प्रभात के राष्ट्रव्यापी सर्वे का सार- अंग्रेजियत कल्चर से नहीं होगा बेड़ा पार
जगहों में नाम के बाद अब देश में नारे को लेकर चर्चाएं चल रही हैं कि आखिर अभिवादन संदेश के लिए गुड मार्निंग सर बोलना ठीक है या देश प्रेम का जज्बा पैदा करने के वास्ते ‘जय हिन्द’ के रास्ते चलना ज्यादा मुफीद है या फिर सघ की सोच के मुताबिक ‘जय भारत’ देशभक्ति जगाएगा? हकीकत ये है कि सुभारती विवि अपनी स्थापना के बाद लगातार यहां जय हिन्द के नारे को अभिवादन का अंग बना चुका है। वहीं देश के भाजपा शासित रहे कुछ राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान के बाद अब गुजरात के स्कूलों में जय हिन्द के नारे गूंजे है। बात यही खत्म नहीं हुई, अब संघ चाहता है कि ‘जय हिन्द’ के बजाय अगर ‘जय भारत’ कहा जाए तो इससे देश भक्ति की भावना ज्यादा प्रबल होगी। ‘प्रभात’ की ओर से किए गए सर्वे का जो सार निकलकर सामने आया है, उसमें राजनीतिक, समाजिक, आर्थिक व अन्य तबके के गणमान्य लोगों में ज्यादातर ने यही कहा है कि ‘जय हिन्द’ हो या ‘जय भारत’ दोनों ही प्रचलन में ज्यादा होने चाहिए। ]वन्दे मातरम्’ को पसंद करने वालों की तादात भी कम नहीं है। हां सब ये जरूर चाहते हैं कि अंग्रेजियत की ‘यस सर, नो सर’ की घर की गई कल्चर तत्काल बंद हो तो ज्यादा बेहतर। पर सबका यही कहना भी है कि जबरन कोई चीज थोपी नहीं चानी चाहिए।
हसन ने दिया था ‘जय हिन्द’ का नारा
सब जानते है कि ‘यस सर, नो सर’ अंग्रेजो की देन है, लेकिन जहां तक ‘जय हिन्द’ का सवाल है तो इस नारे का जन्म तभी हुआ था जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फोज का गठन किया था। हां इस नारे को जन्म देने वाले नेताजी के सचिव व दुभाषिए हैदराबाद के एक कलेक्टर के बेटे जैनुल अबिदीन हसन ने दिया था। उन्होंने देश प्रेम के लिए जर्मनी में अपनी इंजीनिरिंग की पढ़ाई भी छोड़ दी थी और नेताजी के साथ जुड़ गए थे। हसन बाद में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) में मेजर बन गए और बर्मा (म्यांमार) से भारत की सीमा पार तक के मार्च में हिस्सा लिया। आईएनए तब इंफाल तक पहुंच गई थी। आपूर्ति और हथियार की कमी की वजह से उसे पीछे हटना पड़ा था। शोध के मुताबिक हसन ने पहले ‘हैलो’ शब्द दिया था इसपर नेताजी ने उन्हें डपट दिया था। फिर उन्होंने ‘जय हिन्द’ का नारा दिया। जो नेताजी को पसंद आया और इस तरह ‘जय हिन्द’ आईएनए और क्रांतिकारी भारतीयों के अभिवाद का अधिकारिक रूप बन गया। बाद में इस देश के आधिकारिक नारे के तौर पर अपनाया गया। इसका आश्य भारत की वियज है।
आखिर आजाद भारत में अभिवादन संदेश अंग्रजों का कब तक चलेगा
अंग्रेजों से विरासत में मिली बहुत सी कुरीतियों से देश छुटकारा पा चुके हैं तो अब बारी आ चुकी है कि अभिवादन संदेश हमारे अपने हों। वो चाहे फोन पर हो या फिर आपसी मेल मिलाप में। हम ‘हैलो’ या ‘गुड मार्गिम, गुड इवनिंग’ की जगह ‘जय हिन्द’ का प्रयोग करें। अभी कुछ दिनों पहले गुजरात सरकार ने अपने स्कूलों में ‘जय हिन्द’ या ‘जय भारत’ अभिवादन संदेश बनाया है।
सुभारती विवि हमेशा से ही यह हिन्द के नारे को मानता व अपनाता आया है। लिहाजा ‘प्रभात’ ने अपने कर्तव्य पूरा करते और असल में भारत की जनता क्या चाहती है यह जानने के लिए पूरे हिन्दुस्तान में एक सैंपिल सर्वे कराने की ठानी। इस सर्वे में तीन सवाल पूछे गए। जो इस प्रकार है- आप फोन पर या किसी ईष्ट मित्र से मिलने पर या फिर अपने स्कूल कॉलेज में इन तीन संबोधन में क्या पसंद करते है यह तीन हैं “जय हिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम्।” सारे रिपोर्टरों को इस सर्वे में लगाया गया। साथ ही फेसबुक, ट्विटर और वेबसाइट पर भी जवाब मंगवाये गये या उनके मनपसंद संबोधन के बारे में राय पूछी गयी। कुल मिलाकर हमारे पास करीब दस हजार लोगों ने जो विशेषकर हिन्दी क्षेत्र के थे। साथ ही असम, मेघालय जैसे तथा तमिलनाडु, केरल जैसे जगहों से भी बहुत सकारात्मक कथा हौंसला बुलंद करने वाले संदेश मिले।
इन परिनामों को अगर देखें तो ‘जयहिन्द’ को बोलने वाले गोलों की संख्या सबसे अधिक आयी। ऐसे 40.5 प्रतिशत लोग थे। दिलचस्प बात यह है कि सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक लोगों ने ‘जयहिन्द’ संबोधन को अपना मत दिया इससे यह भी पता चलता है कि यह सबसे अधिक लोकप्रिय संबोधन है और हो सकता है। गणना के अनुसार और किये गये विश्लेषण के अनुसार अधिकतर युवा ‘जयहिन्द’ पक्ष में नजर आये जबकि 60 साल के आसपास और उससे अधिक के लोग भी इसके साथ जुड़े। लेकिन गृहणियों ने इसके मत में अपना वोट ज्यादा नहीं दिया। सार यही है कि भारत में ‘जयहिन्द’ सबसे संबोधन है।
दूसरे नंबर पर ‘जय भारत’ को लोगों ने पसंद किया। इसके पसंद करने वाले लोग करीब 34.5 प्रतिशत के करीब थे। आंकड़ो का विश्लेषण करने पर यह पता चला कि ‘जयभारत’ प्रौढ़ और गृहणियों में अधिक पसंद किया गया। फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर पर भी हमारे रिकार्ड यही मत देते हैं। तीसरे नंबर पर ‘वन्दे मातरम्’ रहा जिसे 21.5 प्रतिशत लोगों ने संबोधन का माध्यम बनाने की बात कही। उनके अनुसार ‘वन्दे मातरम्’ हमें देशप्रेम तथा ‘भारत माता’ की सेवा में प्रेरित करने के लिए बड़ा साधन है।
हमारे करीब 40 रिर्पोटर/स्ट्रिंगर/सिटीजन जर्नलिस्ट देशप्रेमी-देशसेवकों ने सुदूर भारत तक में इस सर्वे को किया। उनती रिपोर्ट को माने तो य़ुवा पीढ़ी ‘जय हिन्द’ को लेकर कापी उत्साहित हैं। विशेषकर असम, अरुणाचल, मेघालय जैसे प्रदेशों में भी सर्वे में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया गया। भारतीय नारी हमेशा से बहुत देशप्रेमी तथा देशसर्वप्रथम के नारे को बुलंद करती रही है। अधिकतर महिलाओं ने हमारे रिपोर्टरों के प्रश्नों के बाद सबसे पहले उत्तर यही दिया कि हमारे लिय यह तीनों एक ही हैं। हम भारतीय ‘जय हिन्द’ बोलें, ‘जय भारत’ बोलें या फिर ‘वन्दे मातरम्’ तीनों ही हमारी और हमारे देश की शोभा बढ़ाते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी थे जो इसे राजनीति का मुद्दा मान रहे थे। उनका कहना था कि हमें इन पचड़ों में नहीं पड़ना है हम तो ‘हैलो, गुड मार्निंग, गुड इवनिंग’ कहने में ही ठीक महसूस करेत हैं। कुछ लोगों ने इसे पूरा राजनीतिक रंग देने की कोशिश की ओर इसाका गुनाहगार हमें ही बताने लगे। ऐसे लोगों की संख्या 3.5 प्रतिशत के आसपास रही। इनके अनुसार क्या फर्क पड़ता है इन सब संबोधनों से। देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति हमारे दिल में होनी चाहिए।
मेरठ और उसके आपसाप हमारे रिपोर्टरों ने यह कोशिश की कि अधिक से अधिक छात्र-छात्राओं और गृहणियों को इसमें शामिल किया जाये तथा खुशी इस बात की भी है कि अधिक से अधिक लोगों ने अपना नाम छिपाने की र्शत नहीं रखी। अगर देखें तो 2019 की शुरुआत में प्रभात के 76 वें साल में प्रवेश के बाद जनता तक प्रभात को पहुंचाने का ये दूसरा प्रयास भी सफल रहा।