जाने कितने दर्द इस दिल में।
सताते हैं हमको वो पल-पल में।।
क्यों मिला मुझे दुःखों का भण्डार।
ना झेल पायेंगे हम इसका भार।।
था ऐसा क्या हमने बुरा किया।
जो खुशियों को हमारी है चुरा लिया।।
जाने कितने हमने देखे थे सपने।
पर] तोड़ दिल यह पराये हुए हैं अपने।।
रहती झूठी हमारे चेहरे पर मुस्कान।
मिल गया मिट्टी में हमारा हर ज्ञान।।
नहीं अपनाना तो मत अपनाओ।
कहते हैं हमारी नजरों से दूर हो जाओ।।
क्यों हो एक दुजे के चरित्र से अन्जान।
दूजे के लिये दुःखो को ही हम करते बयान।।
वाकई हर तरह से मुश्किल हो जाता जीना।
बन जाती है आदत दुःख भरी घूंट को पीना।।
कहां तक आखिर मैं कहती जाऊॅं।
चलाओ हम पर चलाने जितने भी दांव।।
ना समझना कभी हम गये हैं हार।
आज भी वैसे ही हैं हम दिलदार।।
कर लो बेशक सब कुछ हम से दूर।
करो कितना भी हमारी खुशियों को चूर-चूर।।
न था ऐसा तो हमारा कोई भी गुनाह।
जो दी इतने बड़े गम को जीवन में पनाह।।
ज्योति