जोग लिखी गांव से

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गरीबी मिटाने की बात फिर सिर उठा रही हैं। सच कहा गरीबी मिटाने की बातें करते ही मेरी आंखों में गरीब मिटने व मानचित्र पता नहीं क्यों घूमने लगता है। आशंका होती है, गरीबी नहीं, गरीब मिट जाएगा। चिंता यह है कि गरीब मिट गया तो इस देश की मौलिकता समाप्त हो जाएगी और प्रजातंत्र को खतरा उत्पन्न हो जाएगा, इसलिए आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप दिल्ली में रह रहे हैं। दिल्ली गरीब देश की राजधानी है। दिल्ली में ही गरीबी मिटाने के कानून कायदे तैयार हो रहे हैं, इसलिए थोड़ा ध्यान रखना कि सरकार गरीबी का संपूर्ण उन्मूलन नहीं कर दे। पिछले दिनों गांव से लंगोटिया यार रामभरोसे का पत्र आया है। उसने लिखा है कि गांव में सब ज्यों-का-त्यों है। किसी प्रकार की चिंता मत करना। सुगनी काकी अपने पचास बरस पहले खरीदे हुए पुश्तैनी चरखे से आजीविका चला रही है और रामधन अपने कच्चे कुएं से ही डेढ़ बीघा खेत को जोतकर अपनी गृहस्थी की गाड़ी सींच रहा है। एक समाचार यह है कि रामधन की बड़ी बेटी विधवा हो गई है और अब वह रामधन के यहीं आकर रहने लगी है। शेष दो बेटियां भी जवान हो गई हैं।

रामधन और उसकी पत्नी इसी चिंता में रात दिन घुलते रहते हैं। रामभरोसे ने गांव से एक समाचार और भेजा है। वह यह कि गांव के मुकुन्द बिहारी की जो इकलौती बेटी शहर में ब्याही थी, उसे ससुराल वालों ने दहेज के लालच में जलाकर मार दिया है। मामला आत्महत्या का बनाया जा रहा है। उस दिन मुकुन्द बिहारी अत्यंत खुश थे कि उनकी बेटी को शहर वाले ब्याह ले जा रहे हैं। उन्हें पता नहीं था कि शिक्षा का स्वरूप इतना विकृत विकाल हो गया है। मुकुन्द बिहारी के पास पैसा नहीं है, इसलिए पुलिस उसकी कोई भी मदद करने में असमर्थ बताई जाती है। सच बात यह है, मेरे पास आपको लिखने को अपना कोई समाचार नहीं है। मैं तो रामभरोसे की चिट्ठी के ही समाचार आपको लिख रहा हूं। रामभरोसे ने यह भी लिखा कि जिस आशा से हरिया ने अपने लड़के को पढ़ाया था, उसके सारे सपने चूर-चूर हो गए हैं। लड़का एमए तो पास कर आया है, लेकिन अब उसे नौकरी नहीं मिल रही है और न वह घर का पुश्तैनी कामकाज कर पाता है, इसलिए लड़का घर का रहा न घाट का। लगता है उसकी गरीबी दूर नहीं होगी। उलटे वह शहर में लड़के को पढ़ाने के चक्कर में और बर्बाद हो गया है।

पत्नी के गहने भी गिरवी रख चुका है। गांव का सरपंच भी जब शहर जाकर आता है और कहता है कि अब गरीबों के लिए नई योजनाएं लाया हूं, गरीबी मिट जाएगी। सच, वह बहुत चालाक हो गया है। उसके दोनों बच्चे डॉक्टरी पढ़ रहे हैं और खेतों पर बिजली का पंपसेट दन्ना रहा है। अच्छी खेती उसी की है। अच्छा बीज व खाद भी ग्राम सेवक उसी को दे रहे हैं। उसने अपना शानदार दुमंजिला पक्का मकान बनवा लिया है और कहता फिरता है कि यह अन्त्योदय का कमाल है कि गांव का कयाकल्प हो रहा है। रामभरोसे का पत्र पढ़कर बहुत दुखी है मन। अरबों रुपये की पंचवर्षीय योजनाएं भी फलीभूत नहीं हो रही है और चंद लोग सरकारी पंजीरी फांक रहे हैं। आप लौटती डाक से मुझे लिखो कि क्या ऐसा ही होता रहेगा या वंचित सुधार की आशा भी है, ताकि मैं रामभरोसे को पत्र लिखकर आश्वस्त कर सकूं। रामभरोसे के पत्र का अंतिम भाग आपको बताऊंए उससे पहले थोड़ा रामभरोसे के बारे में भी बता दूं। हालांकि उसने अपने समाचारों के नाम पर केवल कुशलपूर्वक लिखा है। लेकिन मैं जानता हूं कि उसकी स्वयं की हालत क्या है?

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