चार चुभते सवालों ने किया हलाल

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मंगलवार को अदालत के चार मामलों ने देश में बड़ी खबरें बनाईं। एक तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगाई का मामला, दूसरा राहुल गांधी की माफी, तीसरा किरन बेदी पर लगाम और चौथा नारायण सांई की उम्र-कैद का मामला। रंजन गोगोई पर लगे यौन-उत्पीड़न के आरोप की सुनवाई का पीड़ित महिला ने बहिष्कार कर दिया।

उसका कहना है कि तीन जजों की वह कमेटी उसे इतना डरा-धमका रही थी और उसकी नौकरी बहाल करने का लालच भी दे रही थी कि उसे यह समझ नहीं पड़ रहा था कि यह उसके आरोपों की न्यायिक जांच है या कुछ और है। उसकी शिकायत यह भी है कि न तो वहां होने वाली बातचीत का कोई रेकार्ड रखा जा रहा था और न ही उसकी मदद के लिए किसी वकील या साथी को वहां बैठने दिया जा रहा था।

उसे यह भी हिदायत थी कि वहां हुई बातचीत को वह गोपनीय रखे। इसमें शक नहीं कि उस महिला को कई प्रसिद्ध वकीलों का समर्थन मिल रहा है। लेकिन यह मामला इतना उलझ गया है कि पहले तो प्रधान न्यायाधीश और अब उस जजों की न्यायिक जांच कमेटी पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गए हैं।

राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा लेकिन राहुल अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनका आचरण देश की सबसे महान पार्टी के अध्यक्ष के लायक नहीं है। पुद्दुचेरी की उप-राज्यपाल किरन बेदी को मद्रास उच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को दरकिनार करके अपने वाली चलाना कहां तक ठीक है ? किरनजी को अब अपनी पुरानी पुलिसवाली आदत छोड़कर संवैधानिक मर्यादा में रहना होगा।

चौथा मामला आसाराम के कुपुत्र नारायण सांई का है। उसे अदालत ने उम्र-कैद से नवाजा है। एक साध्वी के साथ बलात्कार और व्यभिचार करने की यह सजा है। जैसा बाप वैसा बेटा ! आसाराम को मैंने झांसाराम और निराशाराम की उपाधि दी थी। अंदाजा है कि नारायण की मां और बहन भी शीघ्र ही जेल जाएंगी। इस परिवार ने साधु-संतों और संन्यास की जितनी बदनामी की है, उतनी शायद ही किसी ने की हो।

ये अकेले नहीं हैं। इनके जैसे कई हैं। सच्चे साधु तो बस गिनती के ही हैं। इन पाखंडी साधुओं से भी ज्यादा दोष उन अंधभक्तों का है, जो भगवा वस्त्र देखते ही अपना दिमाग ताक पर रख देते हैं।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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