आजादी के 71 साल बाद क्या ये तय नहीं होना चाहिए कि आरक्षण का आधार आर्थिक ही होनी चाहिए, जातिगत नहीं? हर जाति में गरीब हैं, उनके लिए आरक्षण हो, ना की आरक्षण पाकर अमीर हो चुकी कई जातियों के तमाम परिवारों को। खैर ये बहस का विषय हो सकता है और ये सोचने का काम सरकार का है।
वोट की चोट की वजह से सिस्टम में अगर खोट आ गया है तो इसके लिए किसे दोष दिया जाए? दोषी ठहराना तो दूर की कौड़ी है, हैरानी व अफसोस की बात तो ये है कि पहले कोई ये तो माने कि हां खोट है? गलती मानने के बाद ही तो सुधारवादी कमद उठाये जा सकते हैं। बिना गलती माने तो फैसले होते रहेंगे। उसका अगर क्या होगा? इसकी चिंता किसे है? कोई करे भी क्या? अगर राजपाट पाना है तो फिर इसके लिए जो चाहे करो। गरीब को सवणों को दस फीसद आरक्षण मोदी सरकार ने दिया है। वोट ना कट जाएं लिहाजा तकरीबन सारे ही दलों ने इस पर मन मसोसकर हां भी कर दी। लेकिन इस मसले ने कई अहम सलावों को जन्म जरूर दे दिया है। जरूरी है इन सवालों के जवाब खोजना।।
हम ना आरक्षण के खिलाफ और ना ही आरक्षण के समर्थन में ढोल पिटने जा रहे हैं, लेकिन आजादी के 71 साल बाद क्या ये तय नहीं होना चाहिए कि आरक्षण का आधार आर्थिक ही होना चाहिए। जातिगत नहीं? हर जाति में गरीब है, उनके लिए आरक्षण हो, ना की आरक्षण पाकर अमीर हो चुकी कई जातियों के तमाम परिवारों को। खैर ये बहस का विषय नहीं हो सकता है और ये सोचने का काम सरकार का है। अहम सवाल ये है कि आरक्षण का हल्ला तो देश में मच रहा है, लेकिन हर कोई इस बात पर जुबान बंद किए क्यों बैठा है कि आखिर सरकारी नौकरियां बची ही कितनी है जो उनकी बंदरबांट की हालात पैदा हो रही है? अगर देश में हर महीनें 15 साल से ज्यादा की कामकाजी आबादी 13 लाख बढ़ रही तो अंदाजा लगाइए कि आने वाले समय में भारत मं कितने रोजगार की जरूरत होगी? जी हां रोजगार दर अगर हमें यही रखनी है तो तत्काल हर साल 80 लाख नौकरियों की देश को जरूरत है। हमारी बेरोजगारी की दर 7.4 फीसद है।
मोदी सरकार ने आजादी के बाद के सारे रिकार्ड तोड़ दिए है। आगे ये बेरोजगारी दर और बढ़ेगी तब क्या होगा? 2017 में भारत में सरकारी आंकड़ो के मुताबिक 2 करोड़ से ज्यादा भारतीय बेरोजगार थे। पहले से ही करोड़ों बेरोजगार हैं तो फिर बढ़त कामकाजी आबादी को नौकरी मिलेगी कहां से? महिलाओं का रोजगार घट रहा है। किसी भी सरकारी नौकरी का उदाहरण देख लीजिए, एक पोस्ट के लिए 100 से ऊपर का आवेदन का औसत है। सफाई कर्मचारी व सिपाही की पोस्ट के लिए अगर इंजीनियर व डाक्टरेट करने वाले लाइन में लगे रहते हों तो सोचिए कि हालात कितने नाजुक हैं?
चार साल पहले मोदी जब राजपाट में आए थे तो उन्होंने वादा किया था कि वो हर माह दो करोड़ रोजगार देंगे। लेकिन हुआ क्या? पकोड़ा तलने को भी रोजगार में मोदी सरकार ने गिन लया ? जबकि हकीकत ये है कि दिसंबर 2017 में जितने लोगों के पास रोजगार था उनमें से 1.10 करोड़ से रोजगार छिन गया। नए लोगों को काम नहीं मिला। जिनके पास काम था उनकी नौकरी चली गई। इसके बावजूद वो जश्न मना रहे हैं तो फिर क्या कीजे? नौकरी ना दे लेकिन पत्रकार होने के नाते मोदी सरकार देश को सही आंकड़े ही दे दे कि कितने बेरजराग हैं कितने को रोजगार मिला।
लेखक
डीपीएस पंवार