जया एकादशी व्रत : 23 अगस्त, मंगलवार

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भगवान (ऋषिकेश ) श्रीहरि विष्णु की आराधना से होगी वैकुंठ की प्राप्ति

भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से होगा पापों का शमन

हिन्दू सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परम्परा काफी पुरातन है। भारतीय सनातन धर्म में जया एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। धार्मिक मान्यता के अनुसार समस्त पापों का नाश करने वाली इस एकादशी व्रत का फल अश्वमेध यज्ञ से मिलने वाले फल से अधिक पुण्यफलदायी होता है। इस बार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि अजा/जया एकादशी के रूप में मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यता-जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा-अर्चना अथवा व्रत को करता है उसे वैकुंठ की प्राप्ति बतलाई गई है। जया एकादशी का महत्व भगवान् श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 21 अगस्त, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 36 मिनट पर लग रही है जो 23 अगस्त, मंगलवार को प्रातः 6 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। स्मार्तजन एवं वैष्णवजन 23 अगस्त, मंगलवार को जया एकादशी का व्रत रखेंगे।

ऐसे करें भगवान् श्रीहरि की पूजा-श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को एक दिन पूर्व सायंकाल स्नान ध्यान के पश्चात् जया एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए, और दूसरे दिन यानि जया एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र ‘ॐ श्रीविष्णवे नमः’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ अच्युताय नमः’ का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए। व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। व्रत के दिन क्या न करें-चावल का सेवन, दिन में शयन, हास-परिहास एवं व्यर्थ वार्तालाप। ऐसी मान्यता है कि जया एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से सभी मनोरथ सफल होते हैं, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति होती है। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है।

आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। पौराणिक कथा-बहुत समय पहले एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र थे। एक बार उनके जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं, जिसके कारण उनका सारा राजपाट चौपट होकर स्त्री, पुत्र, परिवार आदि सबका साथ छूट गया। ऐसी स्थिति में स्वयं को भी बेचकर एक चांडाल का दास बन गए। वह एक सत्यवादी व्यक्ति थे। सदा सत्य बोलते थे। वे सोचते थे कि वे क्या करें, जिससे सब कुछ पहले जैसा हो जाए। उनका और उनके परिवार का उद्धार हो जाए। एक दिन वे बैठे हुए थे, तभी गौतम ऋषि उनके समक्ष आ गए। हरिश्चंद्र ने उनको प्रणाम किया। उन्होंने गौतम ऋषि से अपने मन की व्यथा बताई।

उनके मन की पीड़ा सुनकर उन्होंने कहा कि आज से सात दिन बाद भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी आने वाली है। आपको विधि विधान से अजा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे आपके सभी पापों का नाश हो जाएगा और आपकी पीड़ा भी दूर हो जाएगी। ऐसा कहकर वे वहाँ से चले गए। गौतम ऋषि के सुझाव के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी का व्रत विधि विधान से किया। भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की। रात्रि के समय में भगवत जागरण किया। अजा एकादशी व्रत के पुण्य से राजा हरिश्चंद्र के सभी पाप नष्ट हो गए। आसमान से पुष्प वर्षा होने लगी। उनको उनका परिवार और राजपाट दोबारा प्राप्त हो गया। मृत्यु पश्चात् उनको बैकुण्ठ की प्राप्ति हुई।

  1. ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

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