गुरु प्रदोष व्रत

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भगवान शिवजी की आराधना से होगी सौभाग्य व विजय की प्राप्ति
प्रदोष व्रत से मिलती है शिवजी की विशेष अनुकम्पा

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिवजी की विशेष महिमा है। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत है। इनकी कृपा से जीवन में भौतिक सुख, ऐश्वर्य, वैभव, सौभाग्य व विजय की प्राप्ति होती है। भगवान शिवजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है। जिसमें प्रदोष एवं शिवरात्रि व्रत प्रमुख रूप से हैं। प्रदोष व्रत से दुःख दारिद्रय का नाश होता है। जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार 2 मई, गुरुवार को प्रदोष वर्त रखा जाएगा। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि वैशाख कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 1 मई, बुधवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 2 बजकर 05 मिनट पर लगेगी। जो कि 2 मई, गुरुवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 21 मिनट (भोर) तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 2 मई, गुरुवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा।

वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व है। जैसे – रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष –कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष –विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष –आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना पूर्ति, शनि प्रदोष –पुत्र सुख की प्राप्ति। प्रदोष व्रत से शिवभक्तों का निरन्तर कल्याण होता रहता है। कलियुग में प्रदोष व्रत शीघ्र फलदायी बतया गया है।

कैसे करें प्रदोष व्रत – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रतकर्ता को दिनभर निराहार रहना चाहिए। सायंकाल पुनः स्नान करके यथासम्भव धुले हुए या स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष काल में श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष लाभकारी होती है। भगवान शिवजी की महिमा में शिवमन्त्र का जप तथा स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोश स्तोत्र का पाठ एवं प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। इससे मनोकामना की पूर्ति होती है। व्रत से सम्बन्धित कथाएं सुननी चाहिए। यह व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए शुभ फलदायी है। इस दिन अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखते हुए भगवान शिवजी की आराधना करनी चाहिए। व्रत के दिन व्रतकर्ता को नियमित संयमित रहते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। व्रत के दिन यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान तथा बेसहारा एवं असहायों की सेवा व सहायता करनी चाहिए। शिवजी की महिमा में रखे जाने वाले प्रदोष व्रत जीवन के समस्त दोषों का शमन करके सफलता का मार्ग प्रशस्त करना है।

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