अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी गजब के नौटंकीबाज हैं। वे उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से तीसरी बार मिलने को तैयार हो गए। इस बार वे उनसे किसी तीसरे देश में नहीं याने सिंगापुर या वियतनाम में नहीं, उत्तरी कोरिया में जाकर मिल लिये। ये वही ट्रंप हैं, जिन्होंने उत्तरी कोरिया को दुनिया के नक्शे से साफ करने की धमकी 2017 में दे दी थी और बदले में किम ने कहा था कि ट्रंप के दिमाग के पेंच कुछ ढीले है।
दोनों ने इतनी आक्रामक भाषा का प्रयोग किया था, जितनी कूटनीति में प्रायः नहीं की जाती। अमेरिका का आग्रह है कि किम अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करे और किम कहते हैं कि पहले आप हम पर लगाए प्रतिबंधों को खत्म करें। द्वितीय महायुद्ध के बाद कोरिया में 1950 से 1953 तक युद्ध चलता रहा। जैसे भारत और पाकिस्तान बिना युद्ध बंट गए थे, वैसे ही युद्ध ने एक कोरिया को दो कोरियाओं में बदल दिया था। दक्षिणी कोरिया को अमेरिका टेका लगाता रहा है और उत्तरी कोरिया को रुस और चीन।
वियतनाम में यही हुआ लेकिन कोरिया का मामला अभी तक उलझा हुआ है। वियतनाम और जर्मनी एक हो गए लेकिन कोरिया के एक होने की संभावना अभी भी दूर की कौड़ी लगती है लेकिन इस बार जी-20 सम्मेलन में चीन और अमेरिका के बीच जो बेहतर समझ बनी है, शायद यह उसी का नतीजा है कि ट्रंप ने अचानक उत्तरी कोरिया जाने का कार्यक्रम बना लिया।
ऐसा लगता है कि दोनों देशों के बीच कोई भूमिगत संपर्क-सूत्र भी काम कर रहा है। ट्रंप ने दक्षिण कोरिया से उत्तर कोरिया के सीमांत के अंदर पैदल पहुंचकर सारी दुनिया में अपने फोटो छपवा लिये। लेकिन यह पता नहीं कि ट्रंप और किम ने एक-दूसरे की कितनी बात मानी। दोनों ने इस भावभीनी भेंट पर असीम प्रसन्नता प्रकट की और असली मुद्दे याने परमाणु मुक्ति और प्रतिबंधमुक्ति अपने अफसरों के हवाले कर दिए।
यही प्रक्रिया भारत और चीन के साथ चले व्यापारिक-विवाद पर भी लागू की गई। तो इसका अर्थ क्या यह हुआ कि ट्रंप का काम सिर्फ नौटंकियां करना है, गीदड़ भभकियां देना है और अन्य राष्ट्राध्यक्षों को डराना भर है। यदि ऐसा है तो हम यह मानकर चल सकते हैं कि ईरान के बारे में भी दुनिया को बहुत चिंता करना जरुरी नहीं है। आज नहीं, तो कल, ट्रंप ईरान के साथ भी वही करेंगे, जो वे उत्तरी कोरिया के साथ कर रहे हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं