जिम्मेदार कौन?

1
382

पहले संसद पर और अब सरहद पर हमलों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। दोनों हमलों पर मानसिक हमला हुआ है। इस हमले से न केवल घाटी दहल गई बल्कि उसी के साथ भारत की वो पीढ़ी भी दहल रही है जिसके ख्वाबों में सरहद पर जाकर देश सेवा करने का सपना अपने दिलों में संजोये हुए हैं उनके सपने भी चकनाचूर होते दिख रहे हैं। हमारे देश के युवाओं में सरहद पर लडऩे के लिये जिनके दिल में राष्ट्र सर्वोपरि है, वो भी दहल गए, जो सेना से प्रेम करते हैं वो युवा भी दहल गये है। इस घटना से हमारी सुरक्षा एजेंसियों के वे इंतजाम भी दहल गये जिन पर हम सब सुरक्षित होने का अभिमान करते हैं। ऐसी पीढ़ी भी दहल गई जिन्होंने 56 इंची सीने की दहाड़ सुनी थी। वे सब दहल गए जिन्होंने राष्ट्र नहीं बिकने दूंगा, राष्ट्र नहीं झुकने दूंगा सुना था। वे सभी दहल गए जिनके दिल में सवोपरि राष्ट्र है और कयास यही कि जिम्मेदार कौन?

श्रीनगर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंती पोरा के पास गोरीपोरा में एक स्थानीय आत्मघाती आदिल अहमद ने कार बम से सीआरपीएफ के एक काफिले में शामिल बस को उड़ा दिया। हमले में 4४ जवान शहीद हो गए। हमले की जिम्मेदारी तो आतकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ले ली है। इसके बाद भी कहां गए वो जिम्मेदार जिनके कंधों पर देश की सुरक्षा का जिम्मा है। कहां गए वो रहनुमा जो ये कहते कभी थकते नहीं थे कि देश सुरक्षित हाथों में है। देश के सुरक्षा जवानों के शीश नहीं कटने देंगे या उनके प्राणों की आहुति नहीं होने दी जाएगी। आखिरकार पुलवामा हमले ने बता दिया कि देश की अस्मिता के साथ खेलने वाले यथावत जिंदा हैं। नोटबंदी के बाद उन आता-ताइयों के पास नकली नोट खत्म होने से कमजोर हो गए आतंकी, ये कहने वालों के मुंह पर करारा तमाचा है पुलवामा हमला।

कई सुहागनों का सिंदूर उजड़ गया? अनगिनत बच्चे अनाथ हो गये? किसको बांधेंगी हमारी बहनें राखियां? अब कौन सहारा बनेगा बूढ़-मॉं-बाप का जिन्होंने अपने लाडलों को बलिदान कर दिया? इतना सबकुछ होने के बाद भी हमारे रहनुमा मौन हैं। इसके जिम्मेदार कौन है? तब भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के गायक वीर रस के हिन्दी कवि तथा ‘आवाज-ए-हिन्दुस्थान’ डॉ. हरिओम पंवार जी की रचना याद आती है-

सेना को आदेश थमा दो, घाटी गैर नहीं होगी।
जहां तिरंगा नहीं मिलेगा, उसकी खैर नहीं होगी।।

आज सारे देश में ऐसा लग रहा है कि मानों जिम्मेदारों की शांति-वार्ताओं के चलते सेना ही असुरक्षित हो गई है। फिर काहे की राफेल खरीदी और काहे की हथियारों की खरीदी फरोख्त। भूलना हम सबकी आदत में सुमार हो गया है। जम्मू-कश्मीर मसले पर केवल शांति पैगाम भेजना, शांतिदूत बनकर जाना। देश में ज्यादा बवाल हो जाए तो यूएन में जाकर बच्चों की तरह केवल चुगली करके आ जाना, क्योंकि यहां कोई 56 इंची सीना है ही नहीं, जो दम-खम से आतंक के हर एक नापाक मसूबों पर पानी फेर सके। यहां तो हिन्दी की कहावत “थोथा चना बाजे घना, ही चरितार्थ है। केवल चुनावी बरसाती मेंढकों की तरह चुनाव आते हैं तो चिल्लाना शुरू कर देंगे, जुमले-बाजी का दौर आ जाएगा। देश को झूठे वादे, झूठी कसमें दी जाएंगी। परंतु देश की सीमा और आंतरिक हालात असुरक्षित हैं। इसके जिम्मेदार कौन हैं? यह तो सवाल नहीं क्योंकि जो जिम्मेदार हैं, वो मौन हैं।

    – सुदेश वर्मा

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here