चयन के पीछे ‘अदृश्य मापदंड’

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सरकार ने कैबिनेट में फेरबदल से कई निशाने साधने की कोशिश की है। इस कैबिनेट के सबसे युवा होने की चर्चा है। सात नई महिला मंत्रियों को शामिल कर भी सरकार ने ध्यान आकर्षित किया है। मंत्रिमंडल में फेरबदल के पीछे भले ही बेहतर शासन का कारण बताया जाए, लेकिन नए मंत्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि देखकर लगता है कि सरकार का उद्देश्य सोशल इंजीनियरिंग ज्यादा है।

इस सोशल इंजीनियिरंग का उद्देश्य मुख्यरूप से चुनावी लाभ से लेकर केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी राजनीतिक सत्ता मजबूत करने की भाजपा की रणनीति है। जातीय समीकरण व राज्य में प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए मंत्रियों के सावधानीपूर्वक चयन का उद्देश्य सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव भी हैं। जिन 5 राज्यों में अगले साल चुनाव हैं, वहां से कई मंत्रियों को लाना विधानसभा चुनावों की, तो वहीं दलितों व ओबीसी पर जोर के साथ विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के मंत्रियों का चयन लोकसभा चुनावों की तैयार बताता है।

इसके अलावा सरकार ने मंत्रियों की योग्यता व अनुभव पर जोर देकर यह संदेश भी दिया है कि वह अच्छे शासन के लिए प्रतिबद्ध है। आम लोगों की नाराजगी देखते हुए सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार का इस्तेमाल यह संदेश देने में भी किया है कि प्रधानमंत्री को काम से मतलब है और खराब प्रदर्शन वालों की कैबिनेट में कोई जगह नही हैं।

उल्लेखनीय है कि 2014 में भाजपा की बड़ी सफलता और 2014 की 31% की तुलना में 2019 में 37% वोट होने के पीछे दलित और ओबीसी का समर्थन भी था। जहां 2014 लोस चुनाव में 24% दलितों ने भाजपा को वोट दिया, वही 2019 में 33% ने ऐसा किया। वहीं 2014 में 34% और 2019 में 44% ओबीसी ने भाजपा को वोट दिया। इसीलिए बड़ी संख्या में दलित और ओबीसी समुदाय के मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल कर भाजपा इन दोनों समुदायों से मिले समर्थन को बरकरार रखना चाहती है।

सरकार ने अच्छे शासन के लिए नए मंत्रियों की योग्यता और अनुभव पर जोर दिया है, लेकिन सिर्फ यही दोनों चीजें अच्छा शासन सुनिश्चित नहीं करतीं। जिन मंत्रियों को हटाया है, वे भी कम योग्य नहीं थे। डॉ हर्ष वर्धन, जो स्वयं डॉक्टर हैं और जिन्हें बहुत राजनीति अनुभव है, उनसे योग्य कौन हो सकता है, लेकिन वे प्रधानमंत्री और काफी हद तक दूसरी लहर से पीड़ित आम लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरेे। इसी तरह लगता है कि रविशंकर प्रसाद का प्रदर्शन भी प्रधानमंत्री की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। इसलिए कहा नहीं जा सकता कि मंत्रिमंडल में फेरबदल से शासन की गुणवत्ता कितनी बदलेगी।

मंत्रियों और मंत्रालयों में बदलाव को देखकर यह कहना मुश्किल है कि कुछ चेहरों को हटाने के पीछे प्रदर्शन और जवाबदेही तय करना मापदंड था। दूसरी लहर में सरकार स्वास्थ्य सुविधाएं देने में असफल रही और उसने जवाबदेही तय करने की प्रतिबद्धता दिखाने के लिए हर्ष वर्धन को हटाया, लेकिन वित्त मंत्री का इससे अछूता रहना समझ नहीं आता।

देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है, लेकिन फिर भी निर्मला सीतारमण पद पर बनी हुई हैं। इसलिए इस फेरबदल में पुरुस्कृत करने और सजा देने के मापदंड के अलावा ‘अदृश्य मापदंड’ भी था, यानी भाजापा का चुनावी मजबूती के लिए मौजूदा सहयोगियों को खुश करना व सामाजिक समूहों को सकारात्मक संदेश देना।

मंत्रिमंडल में इस फेरबदल से सरकार ने भाजपा के सहयोगियों, मुख्यत: बिहार में जेडी(यू) और उत्तर प्रदेश में अपना दल, से सहयोग मजबूत करने की कोशिश भी की है। ध्यान रहे कि जेडी(यू) 2019 में मंत्रिमंडल में पदों की संख्या के मुद्दे पर सरकार से नहीं जुड़ी थी लेकिन विस्तार में जुड़ने को सहमत हो गई, भले ही उसका कोटा नहीं बदला।

संजय कुमार
(लेखक सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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