गुरु प्रदोष व्रत : 10 अप्रैल को भगवान शिवजी की पूजा

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अर्चना से होगी सौभाग्य व विजय की प्राप्ति गुरु प्रदोष व्रत से मिलेगी शिवजी की विशेष अनुकम्पा

भगवान् शिवजी की पूजा – अर्चना हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोवांछित फल का प्राप्ति के लिए करते हैं | भगवान शिवजी को तैंतीस कोटि देवी- देवताओं में देवाधिदेव महादेव माना गया है । प्रदोष व्रत से दु:ख-दारिद्रय का नाश होता है। जीवन में सुख -समृद्धि खुशहाली आती है, जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है। मनोकामना एवं अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथिों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक मास को देनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किए जाने वाला प्रदोष व्रत इस बार 10 अप्रैल, गुरुवार को रखा जाएगा।

चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 अप्रैल, बुधवार को रात्रि 10 बजकर 56 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 10 अप्रैल, गुरुवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 01 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र 9 अप्रैल, बुधवार को दिन में 09 बजकर 57 मिनट से 10 अप्रैल, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् सम्पूर्ण दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा। प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि का मान 10 अप्रैल, गुरुवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है।

दिनों के अनुसार प्रदोष व्रत का फल – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग- अलग प्रभाव हैं। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे-रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष -शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष -विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना का पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति बतलाई गई है। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

ऐसे करें प्रदोष व्रत – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान व पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक कर श्रृंगार करने के पश्चात् उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर ही पूजा करनी चाहिए। यदि शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा-अर्चना करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है।

भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति का सुयोग बनता है। व्रत के दिन नजदीक के शिव मन्दिर में दर्शन-पूजन करके लाभ उठाना चाहिए। यह प्रदोष व्रत समस्तजनों के लिए मान्य है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं कुछ भी ग्रहण करने से बचना चाहिए। अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए। श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ किए गए प्रदोष व्रत से जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली का सुयोग तो बनता ही है साथ ही भक्त पर शिवजी की कृपा भी बरसती है।

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