गांवों को बचाने की दरकार

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भारत में कोविड-19 के लगभग 80 फीसद मामले 49 जिलों के शहरी क्षेत्रों और आधे से अधिक मरीज़ 10 शहरों से हैं। कोविड-19 से शुरुआत में महानगरीय और प्रमुख शहर प्रभावित हुए थे, लेकिन अब छोटे शहरों से भी केस आ रहे हैं। यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि कोविड-19 ग्रामीण भारत को प्रभावित नहीं करेगा। बिहार के दूरदराज के जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों से मामलों में हालिया उछाल इस बात का प्रमाण है कि ग्रामीण भारत में कोविड-19 से अछूता नहीं रहेगा। भारत को ग्रामीण क्षेत्रों पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इस दिशा में पहला कदम होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्वाचित पंचायती राज प्रतिनिधि जैसे सरपंच और वार्ड सदस्यों, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता जैसे कि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों में बीमारी और उससे बचाव के बारे में जागरूकता लाई जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही कुछ प्रणालियां बनी हुई हैं, जैसे कि ग्रामीण स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समितियों का उचित उपयोग किया जाए और उन्हें अधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है। पंचायत तंत्र जैसे ग्राम सभा (सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए) का जागरूकता पैदा करने के लिए उपयोग किया जाए।

केरल उदहारण है जिसमें पंचायत सदस्यों की सक्रिय भागीदारी और अभिनव कदमों से बीमारी को काफी हद तक रोका जा सका। साबुन से हाथ धोना, मुंह ढंककर रखना या 2 गज की दूरी बनाए रखने जैसे नियम लागू करने में व्यावहारिक चुनौतियां हैं। सैनिटाइजऱ महंगे होते हैं और लोगों को इनकी आदत भी नहीं है। साबुन से हाथ धोने का विकल्प अच्छा है, लेकिन ज्यादातर गांवों में पानी की किगत होती है। ये सब व्यवहार लोगों की आदत में शामिल करने के लिए, बहु-क्षेत्रीय और समग्र कदम उठाने होंगे। यह तभी संभव होगा जब जन भागीदारी को इस प्रक्रिया में बढ़ावा दिया जाएगा। उदाहरण के तौर पर अगर लोगों से हाथ धोने के अपेक्षा की जाती है, तो जल विभाग को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। लोग गांवों में लौट आए हैं। मनरेगा और अन्य सामाजिक लाभों जैसे विभिन्न तंत्रों के माध्यम से स्थानीय रोजगार के अवसरों को सुचारु और बड़े स्तर पर लागू करने में सरकारी प्रशासन जैसे पंचायत सचिव और खंड विकास अधिकारी को पहले से बड़ी भूमिका निभाने की जरूरत है। दुनियाभर से अनुभव मिला है कि बीमार व्यक्ति और स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ भेदभाव कोरोना की रोकथाम में बड़ी बाधा बन सकते हैं।

सभी रोगियों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। ग्राम स्तर पर यह तभी संभव होगा, जब बीमार की देखभाल, चाहे वह गांव के किसी भी हिस्से या समाज के किसी भी तबके से हो, पूरा गांव एकजुट होकर करे। गांवों में जाति, समुदायों और अन्य सामाजिक आधारों पर भेदभाव अब भी देखा जाता है। महामारी इस चुनौती को बढ़ा सकती है। इसके लिए हर गांव के स्तर पर एक साझी योजना की आवश्यकता होगी। कोविड-19 महामारी ने मौजूदा सुविधाओं की उपलब्धता को और भी कम कर दिया है। सार्वजनिक परिवहन की कमी हो गई है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मोबाइल वैन और अन्य तंत्र के अतिरिक्त प्रावधान के साथ मजबूत किया जाए। कोविड-19 के खिलाफ ‘टेस्ट, ट्रेस और ट्रीट’ तीन प्रमुख रणनीतियां हैं। ग्रामीण भारत के लिए इस रणनीति को लागू करने का मतलब है कि सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में परीक्षण सुविधाओं को तेजी से बढ़ाने और कोविड-19 उपचार सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता है। तभी हम पूरे भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ पाएंगे।

डा. चंद्रकांत लहारिया
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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