अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का ऐलान। प्रधानमंत्री द्वारा एनआरसी की बात को झूठा करार देने के 48 घंटों के भीतर एनआरसी को बनवाने वाले आंकड़ा आधार (mother database) याकि एनपीआर को कैबिनेट ने मंजूरी दे डाली। यों जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि एनपीआर और एनआरसी में कनेक्शन नहीं है। एनपीआर के आंकड़े एनआरसी में इस्तेमाल नहीं होंगे। पर इस बात कि पड़ताल करते हुए कोलकाता के द टेलीग्राफ अखबार ने संसद के भीतर मंत्री के जवाब और केंद्रीय गृहमंत्रालय की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट का जो अंश छापा है तो जैसे प्रधानमंत्री का कहा झूठ माना गया वैसे ही प्रकाश जावडेकर के झूठ परइस अखबार में शीर्षक है कि ‘मंगलवार को हमने क्या सुना और उससे पहले क्या कहा गया था!’
मगर मोदी सरकार के मामले में अब सत्य और झूठ की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। तभी हैरानी वाली बात है कि जब दुनिया को नागरिकता संशोधन कानून से मोदी सरकार ने बता दिया है कि मुस्लिम घुसपैठियों, शरणार्थियों, अवैध मुसलमानों का भारत में स्वागत नहीं है, भारत इनकी धर्मशाला नहीं होगा तो फालतू का लाग-लपेट, नाक को इधर-उधर से पकड़ने की एप्रोच व बातें क्यों? मोदी-शाह ने दस तरह से मंशा बताई हुई है और अब संसद से भी कानून बना कर अधिकृत तौर पर ‘मुस्लिम’ शब्द पर मंशा को दुनिया के आगे अधिसूचना से प्रकट कर दिया है तो इधर-उधर की बात क्यों? क्यों कांग्रेस, शहरी नक्सलवादियों को गुमराह करने वाला बताना!
हां, दिसंबर 2019 में मोदी सरकार ने, गृह मंत्री अमित शाह ने खम ठोक उस कानून की अधिसूचना जारी की है, जिससे दुनिया ने जाना कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शरणार्थी, अवैध लोगों में से नागरिक मानने या न मानने में व्यक्ति विशेष के ‘मुस्लिम’ होने का भेद एक कसौटी होगा। कानून से बेबाकी व दो टूक स्पष्टता।इस कानून को कोई कैसे भी ले, संविधान की मूल भावना के खिलाफ या साहस की मिसाल या नए भारत को धर्मशाला नहीं बने रहने देने का संकल्प में कैसे भी सोचें मगर है तो मोदी सरकार के इस रोडमैप का यह ठोस कदम कि भारत में रह रहे गैरकानूनी,घुसपैठिए, अवैध लोग चिन्हित होंगे, एनपीआर, एनआरसी बनेगा तो डिटेंशन कैंप भी बनेंगे।
इसके खिलाफ विपक्ष का, सिविल सोसायटी का विरोध करने का, आंदोलन करने का हक है तो मुस्लिम आबादी को गुस्से-प्रदर्शन का भी हक है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी घोषणापत्र, राजनीतिक एजेंडे में कुछ मुस्लिम देशों के लोगों की आवाजाही को रोका तो वहां के लोकतंत्र में बवाल हुआ, दुनिया ने ट्रंप की रीति-नीति को गलत माना मगर व्हाइट हाउस के आगे प्रदर्शन कर रहे मुसलमानों या सिविल सोसायटी पर लाठियां नहीं चलवाई गईं। वैसा कुछ नहीं हुआ जैसे दिल्ली में जामिया मिलिया में पुलिस भेज लाठियां चलवाईं, दरियागंज में कहर बरपाया!
सोचें, कि सरकार का एजेंडा ‘धर्मशाला’ की जगहवैध नागरिकों का रजिस्टरयुक्त राष्ट्रराज्य है। उसकी प्रक्रिया में एक कानून बना, उसमें ‘मुस्लिम’ शब्द के विशेष जिक्र से बवाल हुआ तो एक तरफ लाठियां भांजना और दूसरी तरफ यह कहना कि हम कुछ कर ही नहीं रहे हैं और जो है वह शहरी नक्सलियों का गुमराह करना है तो इस एप्रोच से होगा क्या?सत्य पर टिकना या सत्य छुपाना?
अपना मानना है कि सत्य को सत्यता से बता कर मुसलमानों को भी समझाया जा सकता है तो शहरी नक्सलवादियों को भी समझाया जा सकता है। मोदी-शाह-भाजपा यदि कह रहे हैं कि कांग्रेस की सरकारों, मनमोहनसिंह के हाथों ही भारत को धर्मशाला की जगह एनआरसीयुक्त राष्ट्र-राज्य बनाने का फैसला हुआ था तो यह गलत नहीं है और इससे कांग्रेस, विपक्ष का इनकार भी नहीं है लेकिन नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून बना कर उसमें ‘मुस्लिम’ शब्द से जो भेद बनाया वह उसकी अपनी अलग सोच से है। इससे मुस्लिम शंकित हुए हैं तो उनके विरोध-प्रदर्शन पर लाठियां चलाने, धमकाने या गुमराह हुआ बतलाने से शंका दूर नहीं होगी।
हिसाब से नागरिकता संशोधन कानून गहरा अर्थ लिए हुए है। कानून से व्यवस्था बनी है कि मुसलमान को छोड़ कर बाकी सब याकि हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई प्राकृतिक-सहज हक में, नेचुरलाइज्ड अंदाज में भारत में यदि बतौर शरणार्थी, घुसपैठिए भी हैं तो वे नागरिकता के हकदार हैं। मतलब हुआ कि ‘धर्मशाला’ में अब नागरिक मानने, कहने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई की नागरिकता पर न शक की गुंजाइश है और न उनसे नागरिकता के दस्तावेज लेने की जरूरत है।
इसलिए अपना तर्क है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से अपने आप घुसपैठिए, अवैध नागरिकों को चिन्हित करने का काम लगभग 85 प्रतिशत आबादी में अपने आप हो गया है। मतलब मुसलमान को छोड़ कर बाकी किसी और धर्मावलंबी का रिकार्ड बनाना, दस्तावेज लेना-जांचना जरूरी नहीं रहा। पाकिस्तान या बाग्लांदेश से यदि हिंदू, जैन, सिख आया है और वह अवैध रह रहा है, दस्तावेजों से उसकी नागरिकता प्रमाणित नहीं है (जैसे असम में कोई 12 लाख हिंदुओं की नहीं है) तब भी उनका नाम नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) में बतौर नागरिक मान्य है। तभी अब मुसलमान की ही जांच-पड़ताल का मसला बचता है!
इस बात को और समझें। सोचें नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तीनों का बतौर राष्ट्र-राज्य सत्व-तत्व, मकसद क्या है? जवाब है भारत के नागरिकों का सच्चा-अधिकृत रिकार्ड बने। यह काम तब होता है जब घुसपैठियों, विदेशियों, शरणार्थियों को चिन्हित करके उन्हें अलग रखें। तो विदेशी, घुसपैठिए,शऱणार्थी, कौन?
विदेशी वह जो दूसरे देश के नागरिक होने का दस्तावेज दिखा कर मतलब पासपोर्ट आदि से भारत में रह रहा है। ऐसे ही शरणार्थी भी (जैसे रोहिंग्या, अफगान, तिब्बती आदि) एंट्री करा कर भारत में शरण लिए हुए हैं। अब बचे घुसपैठिए? तो जाहिर है पड़ोसी देशों से गैरकानूनी तौर पर सीमा में घुसे लोग। इसमें हिंदू भी हैं तो मुसलमान भी हैं! इसी के झमेले में असम में एनआरसी बना और सालों की भारी कवायद के बाद कोई 19 लाख हिंदू, मुस्लिम घुसपैठिए चिन्हित हुए। अब हिंदुओं को पाकिस्तान, बांग्लादेश धकेला नहीं जा सकता सो, मोदी-शाह ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बना बतलाया कि मुस्लिम को छोड़कर बाकी सभी धर्मावलंबी स्वभाविक, प्राकृतिक तौर पर भारत की नागरिकता के हकदार हैं। मतलब ये तो भारत के नागरिक माने ही जाएंगे।
तो अब छूटे कौन? जाहिर है मुसलमान! तब यदि असम का एनआरसी मॉडल ही अखिल भारतीय पैमाने पर अमल में आना है तो उसकी कवायद का फोकस बिंदु क्या बनेगा? हिसाब से हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि उन तमाम लोगो को लाइन में नहीं लगाना चाहिए जो अपने को मुसलमान नहीं बताते हैं।
अपना यह तर्क नागरिकता संशोधन कानून की हकीकत में है। आखिर भारत की संसद, संविधान ने जब यह कानून बना लिया है कि मुस्लिम को छोड़ कर बाकी सभी धर्मों के शरणार्थी, घुसपैठिए, बिना दस्तावेज के रह रहे लोग भारत के नागरिक बनने के सहज, नेचुरल हकदार हैं तो भारत की 85प्रतिशत आबादी (मुस्लिम को छोड़कर) को नागरिकता केंद्रों के आगे कागज ले कर खड़ा करवाने की क्या जरूरत है? उनके दस्तावेज, कागज सही हों या न हों, क्या फर्क पड़ता है। उनके नामों को अपने आप आधार कार्ड अनुसार रजिस्टर में दर्ज कर देना चाहिए। मगर ऐसा उस धर्म के साथ नहीं हो सकता है, जिसे कानून में ‘मुसलमान’ के रूप में चिन्हित करके व्यवस्था बनी है कि इस धर्म के घुसपैठियों, अवैध लोगों को नागरिक मानने न मानने का फैसला दस्तावेजों की पुष्टि के साथ सरकार करेगी!
समझे आप कि मैं क्या हकीकत बता रहा हूं? अब ‘धर्मशाला’ में मसला सिर्फ मुस्लिम आबादी की नागरिकता का है। बवाल के बाद पिछले पांच-आठ दिनों से सरकार विज्ञापनों से समझा रही है, मोदी ने कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून या एनआरसी से ‘हिंदुस्तान की मिट्टी के मुसलमानों’ मां भारती के लालों को चिंता करने की जरूरत नहीं है! ठीक बात है लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों, रोहिंग्या, अफगान-पाकिस्तानी घुसपैठियों (मुस्लिम) को तो चिन्हित करना है। और ये क्या मुसलमानों के बीच में से नहीं होंगे? तो नागरिकता केंद्र के फार्म में जानकारी के प्रमाण तो देने होंगे।
इसलिए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के बाद एनआरसी का मतलब बहुत बदल गया है। कोलकत्ता के द टेलीग्राफ के अनुसार अमित शाह के पुराने ट्विट डिलिट हुए हैं लेकिन 22 अप्रैल 2019 के इस टिवट को जरूर ध्यान में रखें कि – पहले हम नागरिकता संशोधन बिल ला कर हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन शरणार्थियों, पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों, को नागरिकता देंगे। तब एनआरसी को लागू करेंगे और घुसपैठियों को निकाल बाहर करेंगे।
सोचंे जब हिंदू, बौद्ध, सिक्ख, जैन और ईसाई शरणार्थी को भारत छोड़ने के लिए नहीं कहा जाना है और एनआरसी से हिंदू, बौद्ध, सिक्ख, जैन और ईसाई शरणार्थी प्रभावित नहीं होने है तो सत्य क्या निकलता है? तो वह है मुस्लिम घुसपैठिए का सत्य! और यह सत्य ही राजनीति के दस झूठ लिए हुए है।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं