एनडीए-1 सरकार के दौरान गंगा को साफ करने की जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्रालय की थी, जिसे अब जल शक्ति मंत्रालय का नाम दिया गया है। शेष सभी नदियों की सफाई की जिम्मेदारी पर्यावरण मंत्रालय की थी। एनडीए-2 सरकार ने निर्णय लिया है कि देश की सभी नदियों को साफ करने का कार्य अब जल शक्ति मंत्रालय ही देखेगा, जो कि स्वागत योग्य कदम है। हालांकि जल शक्ति मंत्रालय का गंगा को साफ करने का रिकार्ड भी बहुत उत्साहित करने वाला नहीं है। गंगा को पुनर्जीवित करने केलिए सात इंडियन इंस्टिट्यूट आफ टेक्नॉलजी (आईआईटी) के समूह ने गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाकर सरकार के सामने पेश किया था। इस प्लान को सामने रख कर हम जल शक्ति मंत्रालय के गंगा को साफ करने के प्रयासों का आकलन कर स ते हैं।
आईआईटी समूह के अनुसार सभी उद्योगों को कहा जाना चाहिए कि वे गंदे पानी को साफ करके तब तक उसका पुनः पयोग करते रहेंगे, जब तक वह पूरी तरह समाप्त न हो जाए। एक बूंद गंदा पानी भी छोडऩे की छूट उन्हें नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने से उद्योगों द्वारा गंगा का प्रदूषण स्वत: समाप्त हो जाता। शहरी सीवेज के लिए आईआईटी ने क हा था कि इसे साफ करके पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाना चाहिए। जानकार बताते हैं कि हरिद्वार के जगजीतपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का साफ किया गया पानी सिंचाई के लिए दिया जाता था। कुछ समय यह व्यवस्था चली, लेकिन बाद में किसानों ने एसटीपी से निकला पानी लेना बंद कर दिया क्योंकि वह बिना साफ किए ही उन्हें दिया जा रहा था। साफ कि ए गए पानी का उपयोग सिंचाई के लिए करने का लाभ यह है कि एसटीपी द्वारा गंदा पानी छोड़े जाने पर रोक लग जाएगी।
जलशक्ति मंत्रालय ने आईआईटीज के इन सुझावों को लागू नहीं किया। फिर भी उसने पहले की तुलना में कुछ सुधार किए। पहले यह व्यवस्था थी कि एसटीपी लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूंजी उपलब्ध क राई जाती थी। नगरपालिकाओं के लिए यह लाभप्रद होता था कि पूंजी की इस रकम को स्वीकार करें और उसमें कुछ रिसाव के बाद बाकी से एसटीपी को लगा दें। पर एसटीपी चलाने में उनकी चि नहीं होती थी क्योंकि खर्च ज्यादा पड़ता था। जल शक्ति मंत्रालय ने इस पुरानी व्यवस्था में सुधार किया है। उसने कहा है कि एसटीपी को निजी व्यवसायी लगाएंगे। इसके पूंजी खर्च का 40 प्रतिशत व्यवसायी को एसटीपी लगने के समय दे दिया जाएगा। शेष 60 प्रतिशत उसे अगले 10 वर्षों में तब दिया जाएगा जब एसटीपी वास्तव में पानी को साफ करके छोड़ेगा।
यह व्यवस्था पहले से अच्छी है। लेकिन एसटीपी ने कितना पानी वास्तव में नदी में साफ करके छोड़ा अथवा कितना चुपके से बिना साफ किए ही नदी में छोड़ दिया, इस पर नियंत्रण कर पाना नई व्यवस्था में उसी प्रकार मुश्किल है जैसे उद्योगों द्वारा गंदा पानी छोड़े जाने पर नियंत्रण करना आज तक मुश्किल रहा है। उद्योगों में यह सामान्य व्यवस्था है कि जांच के समय 2-4 घंटे के लिए वे एसटीपी को चालू कर देते हैं। फिर जांच टीम के जाते ही गंदा पानी छोडऩे का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसी प्रकार प्राइवेट व्यवसायियों द्वारा भी गंदा पानी नदी में छोड़ा जाएगा, क्योंकि इस पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी अंतत:उन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों को देनी पड़ेगी जो अभी उद्योगों पर नियंत्रण नहीं कर रहे। यह बात थी निर्मलता की। आईआईटीज ने यह भी कहा था कि गंगा को अविरल बनाना उतना ही जरूरी है जितना निर्मल बनाना।
गंगा के जल की गुणवत्ता अंतत: उसमें रहने वाले जलीय जंतुओं जैसे मछली, कालिफाज, घोंघे और कछुओं से बनती है। ये जंतु ही गंगा के पानी को साफ और जीवंत बनाते हैं। लेकिन इन जंतुओं को पोषित करने के लिए जरूरी है कि गंगा के पानी में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन हो और उसके बहाव में कोई अवरोध न हो ताकि ये जंतु नदी में आगे-पीछे घूम सकें। इसलिए आईआईटीज ने कहा था कि गंगा पर जल विद्युत और सिंचाई परियोजनाओं द्वारा डैम अथवा बराज इस प्रकार से बनाए जाने चाहिए कि पानी का बहाव अविरल रहे और जलजंतु आसानी से आवागमन कर सकें। जल शक्ति मंत्रालय ने आईआईटीज के इस सुझाव को भी लागू नहीं किया हालांकि कुछ सुधार किया है। पहले इन डैमों और बराजों द्वारा एक बूंद पानी भी टर्बाइन पर डाले बगैर नहीं छोड़ा जाता था। जगह- जगह नदी पूरी तरह सूख जाती थी।
मंत्रालय ने आदेश दिया है कि जलविद्युत परियोजनाओं द्वारा 20 से 30 प्रतिशत और सिंचाई परियोजनाओं द्वारा 3 से 6 प्रतिशत पानी नदी में लगातार छोड़ा जाएगा। यानी डैम के पीछे नदी का पूरा पानी रुकेगा, फिर उसमें से कुछ पानी को छोड़ा जाएगा। बहाव अविरल नहीं होगा। मछलियों के आवागमन में डैम का अवरोध बना रहेगा। गंगा की हालत उस लौकी जैसी होगी जिसे 10 टुकड़ों में काट दिया गया है अथवा उसकी हालत उस हाईवे जैसी होगी जिसमें 10 बैरियर लगे हैं जहां गाडिय़ों को कुछ देर रुक कर बैरियर खुलने के बाद ही आगे जाना होता है। गंगा की अविरलता स्थापित करने में जलशक्ति मंत्रालय सफल नहीं हुआ है। फिर भी पहले की तुलना में कुछ पानी छोड़ा जाना एक सुधार है। सरकार द्वारा नदियों को साफ करने का कार्य पर्यावरण मंत्रालय से हटाकर जलशक्ति मंत्रालय को दिया जाना एक शुभ संकेत है क्योंकि जलशक्ति मंत्रालय ने कम से कम आधे अधूरे क दम तो उठाए हैं। लेकिन जरूरत आधे- अधूरे क दमों की नहीं है। यदि हमें देश की नदियों को जीवित करना है, यदि हमें अपनी नदी-संस्कृति को जीवित रखना है तो जलशक्ति मंत्रालय को आईआईटी समूह द्वारा दिए गए सभी सुझावों को लागू करना होगा।
भरत झुनझुनवाला
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं,ये उनके निजी विचार हैं)