चीन को घाव देना बेहद जरूरी

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चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, पीएलए के जवानों ने एक बार फिर भारतीय जवानों के साथ झड़प की। इस बार पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से में झड़प हुई। पिछली बार दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। भारत के बहादुर जवानों ने चीन को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया था। चीन ने आधिकारिक रूप से कभी नहीं बताया कि उसके कितने सैनिक मारे गए पर अलग-अलग स्रोतों से जो खबरें आईं उनके मुताबिक चीन को भारत से ज्यादा नुकसान हुआ था। सामरिक नजरिए से देखें तो यह 1962 के बाद का सबसे बड़ा गतिरोध है और यह बहुत आसानी से खत्म नहीं होने वाला है। इसका कारण यह है कि भारत जिस माइंडसेट के साथ 1962 में चीन से निपटना चाह रहा था वहीं माइंडसेट अब भी काम कर रहा है। अब भी भारत सरकार का नजरिया इस मामले को जैसे तैसे निपटाने का है। 29-30 अगस्त की दरम्यानी रात को पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीनी सैनिकों ने जो बदमाशी की उसके बाद भी देश के विदेश मंत्री का बयान बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने का था।

सेना से रिटायर कई अधिकारियों ने कहा और लिखा है कि भारतीय सेना अब एक सीमित युद्ध के जरिए चीन के साथ विवाद को हमेशा के लिए सुलझाना चाहती है पर राजनीतिक प्रतिष्ठान इसके लिए तैयार नहीं हैं। असलियत यह है कि भारत जितनी देरी कर रहा है चीन को अपनी स्थिति मजबूत करने का उतना मौका मिल रहा है। चीन लगातार भारत को घेरने के लिए अपनी सीमा के पास ऐसे काम कर रहा है, जिसका भारत को विरोध करना चाहिए पर कहीं से विरोध की एक आवाज नहीं आती है। भारत के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक कैलाश मानसरोवर चीन में है। चीन वहां की पवित्र मानसरोवर झील के किनारे सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल के लिए साइट बना रहा है। असल में चीन लगातार भूटान की तरफ से भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है। दूसरी अहम बात यह है कि 1962 के समय से ही भारत का नजरिया प्रतिक्रिया देने का है। अपनी तरफ से पहल करके भारत ने कोई कदम नहीं उठाया है। भारत का यह नजरिया चीन के साथ है तो पाकिस्तान के साथ भी है।

इसका नतीजा यह है कि आज तक भारत 73 साल की लगातार लड़ाई और छद्म युद्ध के बावजूद पाकिस्तान को सबक नहीं सिखा सका है। पाकिस्तान को भारत ने 1971 में देश बंटवारे के अलावा ऐसा कोई घाव नहीं दिया है, जिससे वह भारत की अहमियत समझे और माने। यहीं कारण है कि वह सीमा पार से फायरिंग करता रहता है और भारतीय जवान या आम नागरिक मरते रहते हैं। भारत सरकार की ओर से गाहे-बगाहे बलूचिस्तान का जिक्र किया जाता है पर उसे आगे नहीं बढ़ाया जाता है। भारत न तो सीमा पर चल रहे विवाद में चीन को सबक सिखाने वाली कोई कार्रवाई करता है और न कूटनीतिक रूप से कभी उसको कठघरे में खड़ा करता है। भारत के चुपचाप सब कुछ देखते रहने का नतीजा यह हुआ है कि चीन को भारत के साथ लगती पूरी सीमा पर अपनी सैन्य तैनाती बढ़ाने और डिफेंस सिस्टम को मजबूत करने का मौका मिला है।

ध्यान रहे 29-30 अगस्त की जिस दरम्यानी रात को पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय जवानों का चीन के साथ टकराव हुआ उससे ठीक पहले तिब्बत को लेकर दो दिन तक चली चीन की बैठक का समापन हुआ था, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने तिब्बत को लेकर नई नीति बनाई थी। खबर है कि इसमें उन्होंने भारत से लगती सीमा की सुरक्षा को लेकर नई नीतियां तय की हैं। इससे लग रहा है कि सीमा पर बड़े और लंबे टकराव की संभावना बन गई है। चीन ने पहले अपने सैनिक बढ़ाए, डिफेंस सेटअप को मजबूत किया और अब उसके जवान भारत के साथ टकराने लगे हैं। य़ह चीन की पुरानी तकनीक है। ताजा टकराव में खबर है कि लद्दाख में चीन ने भारत की एक हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली है, जिसमें नौ सौ वर्गकिलोमीटर जमीन देपसांग में है। यह भारतीय सेना के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। तभी अब भारत को चीन के प्रति एडहॉक नीति छोडऩी होगी। अगर चीन को गहरा घाव देने की रणनीति नहीं बनाई जाती है और उस अमल नहीं किया जाता है तो चीन लगातार भारत को छोटे-छोटे घाव देता रहेगा, जैसे पाकिस्तान देता रहता है।

सुशांत कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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