तीन तलाक को आखिरकार तलाक मिल ही गया

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तीन तलाक को सरकार ने आखिरकार तलाक दे ही दिया। संसद के दोनों सदनों ने बहुमत से इस कानून पर मुहर लगा दी है। राज्यसभा में सरकार का अल्पमत होते हुए भी उसने इस कानून को पास करवा लिया, इसे उसकी चतुराई तो कहा ही जाएगा लेकिन जिन विपक्षी सांसदों ने मतदान से दूर होकर इस विधेयक को पारित होने दिया, वे भी बधाई के पात्र हैं। मुझे आनंद तो तब होता जबकि अपनी मुस्लिम बहनों और बेटियों को बड़ी राहत पहुंचाने वाला यह कानून सर्वसम्मति से पारित होता।

दुख की बात है कि विपक्ष के सभी मुस्लिम सांसदों ने इसके विरोध में मतदान किया। क्या वे बीसियों मुस्लिम देशों में लागू इस कानून के बारे में नहीं जानते? मैं तो कहता हूं कि जिन मुस्लिम देशों में यह कानून लागू नहीं है, उनके लिए भारत प्रेरणा का स्त्रोत बनेगा। शाह बानो के मामले में राजीव गांधी सरकार ने जो शीर्षासन किया था, उसके खिलाफ इस्तीफा देने वाले बहादुर मंत्री आरिफ मुहम्मद खान से ज्यादा खुश आज कौन होगा?

आरिफ भाई के क्रांतिकारी संघर्ष को आज भाजपा ने एतिहासिक शिलालेख का रुप दे दिया है। एक गैर-मुस्लिम देश होते हुए भी भारत में यह कानून लागू हुआ, यह भाजपा सरकार की विलक्षण उपलब्धि है। इसे मुसलमान-विरोधी कानून मानना शुद्ध नादानी है। बेहतर तो यह होता कि इस कानून को सर्वसम्मत बनाने के लिए विपक्षी सांसद जमकर बहस करते, रचनात्मक सुझाव देते और प्रधानमंत्री को पत्र लिखते। मूल विधेयक और मूल अध्यादेश में सरकार ने यों भी काफी संशोधन कर दिए हैं।

तीन तलाक का मूल विधेयक वैसी ही लापरवाही और नादानी से भरा हुआ था, जैसी कि नोटबंदी और जीएसटी थी लेकिन फिर उसकी आलोचना होने पर सरकार ने उसमें सहर्ष संशोधन कर लिये। तीन तलाक की कुप्रथा इतनी मजबूत रही है कि 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी भर्त्सना के बावजदू इसी अवधि में तीन तलाक के 574 मामले सामने आए हैं।

यह कानून बन जाने के बावजूद भी तीन तलाक बंद होने वाला नहीं है लेकिन तीन साल की सजा और आश्रितों को गुजारा भत्ता देने के डर के कारण तलाक देने वाला जितनी जल्दी तलाक देगा, उससे दुगुनी जल्दी उसे वह वापस भी ले लेगा। तीन बार तलाक बोलनेवाला छह बार उसे वापस ले लेगा। इस कानून का मकसद यही है। इसका मकसद मुस्लिम मर्दों को कठघरे में खड़े करना नहीं है बल्कि बेजुबान, बेसहारा, गरीब मुस्लिम बहन-बेटियों को मुस्लिम मर्दो के तात्कालिक गुस्से का शिकार होने से बचाना है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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