दरिंदगी पर चेती योगी सरकार

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देश को झकझोर कर रख देने वाले कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस में आखिरकार पठानकोट सेशन कोर्ट ने सोमवार को तीन दोषियों दीपक खजुरिया, सांजी राम और परवेश कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसमें संतोषप्रद बात ये है कि एक साल बाद दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता साफ हो गया। इस बीच कठुवा रेप और मर्डर जैसे मामले यूपी में भी सिलसिलेवार सामने आए हैं जिससे योगी सरकार के इकबाल पर सवाल उठ रहा है। विपक्ष का तंज अपनी जगह है, प्रदेश के आम लोग भी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर खासे चिंतित हैं। अलीगढ़ में टप्पल क्षेत्र में एक ढाई साल की बच्ची के साथ हुई दरिंदगी से हर कोई गुस्से में है। इसके बाद हमीरपुर, बरेली और कुशीनगर में भी बच्चियों के साथ हैवानियत की वारदात से लोगों का पुलिस पर से विश्वास उठता जा रहा है।

इसकी वजह ये है कि जब तक किसी प्रभावशाली शख्स का फोन थाने ना पहुंचे, पीडि़त की सुनवाई ही नहीं होती। यही तो टप्पल कांड के परिवार संग भी हुआ था। 31 मई को गायब हुई बच्ची की रिपोर्ट लिखाने थाने गए पारिवारिक सदस्यों को यह कहकर टरका दिया गया था कि कहीं गई होगी, आ जाएगी। आखिरकार दो जून को कूड़े के ढेर में जब उसकी क्षत-विक्षत लाश मिली तब पुलिस हरकत में आई। यह पुलिस का उदासीन रवैया ही है कि अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को कानून का भय नहीं रहता। देर से सही, पर योगी सरकार ने हाल की घटनाओं का संज्ञान लिया है। लोक भवन में मुख्यमंत्री ने पुलिस और गृह विभाग के अफसरों संग कानून-व्यवस्था की समीक्षा की और हाल की अमानवीय घटनाओं पर लताड़ भी लगाई। महिलाओं और बच्चियों संग हैवानियत की बढ़ती वारदातों से चिंतित योगी सरकार ने एंटी रोमियो स्क्वायड को फिर से प्रभावी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

हालांकि सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री ने रोमियो के खिलाफ दस्ते का गठन किया था। उसका सडक़ और पार्कों में प्रभाव भी दिखने लगा था। पर हफ्ते भर बाद ही एंटी रोमियो स्क्वायड के तौर-तरीकों पर सवाल उठने लगे। ऐसी शिकायतें भी रहीं जिसमें पुलिस पूछताछ के नाम पर युवा जोड़ों को परेशान करने की भूमिका निभाती देखी गई। आखिरकार कस्बे स्तर तक गठित एंटी रोमियो स्क्वायड शो पीस बनकर रह गया। कुछ पुलिस कर्मियों की कार्यशैली से यह अभियान विवाद में रहा। अब एक बार फिर इसे प्रभावी बनाने की दिशा में पुलिस विभाग बढ़ रहा है, अच्छी बात है। विकृत मानसिकता वाले लोगों में खाकी वर्दी का भय तो होना ही चाहिए। पर यह ध्यान रहे कि अंकुश के नाम पर ज्यादती ना हो। यदि फिर ऐसा हुआ तो मनचले बेलगाम हो जाएंगे और बच्चियों-महिलाओं के साथ हैवानियत के मामले फिर बढ़ेंगे। बेहतर हो कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझे और खोया हुआ विशस पाने की चेष्टा करे।

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