूत बन गई है कि वह लगातार विकास दर लिए हुए होगा। भला क्यों? क्या बांग्लादेश के अल्लाह हू अकबर ज्यादा समर्थ भगवान हैं जो उन्होंने वायरस से देश को बचा रखा है और हमारे भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी, रामजी, हनुमानजी बाकी धर्मों के प्रभु यीशु या पैगंबर साहब से हल्के हैं, जो हिंदुओं की सरकार ‘एक्ट ऑफ गॉड’ याकि अपने ईश्वर के कृत्य का रोना, भगवानजी पर ठीकरा फोड़ने का रोना रो रही है?

नहीं, हम हिंदुओं के भगवान ज्यादा समर्थवान हैं। कौम को सनातनी, कालजयी जीवन दिए हुए हैं। मगर हमारे हाथों हमने करम फोड़े रखे हैं तो भगवानजी क्या करें? हमने गुलामी के हजार साला अनुभव में अपनी बुद्धि को गुलाम, राजा के यहां, सत्ता के यहां गिरवी रख हुकूमगिरी में, भक्ति, पूजा-पाठ, लंगूरीपने, झूठ में अपने को बांधा हुआ है। इस बंधुआगिरी का पीक क्योंकि मोदी का मौजूदा राज है तो लक्ष्मीजी का यह श्राप भयावह साबित हुआ है और होगा जो उनकी चंचलता को खत्म करने की मूर्खता से फलीभूत है। कोई भी भगवान हो वह सत्य पर कृपावान होगा न कि झूठ, मूर्खता और बंधुआ जीवन जीते हुए अंधविश्वासी, मुंगेरीलालों पर। भारत के 138 करोड़ लोग ‘एक्ट ऑफ गॉड’ से बरबाद नहीं हैं, बल्कि ‘हिंदू अनुयायियों के कृत्य’ से है!

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here