जातीय आरक्षण के विरुध्द फैसला

0
376
आरक्षण
आरक्षण

सर्वोच्च न्यायालय के एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले पर देश के अखबारों और चैनलों का बहुत कम ध्यान गया है। फैसले का मैं इसलिए स्वागत करता हूं कि यह देश से जातिवाद को खत्म करने में बहुत मदद करेगा। फैसला यह है कि आप किसी भी सरकार को जाति के आधार पर नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

हमारे देश में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ों को आरक्षण देने की प्रथा चली आ रही है। सरकारी नौकरियों में इनकी संख्या इनके अनुपात में काफी कम है। उनके साथ सदियों से अन्याय होता रहा है। ये सब लोग मेहनतकश होते हैं। हाड़तोड़ काम करते हैं। हमारे राजनीतिक दलों ने इस अन्याय को ठीक करने के लिए एक बहुत ही सस्ता-सा रास्ता निकाल लिया है। वह है, सरकारी नौकरियों में उनके आरक्षण दे दिया जाए।

कोई आदमी किसी पद के योग्य है या नहीं है, यदि वह अनुसूचित है या पिछड़ा है तो उसे उस पद पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है। इन जातियों के लोगों ने इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ लिया था। लेकिन कुछ वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़ों में जो क्रीमी लेयर याने मलाईदार परत याने संपन्न लोग हैं, उनके आरक्षण को अनुचित बताया और अब उसने यह एतिहासिक फैसला दिया है कि अनुसूचितों को आरक्षण देना राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर करेगा। यह अनिवार्य नहीं होगा।

यह अनुसूचितों का मूलभूत अधिकार नहीं है। उसने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 2008 में दिए गए फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि उत्तराखंड सरकार को पूरा हक है कि वह समस्त सरकारी पदों को बिना किसी आरक्षण के भर सके। संविधान की धारा 16 में आरक्षण संबंधी जो प्रावधान है, वह राज्य सरकारों को इस बात की छूट देता है कि वे अपनी जांच के आधार पर तय करें कि उन्हें कोई पद आरक्षित करने हैं या नहीं ? यही सिद्धांत पदोन्नतियों पर भी लागू होता है।

मुझे विश्वास है कि सभी राज्य और केंद्र सरकारें इस फैसले पर सख्ती से अमल करेंगी। तब प्रश्न यह होगा कि हमारे करोड़ों पिछड़े, ग्रामीण, गरीब भाइयों को न्याय कैसे मिलेगा ? उनके साथ न्याय करना बेहद जरुरी है। राष्ट्र का यह नैतिक कर्तव्य है। दो तरीके हैं। पहला, उन सबके बच्चों के लिए शिक्षा, भोजन और वस्त्र मुफ्त दिए जाने चाहिए और दूसरा, मानसिक और शारीरिक श्रम की कीमतों में एक से दस गुने से ज्यादा फर्क नहीं होना चाहिए। वे अपनी योग्यता से आगे बढ़ेंगे। किसी की दया के मोहताज नहीं होंगे। स्वाभिमानी राष्ट्र का निर्माण होगा।


डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here