गरीब पैदा होते हैं वोट व चोट के लिए

0
562

गरीब का कभी हार्ट फेल नहीं होता, क्योंकि गरीब के पास एक दिल है, ह्रदय है, यह सूचना बड़ी फिल्मी किस्म की है। वास्तविक संसार में गरीब एक शारीरिक उपस्थिति से अधिक स्वीकार नहीं किया जाता। कुछ उच्च लोग, अपने टुच्चेपन के अंतर्गत यह वहा फैलाते हैं कि गरीब के पास एक खुराफाती दिमाग है और वह खतरनाक हो सकता है। इसी कारण गरीबों से निपटने के लिए थानों में डंडों से गोली तक सारा इंतजाम रहता है और गरीबों की बस्ती में हवलदार बड़ी अकड़ के साथ प्रवेश करता है। इस देश में, यद्यपि गरीबों का देश है, गरीब के जन्म पर बधावे नहीं जाते और गरीब की मौत पर किसी को आक्षर्य नहीं होता। गरीब का जन्म ही गरीब की मौत मरने के लिए होता है। वह सडक़ के किनारे मरे, झोंपड़ी में मरे या आसपास के बरामदे में। बस इतना कहा जाएगा कि एक आदमी मर गया।

बाजू वाला मर गया। अपनी मृत्यु के क्षणों में गरीब आदमी इस देश में बेनाम हो जाता है। तब वह इंसान नहीं रहता, मानो एक कचरे का ढेर रह जाता है। इसका कोई नाम नहीं, कोई हस्ती नहीं। गरीब चोर है, गरीब क्रिमिनल है, गरीब मूर्ख है, गरीब विश्वास के योग्य नहीं है। भारत में उच्चवर्ग और सत्ताधारियों के मन में सुनिश्चित धारणाएं हैं, गरीब को लेकर। अंग्रेजों ने भारतवासियों को लेकर जो धारणाएं बना रखी थीं, वे सारी धारणाएं वे जाते समय भातर के सत्ताधारियों को सौंप गए। सत्ताधारियों ने वे सब गरीबों पर चिपका दीं। गरीब बच्चे अधिक पैदा करता है। इस देश की गरीबी का मूल कारण यहां का गरीब है। गरीब आदमी यदि गरीब न होता तो पक्की बात है कि यहां गरीबी न होती। शायद इसीलिए गरीब के मरने पर सत्ता सोचती है कि चलो, कुछ तो गरीबी कम हुई।

बात सिर्फ इतनी नहीं है कि भारत का गरीब जब नौकरी की तलाश में दुबई जाता है, तब एयर होस्टेस उसकी ओर उपेक्षा और अपमान की दृष्टि से देखती है। पीड़ा यह है कि भारत का गरीब जब भारत के अस्पताल में पड़ा रहता है, तब नर्स भी उससे वैसा ही दुर्व्यवहार करती है। डॉक्टर उसे कीमती बिस्तर पर अनावश्यक भार की तरह नाराजी और बेरुखी से देखता है। पहले तो गरीब को अस्पताल में बिस्तर नहीं मिलता। बिस्तर मिलता है तो इलाज नहीं मिलता। उसका शव जल्दी हटा देने के अतिरिक्त अस्पताल उस गरीब के मामले में कोई रुचि और जल्दबाजी नहीं दिखाता। इसलिए गरीब की जिंदगी क्या और गरीब की मौत? डॉक्टर उसे कोई भी दवाई खाने को दे सकते हैं और कैसे भी इंजेक्शन लगा सकते हैं। जांच वास्तव में आर्थिक होती है। एक बार डॉक्टर को पता लग जाए कि आदमी गरीब है, औरत गरीब है तो इलाज की लाइन क्या होनी चाहिए?

यह निर्णय सेत उसे देर नहीं लगती। और गरीब के इलाज की लाइन एकसर गरीब की मौत पर खत्म होती है। जो मिलावटी दवाएं बनाते हैं और अस्पतालों की अथॉरिटी और डॉक्टरों को रिश्वत देकर बेचते हैं, वे लखपति निश्चित ही अपनी मिलावटी दवाओं से किसी लखपति-करोड़पति की मौत की कल्पना नहीं करते। वे जानते हैं कि इससे मरेगा तो कोई गरीब मरेगा। मेरे। हमारे लखपति बनने के सामने गरीब का जीना क्या और मरना क्या? फिर भी कितना सुखद है ना कि हमारे प्रजातंत्र में सरकार मिलावटी दवाइयों के खिलाफ कड़ा कदम न भी उठाए, पर उनका विरोध अवश्य करती है। ऐसे दिखाती है कि वह माइंड कर गई। आखिर गरीब आदमी एक वोट है और वोट को जीवित रखना चाहिए। यों, मर जाए तो भी क्या? और गरीब पैदा हो जाएंगे इस देश में सरकार को वोट देने और सरकारी अस्पताल में मरने के लिए।

स्वर्गीय शरद जोशी
(लेखक देश के जाने-माने व्यंगकार थे। उनका ये व्यंग 7 मई 1988 तो प्रकाशित हुआ था, आज भी मौजूद है)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here