छोटे उद्योगों से ही संभलेगी अर्थव्यवस्था

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छोटे उद्योगों के पास सुरक्षा रकम नहीं होती है। वे हर महीने या हर सप्ताह या फिर कभी-कभी प्रतिदिन अपने उत्पादित माल को बेचते हैं और अर्जित रकम से कच्चा माल खरीदते हैं। कुछ उसी तरह, जैसे ठेले पर सब्जी बेचने वाला व्यापारी। इन लोगों की कमर इस आर्थिक संकट ने तोड़ दी है। व्यवसाय वापस शुरू करने के लिए उनके पास रकम नहीं बची है क्योंकि इस अवधि में अपनी चालू पूंजी को अपने प्राणों की रक्षा में लगा दिया। उनकी तुलना में बड़े उद्योगों के पास अपनी बचत होती है और यदि संकट हो भी गया तो उन्हें बैकों द्वारा ऋण भी आमतौर पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसलिए संकट के बाद बड़े उद्योग शीघ्र पटरी पर आ जाएंगे, लेकिन छोटे उद्योग सदा के लिए बंद हो जाएंगे। उद्यम की प्रयोगशाला छोटे और बड़े उद्योगों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव अलग-अलग पड़ता है। छोटे उद्योग बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाते हैं। नागरिकों को रोजगार उपलब्ध होने से उनका अर्थव्यवस्था पर भार कम पड़ता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को रोजगार मिल जाता है तो सरकार को उसे मनरेगा के अंतर्गत रोजगार अथवा इंदिरा आवास के तहत घर बनाकर देने की जरूरत नहीं पड़ती है। व्यक्ति रोजगार करता है तो अपराध आदि करने के लिए उसके पास समय नहीं रहता है।

इसके अलावा छोटे उद्योग हमारे भविष्य की उद्यमिता की प्रयोगशालाएं हैं। जैसे धीरूभाई अंबानी किसी समय छोटे उद्यमी थे। उस समय हर तरह के छोटे उद्योगों को आरक्षण उपलब्ध था। यदि आरक्षण उपलब्ध न होता तो संभवतः धीरू भाई छोटे उद्यमी के रूप में सफल न होते और उसके बाद वे बड़े उद्यमी भी न बन पाते। लेकिन छोटे उद्यमों की उत्पादन लागत प्रायः अधिक होती है। उनकी मशीनों का साइज भी छोटा होता है। उनके द्वारा बिचौलिए व्यापारी से कच्चा माल खरीदा जाता है। बड़े उद्यमी उसी कच्चे माल को उत्पादनकर्ता से सीधे खरीद लेते हैं। छोटे उद्यमियों को हर कार्य खुद ही करना पड़ता है। जैसे कच्चा माल खरीदना, मशीन चलाना, उत्पादन की गुणवत्ता को देखना, बिक्री करना, लेनदारी की वसूली करना, बैंक में जमा करना इत्यादि। ऐसे में छोटे उद्यमी की क्षमता का बिखराव हो जाता है और वह बड़े उद्यमी के सामने टिक नहीं पता है। इस परिप्रेक्ष्य में हमारे सामने आर्थिक विकास के दो मॉडल उपलब्ध हैं। एक ढांचा यह है कि हम छोटे उद्योगों को संरक्षण दें, उनके द्वारा उत्पादित महंगे माल को खरीदें और मान कर चलें कि अर्थव्यवस्था के स्तर पर इस अतरिक्त खर्च की भरपाई रोजगार सृजन, उद्यमिता विकास और सामाजिक अपराध में कमी से हो जाएगी।

दूसरा ढांचा बड़े उद्योग का है जिसमें रोजगार कम बनते हैं, बेरोजगारी बढ़ती है, अपराध में वृद्धि होती है और बड़े उद्योगों पर अधिक टैक्स लगाकर उन्ही के कारण बेरोजगार हुए नागरिकों को मदद पहुंचानी पड़ती है। छोटे उद्योगों को बचाना बड़े उद्योगों के लिए भी जरूरी है। इनके द्वारा रोजगार सृजित किए जाते हैं, जिससे आम आदमी के हाथ में क्रय शक्ति आती है, जिससे बाजार में मांग उत्पन्न होती है, जिससे बड़े उद्योगों का माल बिकता है। इस प्रकार बड़े उद्योग भी इन पर निर्भर हैं, मगर बड़े उद्योग इस बात को समझते नहीं हैं, इसलिए सरकार के लिए हस्तक्षेप करना जरूरी है। हमें छोटे उद्योगों के मॉडल को अपनाना चाहिए। हमारे देश में भारी संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। यदि इन्हें रोजगार नहीं उपलब्ध कराया गया तो अपराध बढ़ेंगे और देश पर पुलिस, न्याय प्रणाली इत्यादि का भार भी बढ़ जाएगा। इसलिए हमें सस्ते माल के लालच में न पड़कर छोटे उद्यमियों को बढ़ावा देना चाहिए, भले ही इसके चलते महंगे माल को स्वीकार करना पड़े । वर्तमान संकट के बाद उन्हें तत्काल छूट नहीं दी गई तो बड़े उद्योग पुनः पटरी पर आकर बचे-खुचे छोटे उद्योगों का अस्तित्व समाप्त कर देंगे। अब तक सरकार द्वारा छोटे उद्योगों के लिए जो कदम उठाए जाते रहे हैं वे पर्याप्त नहीं हैं।

पहला कदम है कि सार्वजनिक इकाइयों द्वारा छोटे उद्योगों से माल की खरीद की जाए। मेरी जानकारी में अक्सर सार्वजनिक इकाइयां इस आदेश का पालन नहीं करती हैं। दूसरा कदम है कि छोटे उद्योगों के क्लस्टर या झुंड बनाए जाएं जिससे उन्हें कुछ सुविधाएं सामूहिक रूप से उपलब्ध कराई जा सकें। जैसे, उत्सर्जित गंदे पानी की सफाई करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र एक साथ मिलकर लगाया जा सकता है। तीसरा कदम है कि छोटे उद्योगों की कुशलता या स्किल बढ़ाया जाए। लेकिन स्किल डिवेलपमेंट के अंतर्गत अधिकतर एनजीओ की रोटी सेंकी जा रही है। चौथा कदम है कि छोटे उद्योगों को कम दर पर ऋण उपलब्ध हों। लेकिन छोटा उद्यमी ऋण तब लेगा जब उसके माल की उत्पादन लागत कम होगी। कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार को अभी से योजना बनानी चाहिए।

चुनिंदा श्रम सघन छोटे उद्योगों को संरक्षण देना चाहिए और इन क्षेत्रों में बड़े उद्योगों को प्रवेश करने से मना कर देना चाहिए। जैसे यदि देश में बुनाई के कार्य को छोटे उद्योग के लिए आरक्षित कर दिया जाए तो देश में बेरोजगारी रातोंरात समाप्त हो जाएगी। जनता को कपड़ा महंगा अवश्य खरीदना पड़ेगा लेकिन मेरे आकलन में इसका भार कम ही पड़ेगा। यदि हमने छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन नहीं दिया तो अर्थव्यवस्था इस संकट से नहीं उबरेगी। एक टास्कफोर्स जरूरी बीते चार वर्षों में अर्थव्यवस्था के शिथिल होने का मुख्य कारण यही है। बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादित माल को खरीदने के लिए बाजार में मांग कम है और अभी बड़े उद्योग भी संकट में आ गए हैं। इसलिए सरकार को तत्काल एक टास्क फोर्स स्थापित करनी चाहिए जो छोटे उद्योगों को संरक्षण देने का रास्ता बताए और हम आर्थिक मंदी से निकल सकें।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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