बच्चा हो या व्यस्क-देश का हर व्यक्ति पत्रकार है। बच्चा, अपने भाई, बहन व पापा को सूचना देता है, कि मां ने खाना बना दिया हैं। आकर-खा लेवे अथवा यह सूचना देता है, कि मां बीमार हो कर अचेत हो गयी है। समाचार को एक दूसरे के पास जो पहुंचाये वही पत्रकार है। पत्रकारिता एक मिशन है ना की व्यवसाय। राजनैतिक व सामाजिक व्यक्तियों की पत्रकारिता करने की इच्छा जागती थी, तो वह अपने व्यवहार से प्रिन्ट मीडिया के किसी पत्रकार के सानिध्य में पार्ट टाइम रह कर नि:शुल्क पत्रकारिता सीख कर महारथ हासिल कर लेता है। ठीक इसी तरह आकाशवाणई में भी पत्रकारों की स्थिति रही। बिना किसी ट्रेनिंग के भी विलक्षण प्रतिभा के धनी ऐसे पत्रकार निकले , जो समाचार से समाचार निकाल कर सरकार को रचनात्मक सुझाव देते थे। यदि आलोचना कुन्द हो गई तो अधिनायक वादी एवं तानाशाही शक्तियां प्रभावी हो जाती है। जिस सरकार ने आलोचकों को हासिये पर खड़ा किया ऐसे घृणित कार्य का लोकतंत्र में कोई स्थान नही है।
सरकार के उत्पीडऩ का शिकार देश के कई पत्रकार भी हुए। दमन से समाजिक कार्यकर्ता भी नहीं बचे। अतीत को झॉक कर देखिए तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का सीढ़ी पर चढ़ते समय कही पैर लडख़ड़ा गया, तो उनके पीछे चल रहे महाकवि दिनकर जी ने पखुरा पकड़ कर हाथ से ओट देकर कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी, जब इसी तरह देश की राजनीति लड़खडा़येगी तो कोई साहित्याकार ही बचा सकता है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपने चैनल में शुक्ल लेकर ट्रेनिंग सेन्टर में भर्ती कर डिप्लोमा होल्डर बनाने के नाम पर दुकानें खोल रखी है ऐसे ‘डिप्लोमा होल्डरी’ को किसी चैनल में जगह नहीं मिली तो वह अपने भविष्य का निर्माण कैसे करेंगे? मीडिया का व्यवसायीकरण एवं समाचारों का स्थानीयकरण होना गम्भीर चिन्ता का विषय है।
जिस समचार को चाहे एक जीला से दूसरे जिला के पाठक न पढ़ सके। एक प्रदेश के अलावा दूसरे प्रदेश का दर्शक समाचार न सुन सके। जब यह धर्म बन जाए तो क्या कहा जाए? जनता को धोखा व गुमराह करने का कार्य अंजाम देने वाले पत्रकार को किस उपाधि से विभूषित किया जाय यह विचारणीय विषय है। किसी मीडिया के पत्रकार सरकारी कार्यालयों में बैठकर दलाली करने से नैतिक पतन हो चला है। इनका सामूहिक बहिष्कार कर विरोध किया जाना चाहिए। जिस व्यक्ति का पत्रकारिता से दूरदराज का कोई रिश्ता न हो और वह पत्रकारिता के नाम पर चर रहा है तो उसकी जगह जेल में होनी चाहिए। देश की जनता ने ब्रितानिया हुकूमत से लड़ कर उन्हें सात समुन्दर पार खदेड़ दिया। फिर फर्जी व दागी को झेल क्यों रही है।
शिवकुमार गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं