कोरोना महामारी के बाद विश्वव्यापी उभार से उपजे संकट ने चीन के प्रति अन्य देशों की धारण को बदल कर रख दिया है। इस लिहाज से आने वाले दिनो में आर्थिक-राजनयिक संबंधों का एक नया परिदृश्य उभरेगा इसके संकेत दूसरे देशों के उठाये जा रहे सवालों और कदमों से मिलने लगे हैं। मसलन अमेरिका हो या यूरोप के देश सबको शक है चीन के बुहान की वायरोलॉजी लैब में कोविड-19 यानी कोरोना वायरस ईजाद किया है और इसके लीक होने का परिणाम है कि दुनिया के तमाम देश इसकी चपेट में आ गए तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गयी। खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसको लेकर चीन के खिलाफ मुहिम भी छेड़ दी है। ट्रंप ने बुहान स्थित वायरोलॉजी लैब इंस्टीट्यूट को मिलने वाली फंड रोक दी है। व्यापारिक रिश्तों में चली आ रही खटास और बढ़ गई है। सांसदों ने यह मांग भी उठानी शुरू कर दी है कि चीन से अमेरिकी कंपनियों को बुलाने की शुरूआत कर दी जानी चाहिए। ट्रंप का गुस्सा स्वाभाविक है, अब तक दुनिया भर में डेढ़ लाख हुई मौतों में अमेरिका के 40 हजार नागरिक हो चुके हैं। आंकड़े की रफ्तार बेशक पहले जैसी नहीं है, एक तरह की स्थिरता आनी शुरू हो चुकी है।
पर यह अभी नहीं कहा जा सकता कि आंकड़े अब नहीं बढ़ेंगे। इंग्लैण्ड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी चीन को लेकर आक्रोश में हैं। खुद भारत की तरफ से चीनी कंपनियों के भारी निवेश को लेकर जांच और नये सिरे से समीक्षा शुरू हो गई है। इसको लेकर चीन बौखला गया है। उसकी तरफ से डलूडीओ में हुए करार की शर्तों को याद दिलाया जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि भविष्य में भारत-चीन के बीच अब पहले जैसे आर्थिक रिश्ते नहीं रहने वाले हैं। इसका एक अर्थ यह भी है संभावनाओं का एक नया द्वारा खुल सकता है। वजह एक यह भी है कि कोरोना को लेकर भारतीय परिदृश्य में चीन के प्रति आक्रोश है और इसको लेकर भारतीय कारोबारियों के बीच लोगों द्वारा चीन निर्मित चीजों के बहिष्कार की आशंका प्रबल हो रही है। इस आशंका से संभावना यह बनती है कि आने वाले दौर में देश एक नयी आर्थिक परिस्थिति का गवाह बन सकता है। हालांकि यह सफर आसान नहीं रहने वाला है। वैश्विक परिदृश्य में पूरी तरह से कट कर या किसी को काटकर नहीं रहा जा सकता। इस लिहाज से जो चुनौतियां उभरेंगी, क्या भारत उसके लिए तैयार है?
दरअसल भारत सर्विस सेक्टर के रूप में उभरा लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। इससे रोजगार की चुनौतियां भी बढ़ी हैं। हालांकि मौजूदा सरकार ने इसको ध्यान में रखते हुए देश के युवाओं को तकनीकी दक्षता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्किल ट्रेनिंग की शुरूआत की है। एक दृष्टिकोण यह भी कि मौजूदा नेतृत्व देश को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना चाहता है। बदली परिस्थितियों को एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है। मौजूदा दबाव इसलिए भी है कि कोरोना संकट काल में यह भी समझ में आने लगा है कि किसी एक देश पर कच्चे माल को लेकर अधिकाधिक निर्भरता तकलीफदेह हो सकती है। दवा उद्योग ने इसे बड़ी शिद्दत से महसूस किया है। कच्चे माल आयात नीति में विकेन्द्रीकरण होता तो तब किसी और देश की तरफ देखा जा सकता था। इसके अलावा यह भी समझ में आ गया कि कच्चे माल के लिए देश के भीतर ही विकल्पों की तलाश की जा सकती है। विकास के क्रम में और चुनौतियों के बीच विकल्प बड़ी संभावना के द्वार खोल सकता है। हालांकि अभी यह बहुत दूर की कौड़ी है, इसलिए सिर्फ संभावनाओं पर चर्चा होती रहेगी।